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Bhagvad-Gita on Forgiveness

तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं​ प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।​​
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः​ प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्।।11.44।।

Meaning:- Therefore, by bowing down and prostrating the body, I seek to propitiate You who are God and are adorable. O Lord, You should [The elision
of a (in arhasi of priyayarhasi) is a metrical licence.] forgive (my faults) as would a father (the faults) of a son, as a friend, of a friend, and as a lover of a beloved.


अर्थ:- इसलिये हे भगवन्! मैं शरीर के द्वारा साष्टांग प्रणिपात करके स्तुति के योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ। हे देव! जैसे पिता पुत्र के, मित्र अपने मित्र के और प्रिय अपनी प्रिया के(अपराध को क्षमा करता है), वैसे ही आप भी मेरे अपराधों को क्षमा कीजिये।।


Important word:- ‘forgive ’

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।​​
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।

Meaning:- He who is not hateful towards any creature, who is friendly and compassionate, who has no idea of 'mine' and the idea of egoism, who is the same under sorrow and happiness, who is forgiving;


अर्थ:- भूतमात्र के प्रति जो द्वेषरहित है तथा सबका मित्र तथा करुणावान् है; जो ममता और अहंकार से रहित, सुख और दु:ख में सम और क्षमावान् है।।


Important word:- ‘not hateful, friendly, compassionate ’

सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।​​
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।

Meaning:- He who is ever content, who is a yogi, who has self-control, who has firm conviction, who has dedicated his mind and intellect to Me-he who is such a devotee of Mine is dear to Me.


अर्थ:- सब प्राणियोंमें द्वेषभावसे रहित, सबका मित्र (प्रेमी) और दयालु, ममतारहित, अहंकाररहित, सुखदुःखकी प्राप्तिमें सम, क्षमाशील, निरन्तर सन्तुष्ट,योगी, शरीरको वशमें किये हुए, दृढ़ निश्चयवाला, मेरेमें अर्पित मन-बुद्धिवाला जो मेरा भक्त है, वह मेरेको प्रिय है।


Important word:- ‘yogi, self-control, firm conviction, dear ’

श्री भगवानुवाच अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।​​
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।16.1।।

Meaning:- The Blessed Lord said Fearlessness, purity of mind, persistence in knowledge and yoga, charity and control of the external organs, sacrifice, (scriptural) study, austerity and rectitude


अर्थ:- श्रीभगवान् बोले -- भयका सर्वथा अभाव; अन्तःकरणकी शुद्धि; ज्ञानके लिये योगमें दृढ़ स्थिति; सात्त्विक दान; इन्द्रियोंका दमन; यज्ञ; स्वाध्याय; कर्तव्य-पालनके लिये कष्ट सहना; शरीर-मन-वाणीकी सरलता।


Important word:- ‘fearlessness, purity of mind, sacrifice, rectitude ’

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।।16.2।।

Meaning:- Non-injury, truthfulness, absence of anger, renunciation, control of the internal organ, absence of vilification, kindness to creatures, non-covetousness, gentleness, modesty, freedom from restlessness.


अर्थ:- अहिंसा, सत्य, क्रोध का अभाव, त्याग, शान्ति, अपैशुनम् (किसी की निन्दा न करना), भूतमात्र के प्रति दया, अलोलुपता , मार्दव (कोमलता), लज्जा, अचंचलता।।


Important words:- Non-violence, truthfulness, absence of anger,gentleness

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।16.3।।

Meaning:- Vigour, forgiveness, fortitude, purity, freedom from malice, absence of haughtiness-these, O scion of the Bharata dynasty, are (the alties) of one born destined to have the divine nature.


अर्थ:- हे भारत ! तेज, क्षमा, धैर्य, शौच (शुद्धि), अद्रोह और अतिमान (गर्व) का अभाव ये सब दैवी संपदा को प्राप्त पुरुष के लक्षण हैं।।


Important word:- Vigour, freedom from malice, fortitude