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Bhagvad Gita on Forgetfulness

सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो​​ मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।​​
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।

Meaning:- And I am seated in the hearts of all. From Me are memory, knowledge and their loss. I alone am the object to be known through all the Vedas; I am also the originator of the Vedanta, and I Myself am the knower of the Vedas.


अर्थ:- मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ। मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (उनका अभाव) होता है। समस्त वेदों के द्वारा मैं ही वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ तथा वेदान्त का और वेदों का ज्ञाता भी मैं ही हूँ।।


Important word:- ‘originator ’

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।​​
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।

Meaning:- O Arjuna, the Lord resides in the region of the heart of all creatures, revolving through Maya all the creatures (as though) mounted on a machine!


अर्थ:- हे अर्जुन ! ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें रहता है और अपनी मायासे शरीररूपी यन्त्रपर आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियोंको (उनके स्वभावके अनुसार) भ्रमण कराता रहता है।


Important word:- ‘Maya ’