नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।
Meaning:- You perform the obligatory duties, for action is superior to inaction. And, through inaction, even the maintenance of your body will not be possible.
अर्थ:- तुम (अपने) नियत (कर्तव्य) कर्म करो क्योंकि अकर्म से श्रेष्ठ कर्म है। तुम्हारे अकर्म होने से (तुम्हारा) शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।।
Important word:- ‘duty’
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि।।3.20।।यते।
सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।
Meaning:- For Janaka and others strove to attain Liberation through action itself. You ought to perform (your duties) keeping also in view the prevention of mankind from going astray.
अर्थ:- राजा जनक-जैसे अनेक महापुरुष भी कर्मके द्वारा ही परमसिद्धिको प्राप्त हुए हैं। इसलिये लोकसंग्रहको देखते हुए भी तू (निष्कामभावसे) कर्म करनेके योग्य है।
Important word:- ‘action’
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।।6.16।।
Meaning:- But, O Arjuna, Yoga is not for one who eats too much, nor for one who does not eat at all; neither for one who habitually sleeps too long, nor surely for one who keeps awake..
अर्थ:- परन्तु, हे अर्जुन ! यह योग उस पुरुष के लिए सम्भव नहीं होता, जो अधिक खाने वाला है या बिल्कुल न खाने वाला है तथा जो अधिक सोने वाला है या सदा जागने वाला है।।
Important word:- ‘Yoga’
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्।।18.39।।
Meaning:- That joy is said to be born of tams which, both in the beginning and in the seel, is delusive to oneself and arises from sleep, laziness and inadvertence.
अर्थ:- निद्रा, आलस्य और प्रमादसे उत्पन्न होनेवाला जो सुख आरम्भमें और परिणाममें अपनेको मोहित करनेवाला है, वह सुख तामस कहा गया है।