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Chanakya Neeti

प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम् ।
नानाशास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम् ॥ ०१-०१

praṇamya śirasā viṣṇuṃ trailokyādhipatiṃ prabhum ।​
nānāśāstroddhṛtaṃ vakṣye rājanītisamuccayam ॥ 01-01

Meaning:- I humbly bow down in front of Almighty Vishnu (The Lord of Three worlds) before reciting and telling Maxims (Rules) of the science of
Political ethics (Niti) selected from various sastras, Upanishads and Vedas.

अर्थ:- में चाणक्य, अनेकों वेद पुराणों से संकलित की गई राजनीती की नीतियों को बताने से पहले तीनो लोकों के स्वामी भगवान् विष्णु के चरणों में प्रणाम करता हूं|


अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशविख्यातं कार्याकार्यं शुभाशुभम् ॥ ०१-०२

adhītyedaṃ yathāśāstraṃ naro jānāti sattamaḥ ।​
dharmopadeśavikhyātaṃ kāryākāryaṃ śubhāśubham ॥ 01-02

Meaning:- The person who knows what ought to do or not by studying and implementing the knowledge hidden in these Maxims collected from sastras is the Excellent One.

अर्थ:- धर्म का उपदेश देने वाले, कार्य अकार्य शुभ अशुभ को बताने वाले इस नीति शास्त्र को पढ़कर जो सही रूप में इसे जान लेता है वही श्रेष्ठ मनुष्य है|


तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।
येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञात्वं प्रपद्यते ॥ ०१-०३

tadahaṃ sampravakṣyāmi lokānāṃ hitakāmyayā ।​
yena vijñātamātreṇa sarvajñātvaṃ prapadyate ॥ 01-03

Meaning:- Foolishness is indeed painful, and verily so is youth, but more painful by far than either is being obliged in another person's house.

अर्थ:- इसमें कोई दो राय नहीं कि मूर्खता कष्टदायक होती है, जवानी भी दुःखदायक होती है तथा दूसरे के घर रहना तो अत्यंत कष्टदायक ही होता है।


मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च ।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ॥ ०१-०४

mūrkhaśiṣyopadeśena duṣṭastrībharaṇena ca ।​
duḥkhitaiḥ samprayogeṇa paṇḍito'pyavasīdati ॥ 01-04

Meaning:- Even a wise Man comes to Grief and sadness by giving instruction to foolish disciple, maintaining and living with wicked wife and excessive get together with miserable sad and negative people. So Chanakya instructs, immediately leave the company of these three characters.



अर्थ:- चाणक्य कहते हैं, मूर्ख शिष्य को पढ़ने और उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री का भरण पोषण और साथ रहने से तथा दुखी और नकारात्मक लोगों के साथ से विद्वान् और समझदार व्यक्ति भी दुखी रहने लगता है| इसलिए समझदार व्यक्ति को इन तीनों का साथ हमेशा के लिए अभी छोड़ देना चाहिए|


दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ॥ ०१-०५

duṣṭā bhāryā śaṭhaṃ mitraṃ bhṛtyaścottaradāyakaḥ ।​
sasarpe ca gṛhe vāso mṛtyureva na saṃśayaḥ ॥ 01-05

Meaning:- Charachterless (wicked) wife, Crooked (Dishonest) Friend, saucy and imprudent servant and living in a house with snake, these all four are the cause of death of a person sooner or later.



अर्थ:- जिसकी स्त्री दुष्टा हो, मित्र नीच स्वभाव के हों, नौकर जवाब देने वाले हों और जिस घर में साँप रहता हो, ऐसे घर में रहने वाला व्यक्ति निश्चय ही मृत्यु के निकट रहता है अर्थात् ऐसे व्यक्ति की मृत्यु किसी भी समय हो सकती।


आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेद्धनैरपि ।
आत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ॥ ०१-०६

āpadarthe dhanaṃ rakṣeddārān rakṣeddhanairapi ।​
ātmānaṃ satataṃ rakṣeddārairapi dhanairapi ॥ 01-06

Meaning:- One should save his money against hard times, save his wife at the sacrifice of his riches, but invariably one should save his soul even at the sacrifice of his wife and riches.



अर्थ:- मनुष्य को आकस्मिक विपत्ति के लिए धन इकट्ठा करना चाहिए, किन्तु धन के बदले अगर स्त्रियों की रक्षा करनी पड़े, तो धन को ख़र्च कर देना चाहिए। व्यक्ति को अपनी रक्षा के लिए इन दोनों चीज़ों का भी त्याग करना पड़े, तो इनका त्याग करने से नहीं चूकना चाहिए।


आपदर्थे धनं रक्षेच्छ्रीमतां कुत आपदः ।
कदाचिच्चलते लक्ष्मीः सञ्चितोऽपि विनश्यति ॥ ०१-०७

āpadarthe dhanaṃ rakṣecchrīmatāṃ kuta āpadaḥ ।
kadāciccalate lakṣmīḥ sañcito'pi vinaśyati ॥ 01-07

Meaning:- Save your wealth against future calamity. Do not say, "What fear has a rich man of calamity?" When riches begin to forsake one even the accumulated stock dwindles away.



अर्थ:- व्यक्ति को कठिन समय से निपटने के लिए धन का संचय करना चाहिए। क्योंकि धन अर्थात् लक्ष्मी को चंचल कहा गया है। एक समय ऐसा आता है कि इकट्ठा किया हुआ रुपया-पैसा भी नष्ट हो जाता है।


यस्मिन्देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः ।
न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासं तत्र न कारयेत् ॥ ०१-०८

yasmindeśe na sammāno na vṛttirna ca bāndhavāḥ ।
na ca vidyāgamo'pyasti vāsaṃ tatra na kārayet ॥ 01-08

Meaning:-Do not inhabit a country where you are not respected, cannot earn your livelihood, have no friends, or cannot acquire knowledge.



अर्थ:- जिस देश में व्यक्ति को सम्मान न मिले, जहाँ आजीविका के साधन उपलब्ध न हों, जहाँ बंधु-बांधव और मित्र न हों, विद्या-प्राप्ति के साधन भी न हों, उस देश में
व्यक्ति को कभी निवास नहीं करना चाहिए।


धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत् ॥ ०१-०९

dhanikaḥ śrotriyo rājā nadī vaidyastu pañcamaḥ ।
pañca yatra na vidyante na tatra divasaṃ vaset ॥ 01-09

Meaning:- Chanakya says, Do not stay for a single day where following five persons do not available: a wealthy man, a Brahmin well versed in Vedic lore, a
king, a river and a physician.



अर्थ:- जिस देश में धनी-मानी व्यवसायी, वेदपाठी ब्राह्मण, न्यायप्रिय तथा प्रजावत्सल व शासन व्यवस्था में निपुण राजा, जल की आपूर्ति के लिए नदियाँ और बीमारी से रक्षा के लिए वैद्य आदि न हों अर्थात जहाँ पर ये पाँचों सुविधाएँ प्राप्त न हों, वहाँ व्यक्ति को कुछ दिन के लिए भी नहीं रहना चाहिए।


लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संस्थितिम् ॥ ०१-१०

lokayātrā bhayaṃ lajjā dākṣiṇyaṃ tyāgaśīlatā ।
pañca yatra na vidyante na kuryāttatra saṃsthitim ॥ 01-10

Meaning:- Wise men should never go into a country where there are no means of earning one's livelihood, where the people have no dread of anybody, have no sense of shame, no intelligence, or a charitable disposition.

अर्थ:- जहाँ आजीविका, व्यापार, दण्डभय, लोकलाज, चतुरता और दान देने की प्रवृत्ति–ये पाँच बातें न हों, वहाँ भी कभी निवास नहीं करना चाहिए।


जानीयात्प्रेषणे भृत्यान्बान्धवान् व्यसनागमे ।
मित्रं चापत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥ ०१-११

jānīyātpreṣaṇe bhṛtyānbāndhavān vyasanāgame ।
mitraṃ cāpattikāleṣu bhāryāṃ ca vibhavakṣaye ॥01-11

Meaning:- Test a servant while in the discharge of his duty, a relative in difficulty, a friend in adversity, and a wife in misfortune.

अर्थ:- नौकर की परीक्षा तब करें जब वह कर्त्तव्य का पालन न कर रहा हो, रिश्तेदार की परीक्षा तब करें जब आप मुसीबत मे घिरें हों, मित्र की परीक्षा विपरीत परिस्थितियों मे करें, और जब आपका वक्त अच्छा न चल रहा हो तब पत्नी की परीक्षा करे।


आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसङ्कटे ।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ॥ ०१-१२

āture vyasane prāpte durbhikṣe śatrusaṅkaṭe ।
rājadvāre śmaśāne ca yastiṣṭhati sa bāndhavaḥ॥ 01-12

Meaning:- He is a true friend who does not forsake us in time of need, misfortune, famine, or war, in a king's court, or at the crematorium (smasana).



अर्थ:- अच्छा मित्र वही है जो हमे निम्नलिखित परिस्थितियों में नहीं त्यागे:​आवश्यकता पड़ने पर, किसी दुर्घटना पड़ने पर, जब अकाल पड़ा हो, जब युद्ध चल रहा हो, जब हमे राजा के दरबार मे जाना पड़े, और जब हमे समशान घाट जाना पड़े।


यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते ।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव हि ॥ ०१-१३

yo dhruvāṇi parityajya adhruvaṃ pariṣevate ।
dhruvāṇi tasya naśyanti cādhruvaṃ naṣṭameva hi॥1-13

Meaning:- He who gives up what is imperishable for that which is perishable, loses that which is imperishable; and doubtlessly loses that which is perishable also.

अर्थ:- जो व्यक्ति कसी नाशवंत चीज के लिए कभी नाश नहीं होने वाली चीज को छोड़ देता है, तो उसके हाथ से अविनाशी वस्तु तो चली ही जाती है और इसमे कोई संदेह नहीं की नाशवान को भी वह खो देता है।


वरयेत्कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम् ।
रूपशीलां न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ॥ ०१-१४

varayetkulajāṃ prājño virūpāmapi kanyakām ।
rūpaśīlāṃ na nīcasya vivāhaḥ sadṛśe kule ॥ 01-14

Meaning:- A wise man should marry a virgin of a respectable family even if she is deformed. He should not marry one of a low-class family, through beauty. Marriage in a family of equal status is preferable.

अर्थ:- एक बुद्धिमान व्यक्ति को किसी इज्जतदार घर की अविवाहित कन्या से किस वयंग होने के बावजूद भी विवाह करना चाहिए। उसे किसी हीन घर की अत्यंत सुन्दर स्त्री से भी विवाह नहीं करनी चाहिए। शादी-विवाह हमेशा बराबरी के घरो मे ही उिचत होता है।


नदीनां शस्त्रपाणीनांनखीनां श‍ृङ्गिणां तथा ।
विश्वासो नैव कर्तव्यः स्त्रीषु राजकुलेषु च ॥ ०१-१५

nadīnāṃ śastrapāṇīnāṃnakhīnāṃ śa‍ṛṅgiṇāṃ tathā ।
viśvāso naiva kartavyaḥ strīṣu rājakuleṣu ca ॥ 01-15

Meaning:- Do not put your trust in rivers, men who carry weapons, beasts with claws or horns, women, and members of a royal family.

अर्थ:- इन ५ चीजों कभी पर विश्वास ना करे. १. नदिया २. जिसके हाथ में शास्त्र हो. ३. पशु जिसे नाखून या सींग हो. ४. औरत (यहाँ संकेत भोली सूरत की तरफ है, बहने बुरा न माने ) ५. राज घरानों के लोगों पर.


विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् ।
अमित्रादपि सद्वृत्तं बालादपि सुभाषितम् ॥ ०१-१६

viṣādapyamṛtaṃ grāhyamamedhyādapi kāñcanam ।
amitrādapi sadvṛttaṃ bālādapi subhāṣitam ॥ 01-16

Meaning:- Even from poison extract nectar, wash and take back gold if it has fallen in filth, receive the highest knowledge (Krishna consciousness) from a low born person; so also a girl possessing virtuous qualities (stri-ratna) even if she were born in a disreputable family.

अर्थ:- अगर हो सके तो विष मे से भी अमृत निकाल लें,यदि सोना गन्दगी में भी पड़ा हो तो उसे उठाये, धोएं और अपनाये, निचले कुल मे जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान ग्रहण करें, उसी तरह यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणो से संपनन है और आपको कोई सीख देती है तो गहण करे.


स्त्रीणां द्विगुण आहारो लज्जा चापि चतुर्गुणा ।
साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृतः ॥ ०१-१७

strīṇāṃ dviguṇa āhāro lajjā cāpi caturguṇā ।
sāhasaṃ ṣaḍguṇaṃ caiva kāmaścāṣṭaguṇaḥ smṛtaḥ ॥ 01-17

Meaning:- Women have hunger two-fold, shyness four-fold, daring six-fold, and lust eight-fold as compared to men.

अर्थ:- स्त्रियों का आहार पुरुष से दुगुना होता है। लज्जा चौगुनी होती है, किसी भी बुरे काम को करने की हिम्मत स्त्री में पुरुष से छ: गुना अधिक होती है तथा कामोत्तेजना-सम्भोग की इच्छा पुरुष से स्त्री में आठ गुना अधिक होती है।


अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलोभिता ।
अशौचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः ॥ ०२-०१

anṛtaṃ sāhasaṃ māyā mūrkhatvamatilobhitā ।
aśaucatvaṃ nirdayatvaṃ strīṇāṃ doṣāḥ svabhāvajāḥ ॥ 02-01

Meaning:- Untruthfulness, rashness, guile, stupidity, avarice, uncleanliness and cruelty are a woman's seven natural flaws.

अर्थ:- झूठ बोलना, कठोरता, छल करना, बेवकूफी करना, लालच, अपवित्रता और निर्दयता ये औरतो के कुछ नैसर्गिक दुर्गुण है।


भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर्वराङ्गना ।
विभवो दानशक्तिश्च नाल्पस्य तपसः फलम् ॥ ०२-०२

bhojyaṃ bhojanaśaktiśca ratiśaktirvarāṅganā ।
vibhavo dānaśaktiśca nālpasya tapasaḥ phalam ॥ 02-02

Meaning:- To have ability for eating when dishes are ready at hand, to be robust and virile in the company of one's religiously wedded wife, and to have a mind for making charity when one is prosperous are the fruits of no ordinary austerities.

अर्थ:- भोजन के योग्य पदार्थ और भोजन करने की क्षमता, सुन्दर स्त्री और उसे भोगने के लिए काम शक्ति, पर्याप्त धनराशी तथा दान देने की भावना - ऐसे संयोगों का होना सामान्य तप का फल नहीं है।


यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी ।
विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि ॥ ०२-०३

yasya putro vaśībhūto bhāryā chandānugāminī ।
vibhave yaśca santuṣṭastasya svarga ihaiva hi ॥ 02-03

Meaning:- He whose son is obedient to him, whose wife's conduct is in accordance with his wishes, and who is content with his riches, has his heaven here on earth.

अर्थ:- जिसका बेटा आज्ञाकारी हो तथा पत्नी पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो एवं जो प्राप्त धन से ही सन्तुष्ट हो, ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग यहीं है, यह जानना चाहिए।


ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः स पिता यस्तु पोषकः ।
तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या यत्र निर्वृतिः ॥ ०२-०४

te putrā ye piturbhaktāḥ sa pitā yastu poṣakaḥ ।
tanmitraṃ yatra viśvāsaḥ sā bhāryā yatra nirvṛtiḥ ॥ 02-04

Meaning:- They alone are sons who are devoted to their father. He is a father who supports his sons. He is a friend in whom we can confide, and she only is a wife in whose company the husband feels contented and peaceful.

अर्थ:- पुत्र वही है जो पिता का कहना मानता हो, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे, मित्र वही है जिस पर आप विश्वास कर सकते हों और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।


परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् ।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥ ०२-०५

parokṣe kāryahantāraṃ pratyakṣe priyavādinam ।
varjayettādṛśaṃ mitraṃ viṣakumbhaṃ payomukham ॥ 02-05

Meaning:- Avoid him who talks sweetly before you but tries to ruin you behind your back, for he is like a pitcher of poison with milk on top.

अर्थ:- ऐसे लोगों से बचे जो आपके मुह पर तो मीठी बातें करते हैं, लेकिन आपके पीठ पीछे आपको बर्बाद करने की योजना बनाते है, ऐसा करने वाले तो उस विष के घड़े के समान है जिसकी उपरी सतह दूध से भरी है।


न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत् ।
कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत् ॥ ०२-०६

na viśvasetkumitre ca mitre cāpi na viśvaset ।
kadācitkupitaṃ mitraṃ sarvaṃ guhyaṃ prakāśayet ॥ 02-06

Meaning:- Do not put your trust in a bad companion nor even trust an ordinary friend, for if he should get angry with you, he may bring all your secrets to light.

अर्थ:- एक बुरे मित्र पर तो कभी विश्वास ना करे। एक अच्छे मित्र पर भी विश्वास ना करें। क्यूंकि यदि ऐसे लोग आपसे रुष्ट होते है तो आप के सभी राज से पर्दा खोल देंगे।


मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत् ।
मन्त्रेण रक्षयेद्गूढं कार्ये चापि नियोजयेत् ॥ ०२-०७

manasā cintitaṃ kāryaṃ vācā naiva prakāśayet ।
mantreṇa rakṣayedgūḍhaṃ kārye cāpi niyojayet ॥ 02-07

Meaning:- Do not reveal what you have thought upon doing, but by wise counsel keep it secret, being determined to carry it into execution.

अर्थ:- मन से सोचे हुए कामों को बोलकर प्रकट नहीं करना चाहिए। जब तक काम पूर्ण न हो जाए, गुप्त मंत्र की तरह अपनी योजना की रक्षा करनी चाहिए।


कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम् ।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगेहनिवासनम् ॥ ०२-०८

kaṣṭaṃ ca khalu mūrkhatvaṃ kaṣṭaṃ ca khalu yauvanam ।
kaṣṭātkaṣṭataraṃ caiva paragehanivāsanam ॥ 02-08

Meaning:- Foolishness is indeed painful, and verily so is youth, but more painful by far than either is being obliged in another person's house.

अर्थ:- इसमें कोई दो राय नहीं कि मूर्खता कष्टदायक होती है, जवानी भी दुःखदायक होती है तथा दूसरे के घर रहना तो अत्यंत कष्टदायक ही होता है।


शैले शैले च माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे ।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ॥ ०२-०९

śaile śaile ca māṇikyaṃ mauktikaṃ na gaje gaje ।
sādhavo na hi sarvatra candanaṃ na vane vane ॥ 02-09

Meaning:- There does not exist a pearl in every mountain, nor a pearl in the head of every elephant; neither are the sadhus to be found everywhere, nor sandal trees in every forest.

अर्थ:- हर पर्वत पर माणिक्य नहीं होते, हर हाथी के सर पर मणी नहीं होता, सज्जन पुरुष भी हर जगह नहीं होते और हर वन मे चन्दन के वृक्ष भी नहीं होते हैं।


पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्याः सततं बुधैः ।
नीतिज्ञाः शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः ॥ ०२-१०

putrāśca vividhaiḥ śīlairniyojyāḥ satataṃ budhaiḥ ।
nītijñāḥ śīlasampannā bhavanti kulapūjitāḥ ॥ 02-10

Meaning:- Wise men should always bring up their sons in various moral ways, for children who have knowledge of niti-sastra and are well behaved become a glory to their family.

अर्थ:- बुद्धिमान पिता को अपने पुत्रों को शुभ गुणों की सीख देनी चाहिए क्योंकि नीतिज्ञ और ज्ञानी व्यक्तियों की ही कुल में पूजा होती है।


माता शत्रुः पिता वैरी याभ्यां बाला न पाठिताः ।
सभामध्ये न शोभन्ते हंसमध्ये बको यथा ॥ ०२-११

mātā śatruḥ pitā vairī yābhyāṃ bālā na pāṭhitāḥ ।
sabhāmadhye na śobhante haṃsamadhye bako yathā ॥ 02-11

Meaning:- Those parents who do not educate their sons are their enemies; for as is a crane among swans, so are ignorant sons in a public assembly.

अर्थ:- जो माता व् पिता अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते है वो तो बच्चों के शत्रु के सामान हैं। क्योंकि वे विद्याहीन बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत किये जाते हैं जैसे हंसो की सभा मे बगुले।


लालनाद्बहवो दोषास्ताडने बहवो गुणाः ।
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत् ॥ ०२-१२

lālanādbahavo doṣāstāḍane bahavo guṇāḥ ।
tasmātputraṃ ca śiṣyaṃ ca tāḍayenna tu lālayet ॥ 02-12

Meaning:- Many a bad habit is developed through over indulgence, and many a good one by chastisement, therefore beat your son as well as your pupil; never indulge them. ("Spare the rod and spoil the child.")

अर्थ:-लाड-प्यार से बच्चों मे गलत आदते ढलती है, उन्हें कड़ी शिक्षा देने से वे अच्छी आदते सीखते है, इसलिए बच्चों को जरुरत पड़ने पर दण्डित करें, ज्यादा लाड ना करें।


श्लोकेन वा तदर्धेन तदर्धार्धाक्षरेण वा ।
अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मभिः ॥ ०२-१३

ślokena vā tadardhena tadardhārdhākṣareṇa vā ।
abandhyaṃ divasaṃ kuryāddānādhyayanakarmabhiḥ ॥ 02-13

Meaning:- Foolishness is indeed painful, and verily so is youth, but more painful by far than either is being obliged in another person's house. Let not a single day pass without your learning a verse, half a verse, or a fourth of it, or even one letter of it; nor without attending to charity, study and other pious activity.

अर्थ:- ऐसा एक भी दिन नहीं जाना चाहिए जब आपने एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का केवल एक अक्षर नहीं सीखा, या आपने दान, अभ्यास या कोई पवित्र कार्य नहीं किया।


कान्तावियोगः स्वजनापमानं ऋणस्य शेषं कुनृपस्य सेवा ।
दारिद्र्यभावाद्विमुखं च मित्रं विनाग्निना पञ्च दहन्ति कायम् ॥ ०२-१४


kāntāviyogaḥ svajanāpamānaṃ ṛṇasya śeṣaṃ kunṛpasya sevā ।
dāridryabhāvādvimukhaṃ ca mitraṃ vināgninā pañca dahanti kāyam ॥ 02-14

Meaning:- Separation from the wife, disgrace from one's own people, an enemy saved in battle, service to a wicked king, poverty, and a mismanaged assembly: these six kinds of evils, if afflicting a person, burn him even without fire.

अर्थ:- पत्नी का वियोग होना, आपने ही लोगो से बे-इजजत होना, बचा हुआ ऋण, दुष्ट राजा की सेवा करना, गरीबी एवं दरिद्रों की सभा - ये छह बातें शरीर को बिना अग्नि को ही जला देती हैं।


नदीतीरे च ये वृक्षाः परगेहेषु कामिनी ।
मन्त्रहीनाश्च राजानः शीघ्रं नश्यन्त्यसंशयम् ॥ ०२-१५

nadītīre ca ye vṛkṣāḥ parageheṣu kāminī ।
mantrahīnāśca rājānaḥ śīghraṃ naśyantyasaṃśayam ॥ 02-15

Meaning:- Trees on a riverbank, a woman in another man's house, and kings without counselors go without doubt to swift destruction.

अर्थ:- नदी के किनारे वाले वृक्ष, दुसरे व्यक्ति के घर मे जाने अथवा रहने वाली स्त्री एवं बिना मंत्रियों का राजा - ये सब निश्चय ही शीघ्र नस्ट हो जाते हैं।


बलं विद्या च विप्राणां राज्ञां सैन्यं बलं तथा ।
बलं वित्तं च वैश्यानां शूद्राणां पारिचर्यकम् ॥ ०२-१६

balaṃ vidyā ca viprāṇāṃ rājñāṃ sainyaṃ balaṃ tathā ।
balaṃ vittaṃ ca vaiśyānāṃ śūdrāṇāṃ pāricaryakam ॥ 02-16

Meaning:- A brahmin's strength is in his learning, a king's strength is in his army, a vaishya's strength is in his wealth and a shudra's strength is in his attitude of service.

अर्थ:- एक ब्राह्मण का बल तेज और विद्या है, एक राजा का बल उसकी सेना मे है, एक वैशय का बल उसकी दौलत मे है तथा एक शुद्र का बल उसकी सेवा परायणता मे है।


निर्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत् ।
खगा वीतफलं वृक्षं भुक्त्वा चाभ्यागतो गृहम् ॥ ०२-१७

nirdhanaṃ puruṣaṃ veśyā prajā bhagnaṃ nṛpaṃ tyajet ।
khagā vītaphalaṃ vṛkṣaṃ bhuktvā cābhyāgato gṛham ॥ 02-17

Meaning:- The prostitute has to forsake a man who has no money, the subject a king that cannot defend him, the birds a tree that bears no fruit, and the guests a house after they have finished their meals.

अर्थ:- वेश्या को निर्धन व्यक्ति को त्याग देना चाहिए, प्रजा को पराजित राजा को त्याग देना चाहिए, पक्षियों को फलरहित वृक्ष त्याग देना चाहिए एवं अतिथियों को भोजन करने के पश्चात् मेजबान के घर से निकल देना चाहिए।


गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम् ।
प्राप्तविद्या गुरुं शिष्या दग्धारण्यं मृगास्तथा ॥ ०२-१८

gṛhītvā dakṣiṇāṃ viprāstyajanti yajamānakam ।
prāptavidyā guruṃ śiṣyā dagdhāraṇyaṃ mṛgāstathā ॥ 02-18

Meaning:- Brahmins quit their patrons after receiving alms from them, scholars leave their teachers after receiving education from them, and animals desert a forest that has been burnt down.

अर्थ:- ब्राह्मण दक्षिणा मिलने के पश्चात् आपने यजमानो को छोड़ देते है, विद्वान विद्या प्राप्ति के बाद गुरु को छोड़ जाते हैं और पशु जले हुए वन को त्याग देते हैं।


दुराचारी दुरादृष्टिर्दुरावासी च दुर्जनः ।
यन्मैत्री क्रियते पुंभिर्नरः शीघ्रं विनश्यति ॥ ०२-१९

durācārī durādṛṣṭirdurāvāsī ca durjanaḥ ।
yanmaitrī kriyate puṃbhirnaraḥ śīghraṃ vinaśyati ॥ 02-19

Meaning:- He who befriends a man whose conduct is vicious, whose vision impure, and who is notoriously crooked, is rapidly ruined

अर्थ:- जो व्यक्ति दुराचारी, कुदृष्टि वाले, एवं बुरे स्थान पर रहने वाले मनुष्य के साथ मित्रता करता है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।


समाने शोभते प्रीतिः राज्ञि सेवा च शोभते ।
वाणिज्यं व्यवहारेषु दिव्या स्त्री शोभते गृहे ॥ ०२-२०

samāne śobhate prītiḥ rājñi sevā ca śobhate ।
vāṇijyaṃ vyavahāreṣu divyā strī śobhate gṛhe ॥ 02-20

Meaning:- Friendship between equals flourishes, service under a king is respectable, it is good to be business-minded in public dealings, and a handsome lady is safe in her own home.

अर्थ:- प्रेम और मित्रता बराबर वालों में अच्छी लगती है, राजा के यहाँ नौकरी करने वाले को ही सम्मान मिलता है, व्यवसायों में वाणिज्य सबसे अच्छा है, अवं उत्तम गुणों वाली स्त्री अपने घर में सुरक्षित रहती है।


कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः ।
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥ ०३-०१

kasya doṣaḥ kule nāsti vyādhinā ko na pīḍitaḥ ।
vyasanaṃ kena na prāptaṃ kasya saukhyaṃ nirantaram ॥ 03-01

Meaning:- In this world, whose family is there without blemish? Who is free from sickness and grief? Who is forever happy?

अर्थ:- किसके कुल में दोष नहीं होता? बीमारी से कौन पीड़ित नहीं हुआ? परेशानी किसको नहीं मिली? हमेशा सुखी कौन रहता है?

आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम् ॥ ०३-०२


ācāraḥ kulamākhyāti deśamākhyāti bhāṣaṇam ।
sambhramaḥ snehamākhyāti vapurākhyāti bhojanam ॥ 03-02

Meaning:- A man’s descent may be discerned by – his conduct, his country by his pronunciation of language, his friendship by his warmth and glow, and his capacity to eat by his body.

अर्थ:- मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, मनुष्य के बोल चल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन उसे भोजन से बढ़ता है.


सुकुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजयेत् ।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मेण योजयेत् ॥ ०३-०३

sukule yojayetkanyāṃ putraṃ vidyāsu yojayet ।
vyasane yojayecchatruṃ mitraṃ dharmeṇa yojayet ॥ 03-03

Meaning:- Give your daughter in marriage to a good family, engage your son in learning, see that your enemy comes to grief, and engage your friends in dharma. (Krishna consciousness).

अर्थ:- लड़की का बयाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए. पुत्र को अचछी शिक्षा देनी चाहिए, शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए.


दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।
सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ॥ ०३-०४

durjanasya ca sarpasya varaṃ sarpo na durjanaḥ ।
sarpo daṃśati kāle tu durjanastu pade pade ॥ 03-04

Meaning:- Of a rascal and a serpent, the serpent is the better of the two, for he strikes only at the time he is destined to kill, while the former at every step.

अर्थ:- एक दुर्जन और एक सर्प मे यह अंतर है की साप तभी डंख मरेगा जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा .


एतदर्थे कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति सङ्ग्रहम् ।
आदिमध्यावसानेषु न ते गच्छन्ति विक्रियाम् ॥ ०३-०५

etadarthe kulīnānāṃ nṛpāḥ kurvanti saṅgraham ।
ādimadhyāvasāneṣu na te gacchanti vikriyām ॥ 03-05

Meaning:- Therefore kings gather round themselves men of good families, for they never forsake them either at the beginning, the middle or the end.

अर्थ:- राजा लोग अपने आस पास अच्छे कुल के लोगो को इसलिए रखते है क्योंकि ऐसे लोग ना आरम्भ मे, ना बीच मे और ना ही अंत मे साथ छोड़कर जाते है.


प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः ।
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः ॥ ०३-०६

pralaye bhinnamaryādā bhavanti kila sāgarāḥ ।
sāgarā bhedamicchanti pralaye'pi na sādhavaḥ ॥ 03-06

Meaning:- At the time of the pralaya (universal destruction) the oceans are to exceed their limits and seek to change, but a saintly man never changes.

अर्थ:-जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मयारदा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के सामान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में भी आपनी मर्यादा नहीं बदलते.


मूर्खस्तु प्रहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः ।
भिद्यते वाक्य-शल्येन अदृशं कण्टकं यथा ॥ ०३-०७

mūrkhastu prahartavyaḥ pratyakṣo dvipadaḥ paśuḥ ।
bhidyate vākya-śalyena adṛśaṃ kaṇṭakaṃ yathā ॥ 03-07

Meaning:- Do not keep company with a fool for as we can see he is a two-legged beast. Like an unseen thorn he pierces the heart with his sharp words.



अर्थ:- मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शारीर में घुसकर छलनी करता है .


रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः ।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धाः किंशुका यथा ॥ ०३-०८

rūpayauvanasampannā viśālakulasambhavāḥ ।
vidyāhīnā na śobhante nirgandhāḥ kiṃśukā yathā ॥ 03-08

Meaning:- Though men be endowed with beauty and youth and born in noble families, yet without education they are like the palasa flower, which is void of sweet fragrance.



अर्थ:- रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्मा लेने पर भी विद्या हीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबु रहित है.


कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् ।
विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम् ॥ ०३-०९

kokilānāṃ svaro rūpaṃ strīṇāṃ rūpaṃ pativratam ।
vidyā rūpaṃ kurūpāṇāṃ kṣamā rūpaṃ tapasvinām ॥ 03-09

Meaning:- The beauty of a cuckoo is in its notes, that of a woman in her unalloyed devotion to her husband, that of an ugly person in his scholarship, and that of an ascetic in his forgiveness.

अर्थ:- कोयल की सुन्दरता उसके गायन मे है. एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने पिरवार के प्रति समर्पण मे है. एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान मे है तथा एक तपस्वी की सुन्दरता उसकी माशीलता मे है.


त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ ०३-१०

tyajedekaṃ kulasyārthe grāmasyārthe kulaṃ tyajet ।
grāmaṃ janapadasyārthe ātmārthe pṛthivīṃ tyajet ॥ 03-10

Meaning:- Give up a member to save a family, a family to save a village, a village to save a country, and the country to save yourself.

अर्थ:- कुल की रक्षा के लिए एक सदस्य का बिलदान दें,गाव की रक्षा के लिए एक कुल का बिलदान दें, देश की रक्षा के लिए एक गाव का बिलदान दें, आतमा की रक्षा के लिए देश का बिलदान दें.


उद्योगे नास्ति दारिद्र्यं जपतो नास्ति पातकम् ।
मौनेन कलहो नास्ति नास्ति जागरिते भयम् ॥ ०३-११

udyoge nāsti dāridryaṃ japato nāsti pātakam ।
maunena kalaho nāsti nāsti jāgarite bhayam ॥ 03-11

Meaning:- There is no poverty for the industrious. Sin does not attach itself to the person practicing japa (chanting of the holy names of the Lord). Those who are absorbed in maunam (silent contemplation of the Lord) have no quarrel with others. They are fearless who remain always alert.

अर्थ:- परिश्रम करने पर ग़रीबी नहीं रहती। मंत्र के जप से पाप नहीं रहता। मौन रहने पर कलह नहीं होता। जागृत रहने पर भय नहीं रहता।


अतिरूपेण वा सीता अतिगर्वेण रावणः ।
अतिदानाद्बलिर्बद्धो ह्यतिसर्वत्र वर्जयेत् ॥ ०३-१२

atirūpeṇa vā sītā atigarveṇa rāvaṇaḥ ।
atidānādbalirbaddho hyatisarvatra varjayet ॥ 03-12

Meaning:- Sita mata was abducted due to too much beautiful, Ravan was killed due to his excessive arrogance, raja Bali was deceive because he was highly committed to donation, so excessiveness is harmful.

अर्थ:- आत्याधिक सुन्दरता के कारन सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारन रावन का अंत हुआ, अत्यधिक दान देने के कारन रजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए.


को हि भारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥ ०३-१३

ko hi bhāraḥ samarthānāṃ kiṃ dūraṃ vyavasāyinām ।
ko videśaḥ suvidyānāṃ kaḥ paraḥ priyavādinām ॥ 03-13

Meaning:- What is too heavy for the strong and what place is too distant for those who put forth effort? What country is foreign to a man of true learning? Who can be inimical to one who speaks pleasingly?

अर्थ:- शक्तिशाली लोगों के लिए कौनसा कार्य कठिन है ? व्यापारिओं के लिए कौनसा जगह दूर है, विद्वानों के लिए कोई देश विदेश नहीं है, मधुभाषियों का कोई शत्रु नहीं.


एकेनापि सुवृक्षेण पुष्पितेन सुगन्धिना ।
वासितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा ॥ ०३-१४

ekenāpi suvṛkṣeṇa puṣpitena sugandhinā ।
vāsitaṃ tadvanaṃ sarvaṃ suputreṇa kulaṃ yathā ॥ 03-14

Meaning:- As a whole forest becomes fragrant by the existence of a single tree with sweet-smelling blossoms in it, so a family becomes famous by the birth of a virtuous son.



अर्थ:-जिस तरह सारा वन केवल एक ही पुष्प अवं सुगंध भरे वृक्ष से महक जाता है उसी तरह एक ही गुणवान पुत्र पुरे कुल का नाम बढाता है.


एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना ।
दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा ॥ ०३-१५

ekena śuṣkavṛkṣeṇa dahyamānena vahninā ।
dahyate tadvanaṃ sarvaṃ kuputreṇa kulaṃ yathā ॥ 03-15

Meaning:- As a single withered tree, if set aflame, causes a whole forest to burn, so does a rascal son destroy a whole family.

अर्थ:- जंगल में आग लगने पर जैसे वहाँ का एक ही सूखा पेड़ पूरे जंगल को जलाने के लिए पर्याप्त है, उसी तरह कुटुंब को जलाने के लिए एक ही कुपूत्र काफ़ी है।


एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना ।
आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी ॥ ०३-१६

ekenāpi suputreṇa vidyāyuktena sādhunā ।
āhlāditaṃ kulaṃ sarvaṃ yathā candreṇa śarvarī ॥ 03-16

Meaning:- As night looks delightful when the moon shines, so is a family gladdened by even one learned and virtuous son.

अर्थ:- जैसे चन्द्र के उदय होने पर रात का घनघोर अंधेरा ख़त्म हो जाता है और हर जगह सुखद चांदनी का डेरा हो जाता है, वैसे ही कुल में एक ही सुपुत्र होने से पूरे कुल की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है और पूरा कुल प्रसन्न हो जाता है।


किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः ।
वरमेकः कुलालम्बी यत्र विश्राम्यते कुलम् ॥ ०३-१७

kiṃ jātairbahubhiḥ putraiḥ śokasantāpakārakaiḥ ।
varamekaḥ kulālambī yatra viśrāmyate kulam ॥ 03-17

Meaning:- What is the use of having many sons if they cause grief and vexation? It is better to have only one son from whom the whole family can derive support and peacefulness.

अर्थ:- ऐसे अनेक पुत्र किस काम के जो दुःख और निराशा पैदा करे. इससे तो वह एक ही पुत्र अच्छा है जो समपूणर घर को सहारा और शांति प्रदान करे.


स्त्रीणां द्विगुण आहारो लज्जा चापि चतुर्गुणा ।
साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृतः ॥ ०१-१७

strīṇāṃ dviguṇa āhāro lajjā cāpi caturguṇā ।
sāhasaṃ ṣaḍguṇaṃ caiva kāmaścāṣṭaguṇaḥ smṛtaḥ ॥ 01-17

Meaning:- Women have hunger two-fold, shyness four-fold, daring six-fold, and lust eight-fold as compared to men.

अर्थ:- स्त्रियों का आहार पुरुष से दुगुना होता है। लज्जा चौगुनी होती है, किसी भी बुरे काम को करने की हिम्मत स्त्री में पुरुष से छ: गुना अधिक होती है तथा कामोत्तेजना-सम्भोग की इच्छा पुरुष से स्त्री में आठ गुना अधिक होती है।


लालयेत्पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत् ।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रे मित्रवदाचरेत् ॥ ०३-१८


lālayetpañcavarṣāṇi daśavarṣāṇi tāḍayet ।
prāpte tu ṣoḍaśe varṣe putre mitravadācaret ॥ 03-18

Meaning:- Fondle a son until he is five years of age, and use the stick for another ten years, but when he has attained his sixteenth year treat him as a friend .



अर्थ:- पांच साल तक पुत्र को लाड एवं प्यार से पालन करना चाहिए, दस साल तक उसे छड़ी की मार से डराए. लेकिन जब वह १६ साल का हो जाए तो उससे मित्र के समान वयवहार करे.


उपसर्गेऽन्यचक्रे च दुर्भिक्षे च भयावहे ।
असाधुजनसम्पर्के यः पलायेत्स जीवति ॥ ०३-१९


upasarge'nyacakre ca durbhikṣe ca bhayāvahe ।
asādhujanasamparke yaḥ palāyetsa jīvati ॥ 03-19

Meaning:- He who runs away from a fearful calamity, a foreign invasion, a terrible famine, and the companionship of wicked men is safe.

अर्थ:-आग लगने, बाढ़ आने, सूखा पड़ने, उल्कापात, अकाल, आतताइयों द्वारा हमला और ख़राब संगति–इन हालात में जो व्यक्ति प्रभावित जगह से भाग निकलता है, वही जीवित रहता है।


धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते ।
अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ॥ ०३-२०


dharmārthakāmamokṣāṇāṃ yasyaiko'pi na vidyate ।
ajāgalastanasyeva tasya janma nirarthakam ॥ 03-20

Meaning:- He who has not acquired one of the following: religious merit (dharma), wealth (artha), satisfaction of desires (kama), or liberation (moksha) is repeatedly born to die.

अर्थ:-मनुष्य देह धारण करने पर भी जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से किसी एक की प्राप्ति की कोशिश नहीं करते, वे मृत्युलोक में सिर्फ़ मरने के लिए पैदा होते हैं और पैदा होने के लिए मरते हैं अर्थात् इस धरती पर उन लोगों का जन्म बिल्कुल बेकार है। वे तो हमेशा मरे हुए के ही समान हैं।


मूर्खा यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम् ।
दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ॥ ०३-२१


mūrkhā yatra na pūjyante dhānyaṃ yatra susañcitam ।
dāmpatye kalaho nāsti tatra śrīḥ svayamāgatā ॥ 03-21

Meaning:- Lakshmi, the Goddess of wealth, comes of Her own accord where fools are not respected, grain is well stored up, and the husband and wife do not quarrel.

अर्थ:-जिस जगह मूर्ख पूजित नहीं होते और जहाँ अन्न आदि बहुत ज़्यादा मात्रा में एकत्र रहते हैं और जहाँ पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़ा, वाद-विवाद नहीं होता–वहाँ लक्ष्मी ख़ुद आकर रहती है।


आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च ।
पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ॥ ०४-०१


āyuḥ karma ca vittaṃ ca vidyā nidhanameva ca ।​
pañcaitāni hi sṛjyante garbhasthasyaiva dehinaḥ ॥ 04-01

Meaning:- These five: the life-span, the type of work, wealth, learning and the time​
of one’s death are determined while one is in the womb.



अर्थ:-निम्नलिखित बातें माता के गर्भ में ही निश्चित हो जाती है….
१. व्यक्ति कितने साल जियेगा
२. वह किस प्रकार का काम करेगा
३. उसके पास कितनी संपत्ति होगी
४. उसकी मृत्यु कब होगी .


साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रमित्राणि बान्धवाः ।
ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात्सुकृतं कुलम् ॥ ०४-०२


sādhubhyaste nivartante putramitrāṇi bāndhavāḥ ।
ye ca taiḥ saha gantārastaddharmātsukṛtaṃ kulam ॥04-02

Meaning:- Offspring, friends and relatives flee from a devotee of the Lord: yet those who follow him bring merit to theirfamilies through their devotion.

अर्थ:-पुत्र , मित्र, सगे सम्बन्धी साधुओं को देखकर दूर भागते है, लेकिन जो लोग साधुओं का अनुशरण करते है उनमे भक्ति जागृत होती है और उनके उस पुण्य से उनका सारा कुल धन्य हो जाता है |


दर्शनध्यानसंस्पर्शैर्मत्सी कूर्मी च पक्षिणी ।
शिशुं पालयते नित्यं तथा सज्जन-संगतिः ॥ ०४-०३


darśanadhyānasaṃsparśairmatsī kūrmī ca pakṣiṇī ।
śiśuṃ pālayate nityaṃ tathā sajjana-saṃgatiḥ ॥ 04-03

Meaning:- As long as your body is healthy and under control and death is distant, try to save your soul; when death is immanent what can you

अर्थ:-जैसे मछली दृष्टी से, कछुआ ध्यान देकर और पंछी स्पर्श करके अपने बच्चो को पालते है, वैसे ही संतजन पुरुषों की संगती मनुष्य का पालन पोषण करती है.


यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः ।
तावदात्महितं कुर्यात्प्राणान्ते किं करिष्यति ॥ ०४-०४


yāvatsvastho hyayaṃ deho yāvanmṛtyuśca dūrataḥ ।
tāvadātmahitaṃ kuryātprāṇānte kiṃ kariṣyati ॥ 04-04

Meaning:- As long as your body is healthy and under control and death is distant, try to save your soul; when death is immanent what can you

अर्थ:-जब आपका शरीर स्वस्थ है और आपके नियंत्रण में है उसी समय आत्मसाक्षात्कार का उपाय कर लेना चाहिए क्योंकि मृत्यु हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता है


कामधेनुगुणा विद्या ह्यकाले फलदायिनी ।
प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम् ॥ ०४-०५


kāmadhenuguṇā vidyā hyakāle phaladāyinī ।
pravāse mātṛsadṛśī vidyā guptaṃ dhanaṃ smṛtam ॥ 04-05

Meaning:- Learning is like a cow of desire. It, like her, yields in all seasons. Like a mother, it feeds you on your journey. Therefore learning is a hidden treasure.

अर्थ:-विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है. वह विदेश में माता के समान रक्षक अवं हितकारी होती है. इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है.

एकोऽपि गुणवान्पुत्रो निर्गुणेन शतेन किम् ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः ॥ ०४-०६


eko'pi guṇavānputro nirguṇena śatena kim ।
ekaścandrastamo hanti na ca tārāḥ sahasraśaḥ ॥ 04-06

Meaning:-A single son endowed with good qualities is far better than a hundred devoid of them. For the moon, though one, dispels the darkness, which the stars, though numerous, can not.

अर्थ:-जिस प्रकार एक चांद ही रात्रि के अंधकार को दूर करता है, असंख्य तारे मिलकर भी रात्रि के गहन अंधकार को दूर नहीं कर सकते, उसी प्रकार एक गुणी पुत्र ही अपने कुल का नाम रोशन करता है, उसे ऊंचा उठाता है; ख्याति दिलाता है।


मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः ।
मृतः स चाल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत् ॥ ०४-०७


mūrkhaścirāyurjāto'pi tasmājjātamṛto varaḥ ।
mṛtaḥ sa cālpaduḥkhāya yāvajjīvaṃ jaḍo dahet ॥ 04-07

Meaning:- A still-born son as superior to a foolish son endowed with a long life. The first causes grief for but a moment while the latter like a blazing fire consumes his parents in grief for life.

अर्थ:-एक ऐसा बालक जो जन्मते वक़्त मृत था, एक मुर्ख दीर्घायु बालक से बेहतर है. पहला बालक तो एक क्षण के लिए दुःख देता है, दूसरा बालक उसके माँ बाप को जिंदगी भर दुःख की अग्नि में जलाता है।


कुग्रामवासः कुलहीनसेवा कुभोजनं क्रोधमुखी च भार्या ।
पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निना षट्प्रदहन्ति कायम् ॥ ०४-०८


kugrāmavāsaḥ kulahīnasevā kubhojanaṃ krodhamukhī ca bhāryā ।
putraśca mūrkho vidhavā ca kanyā vināgninā ṣaṭpradahanti kāyam ॥ 04-08

Meaning:- Residing in a small village devoid of proper living facilities, serving a person born of a low family, unwholesome food, a frowning without fire.

अर्थ:-निम्नलिखित बाते व्यक्ति को बिना आग के ही जलाती है… १. एक छोटे गाव में बसना जहा रहने की सुविधाए उपलब्ध नहीं. २. एक ऐसे व्यक्ति के यहाँ नौकरी करना जो नीच कुल में पैदा हुआ है. ३. अस्वास्थय्वर्धक भोजन का सेवन करना. ४. जिसकी पत्नी हरदम गुस्से में होती है. ५. जिसको मुर्ख पुत्र है. ६. जिसकी पुत्री विधवा हो गयी है.


किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्ध्री न गर्भिणी ।
कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान् न भक्तिमान् ॥ ०४-०९


kiṃ tayā kriyate dhenvā yā na dogdhrī na garbhiṇī ।
ko'rthaḥ putreṇa jātena yo na vidvān na bhaktimān ॥04-09

Meaning:- What good is a cow that neither gives milk nor conceives? Similarly, what is the value of the birth of a son if he becomes neither learned nor a pure devotee of the Lord?

अर्थ:-वह गाय किस काम की जो ना तो दूध देती है ना तो बच्चे को जन्म देती है. उसी प्रकार उस बच्चे का जन्म किस काम का जो ना ही विद्वान हुआ ना ही भगवान् का भक्त हुआ.


संसारतापदग्धानां त्रयो विश्रान्तिहेतवः ।
अपत्यं च कलत्रं च सतां सङ्गतिरेव च ॥ ०४-१०


saṃsāratāpadagdhānāṃ trayo viśrāntihetavaḥ ।
apatyaṃ ca kalatraṃ ca satāṃ saṅgatireva ca ॥ 04-10

Meaning:- When one is consumed by the sorrows of life, three things give him relief: offspring, a wife, and the company of the Lord’s devotees.

अर्थ:-जब व्यक्ति जीवन के दुःख से झुलसता है उसे निम्नलिखित ही सहारा देते है… १. पुत्र और पुत्री २. पत्नी ३. भगवान् के भक्त.


सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति पण्डिताः ।
सकृत्कन्याः प्रदीयन्ते त्रीण्येतानि सकृत्सकृत् ॥ ०४-११


sakṛjjalpanti rājānaḥ sakṛjjalpanti paṇḍitāḥ ।
sakṛtkanyāḥ pradīyante trīṇyetāni sakṛtsakṛt ॥ 04-11

Meaning:- Kings speak for once, men of learning once, and the daughter is given in marriage once. All these things happen once and only once.

अर्थ:-यह बाते एक बार ही होनी चाहिए.. १. राजा का बोलना. २. बिद्वान व्यक्ति का बोलना. ३. लड़की का ब्याहना.


एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभिः ।
चतुर्भिर्गमनं क्षेत्रं पञ्चभिर्बहुभी रणः ॥ ०४-१२


ekākinā tapo dvābhyāṃ paṭhanaṃ gāyanaṃ tribhiḥ ।
caturbhirgamanaṃ kṣetraṃ pañcabhirbahubhī raṇaḥ॥04-12

Meaning:- Religious austerities should be practiced alone, study by two, and singing by three. A journey should be undertaken by four, agriculture by five, and war by many together.

अर्थ:-जब आप तप करते है तो अकेले करे. अभ्यास करते है तो दुसरे के साथ करे. गायन करते है तो तीन लोग करे. कृषि चार लोग करे. युद्ध अनेक लोग मिलकर करे.


सा भार्या या शुचिर्दक्षा सा भार्या या पतिव्रता ।
सा भार्या या पतिप्रीता सा भार्या सत्यवादिनी ॥ ०४-१३


sā bhāryā yā śucirdakṣā sā bhāryā yā pativratā ।
sā bhāryā yā patiprītā sā bhāryā satyavādinī ॥ 04-13

Meaning:- She is a true wife who is clean (suci), expert, chaste, pleasing to the husband, and truthful.

अर्थ:-वही अच्छी पत्नी है जो शुचिपूर्ण है, पारंगत है, शुद्ध है, पति को प्रसन्न करने वाली है और सत्यवादी है.


अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः ।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता ॥ ०४-१४


aputrasya gṛhaṃ śūnyaṃ diśaḥ śūnyāstvabāndhavāḥ ।
mūrkhasya hṛdayaṃ śūnyaṃ sarvaśūnyā daridratā ॥ 04-14

Meaning:- The house of a childless person is a void, all directions are void to one who has no relatives, the heart of a fool is also void, but to a poverty stricken man all is void.

अर्थ:-जिस व्यक्ति के पुत्र नहीं है उसका घर उजाड़ है. जिसे कोई सम्बन्धी नहीं है उसकी सभी दिशाए उजाड़ है. मुर्ख व्यक्ति का ह्रदय उजाड़ है. निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़ है.


अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम् ।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम् ॥ ०४-१५

anabhyāse viṣaṃ śāstramajīrṇe bhojanaṃ viṣam ।
daridrasya viṣaṃ goṣṭhī vṛddhasya taruṇī viṣam ॥ 04-15

Meaning:- Scriptural lessons not put into practice are poison; a meal is poison to him who suffers from indigestion; a social gathering is poison to a poverty stricken person; and a young wife is poison to an aged man.

अर्थ:-जिस अध्यात्मिक सीख का आचरण नहीं किया जाता वह जहर है. जिसका पेट ख़राब है उसके लिए भोजन जहर है. निर्धन व्यक्ति के लिए लोगो का किसी सामाजिक या व्यक्तिगत कार्यक्रम में एकत्र होना जहर है.



अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम् ।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम् ॥ ०४-१५

anabhyāse viṣaṃ śāstramajīrṇe bhojanaṃ viṣam ।
daridrasya viṣaṃ goṣṭhī vṛddhasya taruṇī viṣam ॥ 04-15

Meaning:- Scriptural lessons not put into practice are poison; a meal is poison to him who suffers from indigestion; a social gathering is poison to a poverty stricken person; and a young wife is poison to an aged man.

अर्थ:-जिस अध्यात्मिक सीख का आचरण नहीं किया जाता वह जहर है. जिसका पेट ख़राब है उसके लिए भोजन जहर है. निर्धन व्यक्ति के लिए लोगो का किसी सामाजिक या व्यक्तिगत कार्यक्रम में एकत्र होना जहर है.



त्यजेद्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ।
त्यजेत्क्रोधमुखीं भार्यां निःस्नेहान्बान्धवांस्त्यजेत् ॥ ०४-१६

tyajeddharmaṃ dayāhīnaṃ vidyāhīnaṃ guruṃ tyajet ।
tyajetkrodhamukhīṃ bhāryāṃ niḥsnehānbāndhavāṃstyajet ॥

Meaning:- That man who is without religion and mercy should be rejected. A guru without spiritual knowledge should be rejected. The wife with an offensive face should be given up, and so should relatives who are without affection.

अर्थ:-जिस व्यक्ति के पास धर्म और दया नहीं है उसे दूर करो. जिस गुरु के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है उसे दूर करो. जिस पत्नी के चेहरे पर हरदम घृणा है उसे दूर करो. जिन रिश्तेदारों के पास प्रेम नहीं उन्हें दूर करो.



अध्वा जरा देहवतां पर्वतानां जलं जरा ।
अमैथुनं जरा स्त्रीणां वस्त्राणामातपो जरा ॥ ०४-१७

adhvā jarā dehavatāṃ parvatānāṃ jalaṃ jarā ।
amaithunaṃ jarā strīṇāṃ vastrāṇāmātapo jarā ॥ 04-17

Meaning:- Constant travel brings old age upon a man; a horse becomes old by being constantly tied up; lack of sexual contact with her husband brings old age upon a woman; and garments become old through being left in the sun.

अर्थ:-सतत भ्रमण करना व्यक्ति को बूढ़ा बना देता है. यदि घोड़े को हरदम बांध कर रखते है तो वह बूढा हो जाता है. यदि स्त्री उसके पति के साथ प्रणय नहीं करती हो तो बुढी हो जाती है. धुप में रखने से कपडे पुराने हो जाते है.



कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ ।
कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥ ०४-१८

kaḥ kālaḥ kāni mitrāṇi ko deśaḥ kau vyayāgamau ।
kaścāhaṃ kā ca me śaktiriti cintyaṃ muhurmuhuḥ ॥ 04-18

Meaning:- Consider again and again the following: the right time, the right friends, the right place, the right means of income, the right ways of spending, and from whom you derive your power.

अर्थ:-इन बातो को बार बार गौर करे… सही समय सही मित्र सही ठिकाना पैसे कमाने के सही साधन पैसे खर्चा करने के सही तरीके आपके उर्जा स्रोत.


अग्निर्देवो द्विजातीनां मुनीनां हृदि दैवतम् ।
प्रतिमा स्वल्पबुद्धीनां सर्वत्र समदर्शिनः ॥ ०४-१९

agnirdevo dvijātīnāṃ munīnāṃ hṛdi daivatam ।
pratimā svalpabuddhīnāṃ sarvatra samadarśinaḥ ॥ 04-19

Meaning:- For the twice-born the fire (Agni) is a representative of God. The Supreme Lord resides in the heart of His devotees. Those of average intelligence (alpa-buddhi or kanista-adhikari) see God only in His srimurti, but those of broad vision see the Supreme Lord everywhere.

अर्थ:-द्विज अग्नि में भगवान् देखते है. भक्तो के ह्रदय में परमात्मा का वास होता है. जो अल्प मति के लोग है वो मूर्ति में भगवान् देखते है. लेकिन जो व्यापक दृष्टी रखने वाले लोग है, वो यह जानते है की भगवान सर्व व्यापी है.


गुरुरग्निर्द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः ।
पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याभ्यागतो गुरुः ॥ ०५-०१


gururagnirdvijātīnāṃ varṇānāṃ brāhmaṇo guruḥ ।
patireva guruḥ strīṇāṃ sarvasyābhyāgato guruḥ ॥ 05-01

Meaning:- Agni is the worshipable person for the all; the Brahmana for all other caste; the husband for the wife; and the guest who comes for food at the midday meal for Host.

अर्थ:-ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए . दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए . पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आये उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए|


यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षणच्छेदनतापताडनैः ।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ॥ ०५-०२


yathā caturbhiḥ kanakaṃ parīkṣyate nigharṣaṇacchedanatāpatāḍanaiḥ ।
tathā caturbhiḥ puruṣaḥ parīkṣyate tyāgena śīlena guṇena karmaṇā ॥ 05-02

Meaning:- As gold is tested in four ways by rubbing, cutting, heating, and beating the same as a man should be tested by these four things: his renunciation, his conduct, his qualities, and his actions.

अर्थ:-सोने की जाँच चार प्रकार से की जाती हैं –उसे कसौटी पर घिसा जाता हैं, काट कर देखा जाता हैं, तपाया और कूटा-पीटा जाता हैं इसी प्रकार मनुष्य के कुल अर्थात् अथार्त श्रेष्ठता की जाँच भी चार प्रकार – त्याग, शील, गुण और उसके
द्वारा किये जाने वाले कार्यो से होती हैं।


तावद्भयेषु भेतव्यं यावद्भयमनागतम् ।
आगतं तु भयं वीक्ष्य प्रहर्तव्यमशङ्कया ॥ ०५-०३


tāvadbhayeṣu bhetavyaṃ yāvadbhayamanāgatam ।
āgataṃ tu bhayaṃ vīkṣya prahartavyamaśaṅkayā ॥ 05-03

Meaning:- A thing may be dreaded as long as it has not overtaken you, but once it has come upon you, try to get rid of it without hesitation.

अर्थ:-बुद्धिमान व्यक्ति को तब तक ही भय से डरना या घबराना चाहिए, जब तक भय उसके सामने नहीं आ जाता, जब एक बार भय अथवा या कष्ट आ ही जाए तो उसका डट कर मुकाबला करना चाहिए भय के सामने आ जाने पर शंकित होना अथवा घबराना समझदारी का काम नहीं।


एकोदरसमुद्भूता एकनक्षत्रजातकाः ।
न भवन्ति समाः शीले यथा बदरकण्टकाः ॥ ०५-०४


ekodarasamudbhūtā ekanakṣatrajātakāḥ ।
na bhavanti samāḥ śīle yathā badarakaṇṭakāḥ ॥ 05-04

Meaning:- Though persons are born from the same womb and under the same stars, they do not become alike in disposition as the thousand fruits of the badari tree.

अर्थ:-एक ही नक्षत्र अथवा समय में और एक ही माँ के गर्भ से उत्पन्न जुड़वाँ बच्चे भी समान स्वभाव के नहीं होते, उदाहरण के लिए बेर के वृक्ष में बेर के फल भी उत्पन्न होते हैं और कांटे भी उगते हैं, पर उन दोनों का स्वभाव भिन्न हैं फल तो लोगो को स्वाद और तृप्ति देते हैं परन्तु कांटे चुभन पैदा करने के रूप में दुःख देते हैं।

निःस्पृहो नाधिकारी स्यान् नाकामो मण्डनप्रियः ।
नाविदग्धः प्रियं ब्रूयात्स्पष्टवक्ता न वञ्चकः ॥ ०५-०५


niḥspṛho nādhikārī syān nākāmo maṇḍanapriyaḥ ।
nāvidagdhaḥ priyaṃ brūyātspaṣṭavaktā na vañcakaḥ॥05-05

Meaning:-A single son endowed with good qualities is far better than a hundred devoid of them. For the moon, though one, dispels the darkness, which the stars, though numerous, can not.

अर्थ:-जिस प्रकार एक चांद ही रात्रि के अंधकार को दूर करता है, असंख्य तारे मिलकर भी रात्रि के गहन अंधकार को दूर नहीं कर सकते, उसी प्रकार एक गुणी पुत्र ही अपने कुल का नाम रोशन करता है, उसे ऊंचा उठाता है; ख्याति दिलाता है।


मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः ।
परांगना कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भगाः ॥ ०५-०६


mūrkhāṇāṃ paṇḍitā dveṣyā adhanānāṃ mahādhanāḥ ।
parāṃganā kulastrīṇāṃ subhagānāṃ ca durbhagāḥ ॥05-06

Meaning:- The learned are envied by the foolish, rich men by the poor, chaste women by adulteresses; and beautiful ladies by ugly ones.

अर्थ:-यह संसार की रीति हैं कि पंडितों से मुर्ख ईर्ष्या करते हैं, निर्धन बड़े बड़े धनिकों से अकारण द्वेष करते हैं वैश्याए तथा व्यभिचारिणी स्त्रिया पतिव्रताओ से तथा सौभाग्यवती स्त्रियों से विधवाएं द्वेष करती हैं।


आलस्योपगता विद्या परहस्तगतं धनम् ।
अल्पबीजं हतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम् ॥ ०५-०७


ālasyopagatā vidyā parahastagataṃ dhanam ।
alpabījaṃ hataṃ kṣetraṃ hataṃ sainyamanāyakam ॥05-07

Meaning:- Indolent application ruins study, money is lost when entrusted to others, a farmer who sows his seed sparsely is ruined, and an army is lost for want of a commander.

अर्थ:-आलस्य के कारण तथा अभ्यास के अभाव में प्राप्त विद्या भी नष्ट हो जाती हैं, दुसरे के हाथ में गया हुआ धन काम नहीं आता और न लौट कर वापस ही आता हैं, थोडा बीज डालने से खेत फलता-फूलता नहीं है तथा सेनापतिरहित सेना विजयी नहीं होती।


अभ्यासाद्धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते ।
गुणेन ज्ञायते त्वार्यः कोपो नेत्रेण गम्यते ॥ ०५-०८


abhyāsāddhāryate vidyā kulaṃ śīlena dhāryate ।
guṇena jñāyate tvāryaḥ kopo netreṇa gamyate ॥ 05-08

Meaning:- Learning is retained through putting into practice, family prestige is maintained through good behaviour, a respectable person is recognized by his excellent qualities, and anger is seen in the eyes.

अर्थ:-निरंतर अभ्यास से विद्या की रक्षा होती हैं, सदाचार के संरक्षण से कुल का नाम उज्जवल होता हैं, गुणों के धारण करने से श्रेष्ठता का परिचय मिलता हैं तथा नेत्रों से क्रोध की जानकारी मिलती हैं।


वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।
मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम् ॥ ०५-०९


vittena rakṣyate dharmo vidyā yogena rakṣyate ।
mṛdunā rakṣyate bhūpaḥ satstriyā rakṣyate gṛham ॥ 05-09

Meaning:- Religion is preserved by wealth, knowledge by diligent practice, a king by conciliatory words, and a home by a dutiful housewife.

अर्थ:-धर्म की रक्षा धन के द्वारा, विधा की रक्षा निरन्तर अभ्यास के द्वारा, राजनीति की रक्षा कोमल और दयापूर्ण व्यवहार के द्वारा तथा घर-गृहस्थी की रक्षा कुलीन स्त्री के द्वारा होती हैं।


अन्यथा वेदशास्त्राणि ज्ञानपाण्डित्यमन्यथा ।
अन्यथा तत्पदं शान्तं लोकाः क्लिश्यन्ति चाह्न्यथा ॥ ०५-१०


anyathā vedaśāstrāṇi jñānapāṇḍityamanyathā ।
anyathā tatpadaṃ śāntaṃ lokāḥ kliśyanti cāhnyathā॥ 05-10

Meaning:- Those who blaspheme Vedic wisdom, who ridicule the lifestyle recommended in the sastras, and who deride men of peaceful temperament, come to grief unnecessarily.

अर्थ:-वेदों के तत्वज्ञान को, शास्त्रों के विधान और सदाचार को तथा सन्तो के उत्तम चरित्र को मिथ्या कहकर कलंकित करने वाले लोक-परलोक में भारी कष्ट उठाते हैं।


दारिद्र्यनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम् ।
अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी ॥ ०५-११


dāridryanāśanaṃ dānaṃ śīlaṃ durgatināśanam ।
ajñānanāśinī prajñā bhāvanā bhayanāśinī ॥ 05-11

Meaning:- Charity puts and ends to poverty, righteous conduct to misery, discretion to ignorance; and scrutiny to fear.

अर्थ:-दान से दरिद्रता का, सदाचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सदभावना से भय का नाश होता हैं।


नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपुः ।
नास्ति कोपसमो वह्निर्नास्ति ज्ञानात्परं सुखम् ॥ ०५-१२


nāsti kāmasamo vyādhirnāsti mohasamo ripuḥ ।
nāsti kopasamo vahnirnāsti jñānātparaṃ sukham ॥ 05-12

Meaning:- There is no disease (so destructive) as lust, no enemy like infatuation, no fire like wrath, and no happiness like spiritual knowledge.

अर्थ:-इस संसार में कामवासना के समान कोई भयंकर रोग नहीं हैं काम एक ऐसा रोग हैं जो मनुष्य के शरीर को खोखला करके उसे सवर्था अशक्त बना देता हैं,मोह जैसा कोई अजेय-शत्रु नहीं, क्रोध जैसी कोई दूसरी आग नहीं ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं।


जन्ममृत्यू हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाशुभम् ।
नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम् ॥ ०५-१३


janmamṛtyū hi yātyeko bhunaktyekaḥ śubhāśubham ।​
narakeṣu patatyeka eko yāti parāṃ gatim ॥ 05-13

Meaning:-A man is born alone and dies alone and he experiences the good and bad consequences of his karma alone and he goes alone to hell or the Supreme abode.

अर्थ:-व्यक्ति संसार में अकेला ही जन्म लेता हैं तथा अकेला ही मरता हैं उसके द्वारा कमाई हुई धन-सम्पति, भाई बन्धु सब यही रह जाते हैं इस संसार में न कोई किसी के साथ आता हैं और न ही किसी के साथ जाता हैं भला-बुरा सब-कुछ व्यक्ति को अपने आप भुगतना पड़ता हैं इसमें कोई किसी का साथ नहीं देता।


तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम् ।
जिताशस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत् ॥ ०५-१४

tṛṇaṃ brahmavidaḥ svargastṛṇaṃ śūrasya jīvitam ।​
jitāśasya tṛṇaṃ nārī niḥspṛhasya tṛṇaṃ jagat ॥ 05-14

Meaning:- Heaven is but a straw to him who knows spiritual life (Krsna consciousness), so is life to a valiant man, a woman to him who has subdued his senses, and the universe to him who is without attachment for the world.

अर्थ:-जिस आदमी को ब्रह्म-ज्ञान हैं उसके लिए स्वर्ग भी तुच्छ हैं, शूरवीर व्यक्ति के लिए जीवन का कोई मोह नहीं, इसी प्रकार इन्द्रियों को वश में रखने वाले व्यक्ति के लिए नारी का कोई महत्व नहीं, इसी प्रकार निः-स्परह (आसक्तिरहित) व्यक्ति के लिए संसार के भरपूर सुन्दर खज़ाने तथा अन्य वस्तुए तिनके के समान तुच्छ होती हैं।


विद्या मित्रं प्रवासे च भार्या मित्रं गृहेषु च ।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च ॥ ०५-१५

vidyā mitraṃ pravāse ca bhāryā mitraṃ gṛheṣu ca ।
vyādhitasyauṣadhaṃ mitraṃ dharmo mitraṃ mṛtasya ca ll

Meaning:- Learning is a friend on the journey, a wife in the house, medicine in sickness, and religious merit is the only friend after death.

अर्थ:-जब आप सफ़र पर जाते हो तो विद्यार्जन ही आपका मित्र है. घर में पत्नी मित्र है. बीमार होने पर दवा मित्र है. अर्जित पुण्य मृत्यु के बाद एकमात्र मित्र है.



त्यजेद्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ।
त्यजेत्क्रोधमुखीं भार्यां निःस्नेहान्बान्धवांस्त्यजेत् ॥ ०४-१६

tyajeddharmaṃ dayāhīnaṃ vidyāhīnaṃ guruṃ tyajet ।
tyajetkrodhamukhīṃ bhāryāṃ niḥsnehānbāndhavāṃstyajet ॥

Meaning:- That man who is without religion and mercy should be rejected. A guru without spiritual knowledge should be rejected. The wife with an offensive face should be given up, and so should relatives who are without affection.

अर्थ:-जिस व्यक्ति के पास धर्म और दया नहीं है उसे दूर करो. जिस गुरु के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है उसे दूर करो. जिस पत्नी के चेहरे पर हरदम घृणा है उसे दूर करो. जिन रिश्तेदारों के पास प्रेम नहीं उन्हें दूर करो.



वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम् ।
वृथा दानं समर्थस्य वृथा दीपो दिवापि च ॥ ०५-१६

vṛthā vṛṣṭiḥ samudreṣu vṛthā tṛptasya bhojanam ।
vṛthā dānaṃ samarthasya vṛthā dīpo divāpi ca ॥ 05-16

Meaning:- The rain which falls upon the sea is useless, so is food for one who is satiated, in vain is a gift for one who is wealthy, and a burning lamp during the daytime is useless.

अर्थ:-समुंद्र में बादलो का बरसना व्यर्थ हैं, जिसका पेट भरा हुआ हो ऐसे आदमी को भोजन कराना बेकार हैं, धनी व्यक्ति को दान देना व्यर्थ हैं और सूर्य के प्रकाश में दिन में दीपक जलाना व्यर्थ हैं।


नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम् ।
नास्ति चक्षुःसमं तेजो नास्ति धान्यसमं प्रियम् ॥ ०५-१७

nāsti meghasamaṃ toyaṃ nāsti cātmasamaṃ balam ।
nāsti cakṣuḥsamaṃ tejo nāsti dhānyasamaṃ priyam॥05-17

Meaning:- There is no water like rainwater, no strength like one’s own, no light like that of the eyes, and no wealth dearer than food grain.

अर्थ:-बादलो से बरसते हुए जल के समान कोई दूसरा स्वच्छ पानी नहीं होता, आत्मबल के समान कोई दूसरा बल नहीं होता, आँखों की ज्योति के समान कोई दूसरा उत्कृष्ट प्रकाश नहीं होता तथा अन्न के समान कोई दूसरा कोई भोज्य पदार्थ रुचिकर नहीं हो सकता।


अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः ।
मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः ॥ ०५-१८

adhanā dhanamicchanti vācaṃ caiva catuṣpadāḥ ।
mānavāḥ svargamicchanti mokṣamicchanti devatāḥ ॥05-18

Meaning:- The poor wish for wealth, animals for the faculty of speech, men wish for heaven, and godly persons for liberation.

अर्थ:-निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की इच्छा रखता हैं और स्वर्ग में रहने वाला देवता मोक्ष –प्राप्ति की इच्छा करते हैं।


सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः ।
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥ ०५-१९

satyena dhāryate pṛthvī satyena tapate raviḥ ।
satyena vāti vāyuśca sarvaṃ satye pratiṣṭhitam ॥ 05-19

Meaning:- The earth is supported by the power of truth, it is the power of truth that makes the sunshine and the winds blow, indeed all things rest upon truth.

अर्थ:-पृथ्वी सत्य के बल पर ही स्थिर हैं, सत्य की शक्ति से ही सूर्य मैं ताप हैं तेज हैं, सत्य की शक्ति से ही दिन और रात वायु चलती हैं इस प्रकार सारी सृष्टि टिकी हुई हैं।


चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे ।
चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः ॥ ०५-२०

calā lakṣmīścalāḥ prāṇāścale jīvitamandire ।
calācale ca saṃsāre dharma eko hi niścalaḥ ॥ 05-20

Meaning:- The Goddess of wealth is unsteady (Chanchal), and so is the life-breath. The duration of life is uncertain, and the place of habitation is uncertain, but in all this inconsistent world religious merit alone is immovable.

अर्थ:-इस संसार मैं लक्ष्मी अस्थिर हैं, प्राण अनित्य हैं, जीवन भी सदा रहने वाला नहीं, घर परिवार भी नष्ट हो जाने वाला हैं सब पदार्थ अनित्य और नश्वर हैं केवल धर्म ही नित्य और शाश्वत हैं।


नराणां नापितो धूर्तः पक्षिणां चैव वायसः ।
चतुष्पादं श‍ृगालस्तु स्त्रीणां धूर्ता च मालिनी ॥ ०५-२१

narāṇāṃ nāpito dhūrtaḥ pakṣiṇāṃ caiva vāyasaḥ ।
catuṣpādaṃ śa‍ṛgālastu strīṇāṃ dhūrtā ca mālinī ॥ 05-21

Meaning:- Among men, the barber is cunning, among birds the crow, among beasts the jackal and among women, the malin (flower girl).

अर्थ:-मनुष्यों में नाई, पक्षियों में कौआ, पशुओ में गीदड़ और स्त्रियों में मालिन को
धूर्त माना गया हैं ये चारो अकारण ही दुसरो का कम बिगाड़ते हैं एक-दुसरे को
लड़ाते हैं और परेशानी में डालते हैं।


जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति ।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैते पितरः स्मृताः ॥ ०५-२२

janitā copanetā ca yastu vidyāṃ prayacchati ।
annadātā bhayatrātā pañcaite pitaraḥ smṛtāḥ ॥ 05-22

Meaning:- These five are your fathers, he who gave you birth, girdled you with sacred thread, teaches you, provides you with food, and protects you from fearful situations.

अर्थ:-मानव को जन्म देने वाला, यज्ञोपवित संस्कार करने वाला पुरोहित, विद्या देने वाला आचार्य, अन्न देने वाला व्यक्ति तथा भय से मुक्ति दिलाने अथवा रक्षा करने वाला, ये पांचो पिता के समान माने जाते हैं।


राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च ।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैता मातरः स्मृताः ॥ ०५-२३

rājapatnī guroḥ patnī mitrapatnī tathaiva ca ।
patnīmātā svamātā ca pañcaitā mātaraḥ smṛtāḥ ॥ 05-23

Meaning:- These five should be considered as mothers, the king’s wife, the preceptor’s wife, the friend’s wife, your wife’s mother, and your own mother.

अर्थ:-राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता इन सबको अपनी माता के समान मानना चाहिए।


श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम् ।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात् ॥ ०६-०१


śrutvā dharmaṃ vijānāti śrutvā tyajati durmatim ।
śrutvā jñānamavāpnoti śrutvā mokṣamavāpnuyāt ॥ 06-01

Meaning:- By means of hearing one understands dharma, malignity vanishes, knowledge is acquired, and liberation from material bondage is gained.

अर्थ:-श्रवण करने से धर्मं का ज्ञान होता है, द्वेष दूर होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और माया की आसक्ति से मुक्ति होती है.


पक्षिणः काकश्चण्डालः पशूनां चैव कुक्कुरः ।
मुनीनां पापश्चण्डालः सर्वचाण्डालनिन्दकः ॥ ०६-०२


pakṣiṇaḥ kākaścaṇḍālaḥ paśūnāṃ caiva kukkuraḥ ।
munīnāṃ pāpaścaṇḍālaḥ sarvacāṇḍālanindakaḥ ॥ 06-02

Meaning:- Among birds the crow is vile; among beasts the dog; the ascetic whose sins is abominable, but he who blasphemes others is the worst chandala.

अर्थ:-पक्षीयों में कौवा नीच है. पशुओ में कुत्ता नीच है. जो तपस्वी पाप करता है वो घिनौना है. लेकिन जो दूसरो की निंदा करता है वह सबसे बड़ा चांडाल है. द्वारा किये जाने वाले कार्यो से होती हैं।


भस्मना शुद्ध्यते कास्यं ताम्रमम्लेन शुद्ध्यति ।
रजसा शुद्ध्यते नारी नदी वेगेन शुद्ध्यति ॥ ०६-०३


bhasmanā śuddhyate kāsyaṃ tāmramamlena śuddhyati ।
rajasā śuddhyate nārī nadī vegena śuddhyati ॥ 06-03

Meaning:- Brass is polished by ashes; copper is cleaned by tamarind; a woman, by her menses; and a river by its flow.

अर्थ:-राख से घिसने पर पीतल चमकता है . ताम्बा इमली से साफ़ होता है. औरते प्रदर से शुद्ध होती है. नदी बहती रहे तो साफ़ रहती है.


भ्रमन्सम्पूज्यते राजा भ्रमन्सम्पूज्यते द्विजः ।
भ्रमन्सम्पूज्यते योगी स्त्री भ्रमन्ती विनश्यति ॥ ०६-०४


bhramansampūjyate rājā bhramansampūjyate dvijaḥ ।
bhramansampūjyate yogī strī bhramantī vinaśyati ॥ 06-04

Meaning:- The king, the brahmana, and the ascetic yogi who go abroad are respected; but the woman who wanders is utterly ruined.

अर्थ:-राजा, ब्राह्मण और तपस्वी योगी जब दुसरे देश जाते है, तो आदर पाते है. लेकिन औरत यदि भटक जाती है तो बर्बाद हो जाती है.

यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः ।
यस्यार्थाः स पुमाँल्लोके यस्यार्थाः स च पण्डितः ॥ ०६-०५


yasyārthāstasya mitrāṇi yasyārthāstasya bāndhavāḥ ।
yasyārthāḥ sa pumām̐lloke yasyārthāḥ sa ca paṇḍitaḥ ॥ 06-05

Meaning:-He who has wealth has friends. He who is wealthy has relatives. The rich one alone is called a man, and the affluent alone are respected as pandits.

अर्थ:-धनवान व्यक्ति के कई मित्र होते है. उसके कई सम्बन्धी भी होते है. धनवान को ही आदमी कहा जाता है और पैसेवालों को ही पंडित कह कर नवाजा जाता है|


मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः ।
परांगना कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भगाः ॥ ०५-०६


mūrkhāṇāṃ paṇḍitā dveṣyā adhanānāṃ mahādhanāḥ ।
parāṃganā kulastrīṇāṃ subhagānāṃ ca durbhagāḥ ॥05-06

Meaning:- The learned are envied by the foolish, rich men by the poor, chaste women by adulteresses; and beautiful ladies by ugly ones.

अर्थ:-यह संसार की रीति हैं कि पंडितों से मुर्ख ईर्ष्या करते हैं, निर्धन बड़े बड़े धनिकों से अकारण द्वेष करते हैं वैश्याए तथा व्यभिचारिणी स्त्रिया पतिव्रताओ से तथा सौभाग्यवती स्त्रियों से विधवाएं द्वेष करती हैं।


तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः ।
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ॥ ०६-०६


tādṛśī jāyate buddhirvyavasāyo'pi tādṛśaḥ ।
sahāyāstādṛśā eva yādṛśī bhavitavyatā ॥ 06-06

Meaning:- As is the desire of Providence, so functions one's intellect; one's activities are also controlled by Providence; and by the will of Providence one is surrounded by helpers.
अर्थ:-सर्व शक्तिमान के इच्छा से ही बुद्धि काम करती है, वही कर्मो को नियंत्रीत कcरता है. उसी की इच्छा से आस पास में मदद करने वाले आ जाते है.


कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः ।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ ०६-०७


kālaḥ pacati bhūtāni kālaḥ saṃharate prajāḥ ।
kālaḥ supteṣu jāgarti kālo hi duratikramaḥ ॥ 06-07

Meaning:- Time perfects all living beings as well as kills them; it alone is awake when all others are asleep. Time is insurmountable.

अर्थ:-काल सभी जीवो को निपुणता प्रदान करता है. वही सभी जीवो का संहार भी करता है. वह जागता रहता है जब सब सो जाते है. काल को कोई जीत नहीं सकता.


न पश्यति च जन्मान्धः कामान्धो नैव पश्यति ।
मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दोषं न पश्यति ॥ ०६-०८


na paśyati ca janmāndhaḥ kāmāndho naiva paśyati ।
madonmattā na paśyanti arthī doṣaṃ na paśyati ॥ 06-08

Meaning:- Those born blind cannot see; similarly blind are those in the grip of lust. Proud men have no perception of evil; and those bent on acquiring riches see no sin in their actions.

अर्थ:-जो जन्म से अंध है वो देख नहीं सकते. उसी तरह जो वासना के अधीन है वो भी देख नहीं सकते. अहंकारी व्यक्ति को कभी ऐसा नहीं लगता की वह कुछ बुरा कर रहा है. और जो पैसे के पीछे पड़े है उनको उनके कर्मो में कोई पाप दिखाई नहीं देता.


स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते ।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते॥ ०६-०९


svayaṃ karma karotyātmā svayaṃ tatphalamaśnute ।
svayaṃ bhramati saṃsāre svayaṃ tasmādvimucyate॥ 06-09

Meaning:- The spirit soul goes through his own course of karma and he himself suffers the good and bad results thereby accrued. By his own actions he entangles himself in samsara, and by his own efforts he extricates himself.

अर्थ:-जीवात्मा अपने कर्म के मार्ग से जाता है. और जो भी भले बुरे परिणाम कर्मो के आते है उन्हें भोगता है. अपने ही कर्मो से वह संसार में बंधता है और अपने ही कर्मो से बन्धनों से छूटता है|


राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः ।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा ॥ ०६-१०


rājā rāṣṭrakṛtaṃ pāpaṃ rājñaḥ pāpaṃ purohitaḥ ।
bhartā ca strīkṛtaṃ pāpaṃ śiṣyapāpaṃ gurustathā ॥ 06-10

Meaning:- The king is obliged to accept the sins of his subjects; the purohit (priest) suffers for those of the king; a husband suffers for those of his wife; and the guru suffers for those of his pupils.

अर्थ:-राजा को उसके नागरिको के पाप लगते है. राजा के यहाँ काम करने वाले पुजारी को राजा के पाप लगते है. पति को पत्नी के पाप लगते है. गुरु को उसके शिष्यों के पाप लगते है.


ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी ।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ॥ ०६-११


ṛṇakartā pitā śatrurmātā ca vyabhicāriṇī ।
bhāryā rūpavatī śatruḥ putraḥ śatrurapaṇḍitaḥ ॥ 06-11

Meaning:- A father who is a chronic debtor, an adulterous mother, a beautiful wife, and an unlearned son are enemies ( in one's own home).

अर्थ:-अपने ही घर में व्यक्ति के ये शत्रु हो सकते है... उसका बाप यदि वह हरदम कर्ज में डूबा रहता है. उसकी माँ यदि वह दुसरे पुरुष से संग करती है. सुन्दर पत्नी वह लड़का जिसने शिक्षा प्राप्त नहीं की.


लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् स्तब्धमञ्जलिकर्मणा ।
मूर्खं छन्दोऽनुवृत्त्या च यथार्थत्वेन पण्डितम् ॥ ०६-१२


lubdhamarthena gṛhṇīyāt stabdhamañjalikarmaṇā ।
mūrkhaṃ chando'nuvṛttyā ca yathārthatvena paṇḍitam ॥ 06-12

Meaning:-A man is born alone and dies alone and he experiences the good and bad consequences of his karma alone and he goes alone to hell or the Supreme abode.

अर्थ:-व्यक्ति संसार में अकेला ही जन्म लेता हैं तथा अकेला ही मरता हैं उसके द्वारा कमाई हुई धन-सम्पति, भाई बन्धु सब यही रह जाते हैं इस संसार में न कोई किसी के साथ आता हैं और न ही किसी के साथ जाता हैं भला-बुरा सब-कुछ व्यक्ति को अपने आप भुगतना पड़ता हैं इसमें कोई किसी का साथ नहीं देता।


तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम् ।
जिताशस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत् ॥ ०५-१४

tṛṇaṃ brahmavidaḥ svargastṛṇaṃ śūrasya jīvitam ।​
jitāśasya tṛṇaṃ nārī niḥspṛhasya tṛṇaṃ jagat ॥ 05-14

Meaning:- Conciliate a covetous man by means of a gift, an obstinate man with folded hands in salutation, a fool by humouring him, and a learned man by truthful words.

अर्थ:-एक लालची आदमी को भेट वस्तु दे कर संतुष्ट करे. एक कठोर आदमी को हाथ जोड़कर संतुष्ट करे. एक मुर्ख को सम्मान देकर संतुष्ट करे. एक विद्वान् आदमी को सच बोलकर संतुष्ट करे.


वरं न राज्यं न कुराजराज्यं वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो वरं न दार न कुदरदारः ॥ ०६-१३

varaṃ na rājyaṃ na kurājarājyaṃ varaṃ na mitraṃ na kumitramitram ।
varaṃ na śiṣyo na kuśiṣyaśiṣyo varaṃ na dāra na kudaradāraḥ ॥ 06-13

Meaning:- It is better to be without a kingdom than to rule over a petty one; better to be without a friend than to befriend a rascal; better to be without a disciple than to have a stupid one; and better to be without a wife than to have a bad one.

अर्थ:-एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है की व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो. एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो. एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो. एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.


कुराजराज्येन कुतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिर्वृतिः ।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः कुशिष्यशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः ॥ ०६-१४

kurājarājyena kutaḥ prajāsukhaṃ kumitramitreṇa kuto'bhinirvṛtiḥ ।
kudāradāraiśca kuto gṛhe ratiḥ kuśiṣyaśiṣyamadhyāpayataḥ kuto yaśaḥ ॥ 06-14

Meaning:- How can people be made happy in a petty kingdom? What peace can we expect from a rascal friend? What happiness can we have at home in the company of a bad wife? How can renown be gained by instructing an unworthy disciple?

अर्थ:-एक बेकार राज्य में लोग सुखी कैसे हो? एक पापी से किसी शान्ति की प्राप्ति कैसे हो? एक बुरी पत्नी के साथ घर में कौनसा सुख प्राप्त हो सकता है. एक नालायक शिष्य को शिक्षा देकर कैसे कीर्ति प्राप्त हो?


सिंहादेकं बकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात् ।
वायसात्पञ्च शिक्षेच्च षट्शुनस्त्रीणि गर्दभात् ॥ ०६-१५

siṃhādekaṃ bakādekaṃ śikṣeccatvāri kukkuṭāt ।
vāyasātpañca śikṣecca ṣaṭśunastrīṇi gardabhāt ॥ 06-15

Meaning:- Every creature has some special quality about it which cam serve as example or lesson for humans to learn things. A lion and crane teach us one lesson each. A cock has four, a crow five, dog six and donkey has three lessons to impart to us. They are as following. Learn one thing from a lion; one from a crane; four from a cock; five​
from a crow; six from a dog; and three from an ass

अर्थ:-समुंद्र में बादलो का बरसना व्यर्थ हैं, जिसका पेट भरा हुआ हो ऐसे आदमी को भोजन कराना बेकार हैं, धनी व्यक्ति को दान देना व्यर्थ हैं और सूर्य के प्रकाश में दिन में दीपक जलाना व्यर्थ हैं।


प्रभूतं कार्यमल्पं वा यन्नरः कर्तुमिच्छति ।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते ॥ ०६-१६

prabhūtaṃ kāryamalpaṃ vā yannaraḥ kartumicchati ।
sarvārambheṇa tatkāryaṃ siṃhādekaṃ pracakṣate ॥ 06-16

Meaning:- The one excellent thing that can be learned from a lion is that whatever a man intends doing should be done by him with a whole-hearted and strenuous effort.

अर्थ:-शेर से यह बढ़िया बात सीखे की आप जो भी करना चाहते हो एकदिली से और जबरदस्त प्रयास से करे.


इन्द्रियाणि च संयम्य रागद्वेषविवर्जितः ।
समदुःखसुखः शान्तः तत्त्वज्ञः साधुरुच्यते ॥ ०६-१७

indriyāṇi ca saṃyamya rāgadveṣavivarjitaḥ ।
samaduḥkhasukhaḥ śāntaḥ tattvajñaḥ sādhurucyate ॥ 06-17

Meaning:- The wise man should restrain his senses like the crane and accomplish his purpose with due knowledge of his place, time and ability.

अर्थ:-बुद्धिमान व्यक्ति अपने इन्द्रियों को बगुले की तरह वश में करते हुए अपने लक्ष्य को जगह, समय और योग्यता का पूरा ध्यान रखते हुए पूर्ण करे.


प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागं च बन्धुषु ।
स्वयमाक्रम्य भुक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात् ॥ ०६-१८

pratyutthānaṃ ca yuddhaṃ ca saṃvibhāgaṃ ca bandhuṣu ।
svayamākramya bhuktaṃ ca śikṣeccatvāri kukkuṭāt ॥ 06-18

Meaning:- To wake at the proper time; to take a bold stand and fight; to make a fair division (of property) among relations; and to earn one's own bread by personal exertion are the four excellent things to be learned from a cock.

अर्थ:-मुर्गे से हे चार बाते सीखे... १. सही समय पर उठे. २. नीडर बने और लढ़े. ३. संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे. ४. अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे.


गूढमैथुनचारित्वं काले काले च सङ्ग्रहम् ।
अप्रमत्तमविश्वासं पञ्च शिक्षेच्च वायसात् ॥ ०६-१९

gūḍhamaithunacāritvaṃ kāle kāle ca saṅgraham ।
apramattamaviśvāsaṃ pañca śikṣecca vāyasāt ॥ 06-19

Meaning:- Union in privacy (with one's wife); boldness; storing away useful items; watchfulness; and not easily trusting others; these five things are to be learned from a crow.

अर्थ:-कौवे से ये पाच बाते सीखे... १. अपनी पत्नी के साथ एकांत में प्रणय करे. २. नीडरता ३. उपयोगी वस्तुओ का संचय करे. ४. सभी ओर दृष्टी घुमाये. ५. दुसरो पर आसानी से विश्वास ना करे.


बह्वाशी स्वल्पसन्तुष्टः सनिद्रो लघुचेतनः ।
स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेते श्वानतो गुणाः ॥ ०६-२०

bahvāśī svalpasantuṣṭaḥ sanidro laghucetanaḥ ।
svāmibhaktaśca śūraśca ṣaḍete śvānato guṇāḥ ॥ 06-20

Meaning:- Contentment with little or nothing to eat although one may have a great appetite; to awaken instantly although one may be in a deep slumber; unflinching devotion to the master; and bravery; these six qualities should be learned from the dog.

अर्थ:-कुत्ते में मिलने पर बहुत खाने की क्षमता होती है। न मिलने पर वह थोड़े में ही सन्तुष्ट हो जाता है। वह ख़ूब गहरी नींद सोता है लेकिन तनिक-सी आहट से जाग जाता है। वह बहुत स्वामी-भक्त और वीर होता है – ये छः गुण कुत्ते से सीखने योग्य हैं।


सुश्रान्तोऽपि वहेद्भारं शीतोष्णं न च पश्यति ।
सन्तुष्टश्चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ॥ ०६-२१

suśrānto'pi vahedbhāraṃ śītoṣṇaṃ na ca paśyati ।
santuṣṭaścarate nityaṃ trīṇi śikṣecca gardabhāt ॥ 06-21

Meaning:- Although an ass is tired, he continues to carry his burden; he is unmindful of cold and heat; and he is always contented; these three things should be learned from the ass.

अर्थ:-गधे से ये तीन बाते सीखे. १. अपना बोझा ढोना ना छोड़े. २. सर्दी गर्मी की चिंता ना करे. ३. सदा संतुष्ट रहे.


य एतान्विंशतिगुणानाचरिष्यति मानवः ।
कार्यावस्थासु सर्वासु अजेयः स भविष्यति ॥ ०६-२२

ya etānviṃśatiguṇānācariṣyati mānavaḥ ।
kāryāvasthāsu sarvāsu ajeyaḥ sa bhaviṣyati ॥ 06-22

Meaning:- He who shall practice these twenty virtues shall become invincible in all his undertakings.

अर्थ:-यहां आचार्य चाणक्य व्यक्ति के सफल काम होने की चर्चा करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य इन बीस गुणों को अपने जीवन में धारण करेगा, वह सब कार्यों और सब मनोरथों में विजयी होगा।


अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च ।
वञ्चनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत् ॥ ०७-०१


arthanāśaṃ manastāpaṃ gṛhe duścaritāni ca ।
vañcanaṃ cāpamānaṃ ca matimānna prakāśayet ॥ 07-01

Meaning:- A wise man should not reveal his loss of wealth, the vexation of his mind, the misconduct of his own wife, base words spoken by others, and disgrace that has befallen him.

अर्थ:-एक बुद्धिमान व्यक्ति को निम्नलिखित बातें किसी को नहीं बतानी चाहिए ..
१. की उसकी दौलत खो चुकी है.
२. उसे क्रोध आ गया है.
३. उसकी पत्नी ने जो गलत व्यवहार किया.
४. लोगो ने उसे जो गालिया दी.
५. वह किस प्रकार बेइज्जत हुआ है.


धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासङ्ग्रहणे तथा ।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ॥ ०७-०२


dhanadhānyaprayogeṣu vidyāsaṅgrahaṇe tathā ।
āhāre vyavahāre ca tyaktalajjaḥ sukhī bhavet ॥ 07-02

Meaning:- He who gives up shyness in monetary dealings, in acquiring knowledge, in eating and in business, becomes happy.

अर्थ:-जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंदा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है.


सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च ।
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम् ॥ ०७-०३


santoṣāmṛtatṛptānāṃ yatsukhaṃ śāntireva ca ।
na ca taddhanalubdhānāmitaścetaśca dhāvatām ॥ 07-03

Meaning:- The happiness and peace attained by those satisfied by the nectar of spiritual tranquillity is not attained by greedy persons restlessly moving here and there.

अर्थ:-जो सुख और शांति का अनुभव स्वरुप ज्ञान को प्राप्त करने से होता है, वैसा अनुभव जो लोभी लोग धन के लोभ में यहाँ वहा भटकते रहते है उन्हें नहीं होता.


सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने ।
त्रिषु चैव न कर्तव्योऽध्ययने जपदानयोः ॥ ०७-०४


santoṣastriṣu kartavyaḥ svadāre bhojane dhane ।
triṣu caiva na kartavyo'dhyayane japadānayoḥ ॥ 07-04

Meaning:- One should feel satisfied with the following three things; his own wife, food given by Providence and wealth acquired by honest effort; but one should never feel satisfied with the following three; study, chanting the holy names of the Lord (japa) and charity.

अर्थ:-व्यक्ति नीचे दी हुए ३ चीजो से संतुष्ट रहे...
१. खुदकी पत्नी २. वह भोजन जो विधाता ने प्रदान किया. ३. उतना धन जितना इमानदारी से मिल गया.
लेकिन व्यक्ति को नीचे दी हुई ३ चीजो से संतुष्ट नहीं होना चाहिए...
१. अभ्यास २. भगवान् का नाम स्मरण. ३. परोपकार

विप्रयोर्विप्रवह्न्योश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः ।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च ॥ ०७-०५


viprayorvipravahnyośca dampatyoḥ svāmibhṛtyayoḥ ।
antareṇa na gantavyaṃ halasya vṛṣabhasya ca ॥ 07-05

Meaning:-Do not pass between two brahmanas, between a brahmana and his sacrificial fire, between a wife and her husband, a master and his servant, and a plough
and an ox.

अर्थ:-इन दोनों के मध्य से कभी ना जाए..
१. दो ब्राह्मण.
२. ब्राह्मण और उसके यज्ञ में जलने वाली अग्नि.
३. पति पत्नी.
४. स्वामी और उसका चाकर.
५. हल और बैल.


पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च ।
नैव गां न कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा ॥ ०७-०६


pādābhyāṃ na spṛśedagniṃ guruṃ brāhmaṇameva ca ।
naiva gāṃ na kumārīṃ ca na vṛddhaṃ na śiśuṃ tathā ॥ 07-06

Meaning:- Do not let your foot touch fire, the spiritual master or a brahmana; it must never touch a cow, a virgin, an old person or a child.

अर्थ:-अपना पैर कभी भी इनसे न छूने दे...१. अग्नि २. अध्यात्मिक गुरु ३. ब्राह्मण ४. गाय ५. एक कुमारिका ६. एक उम्र में बड़ा आदमी. ५. एक बच्चा.



शकटं पञ्चहस्तेन दशहस्तेन वाजिनम् ।
गजं हस्तसहस्रेण देशत्यागेन दुर्जनम् ॥ ०७-०७


śakaṭaṃ pañcahastena daśahastena vājinam ।
gajaṃ hastasahasreṇa deśatyāgena durjanam ॥ 07-07

Meaning:- Keep one thousand cubits away from an elephant, a hundred from a horse, ten from a horned beast, but keep away from the wicked by leaving the country.
अर्थ:-बेल सींग वाले जानवर से 5 हाथ, घोड़े से 10 हाथ और हाथी से 100 हाथ दूर ही रहना चाहिए| लेकिन दुष्ट से बचने के लिए यदि देश भी छोड़ना पड़े तो निति गत है|



हस्ती अङ्कुशमात्रेण वाजी हस्तेन ताड्यते ।
श‍ृङ्गी लगुडहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः ॥ ०७-०८


hastī aṅkuśamātreṇa vājī hastena tāḍyate ।
śa‍ṛṅgī laguḍahastena khaḍgahastena durjanaḥ ॥ 07-08

Meaning:-An elephant is controlled by a goad (ankusha), a horse by a slap of the hand, a horned animal with the show of a stick, and a rascal with a sword.

अर्थ:-हाथी को अंकुश (हाथी को नियंत्रित करने वाला लोहे का काँटा), घोड़े को हाथ से, सींगों वाले पशुओं को हाथ और लाठी से नियंत्रित करना चाहिए| लेकिन दुष्ट व्यक्ति को केवल हाथ में खडग और तलवार लेकर ही नियंत्रित किया जाता है|


तुष्यन्ति भोजने विप्रा मयूरा घनगर्जिते ।
साधवः परसम्पत्तौ खलाः परविपत्तिषु ॥ ०७-०९


tuṣyanti bhojane viprā mayūrā ghanagarjite ।
sādhavaḥ parasampattau khalāḥ paravipattiṣu ॥ 07-09

Meaning:-Brahmanas feel satisfaction in a good meal, peacocks when sees sky full of thunder, a sadhu in seeing the prosperity of others, and the wicked in the misery of
others.

अर्थ:-ब्राह्मण अच्छे भोजन से तृप्त होते है. मोर मेघ गर्जना से. साधू दुसरो की सम्पन्नता देखकर और दुष्ट दुसरो की विपदा देखकर.


अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम् ।
आत्मतुल्यबलं शत्रुं विनयेन बलेन वा ॥ ०७-१०


anulomena balinaṃ pratilomena durjanam ।
ātmatulyabalaṃ śatruṃ vinayena balena vā ॥ 07-10

Meaning:- Conciliate a strong man by submission, a wicked man by opposition, and the one whose power is equal to yours by politeness or force.

अर्थ:-एक शक्तिशाली आदमी से उसकी बात मानकर समझौता करे. एक दुष्ट का प्रतिकार करे. और जिनकी शक्ति आपकी शक्ति के बराबर है उनसे समझौता विनम्रता से या कठोरता से करे.


बाहुवीर्यं बलं राज्ञां ब्रह्मणो ब्रह्मविद्बली ।
रूपयौवनमाधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम् ॥ ०७-११


bāhuvīryaṃ balaṃ rājñāṃ brahmaṇo brahmavidbalī ।
rūpayauvanamādhuryaṃ strīṇāṃ balamanuttamam ॥ 07-11

Meaning:- The power of a king lies in his mighty arms; that of a Brahmana in his spiritual knowledge; and that of a woman in her beauty youth and sweet words.

अर्थ:-एक राजा की शक्ति उसकी शक्तिशाली भुजाओ में है. एक ब्राह्मण की शक्ति उसके स्वरुप ज्ञान में है. एक स्त्री की शक्ति उसकी सुन्दरता, तारुण्य और मीठे वचनों में है.


नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् ।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ॥ ०७-१२


nātyantaṃ saralairbhāvyaṃ gatvā paśya vanasthalīm ।
chidyante saralāstatra kubjāstiṣṭhanti pādapāḥ ॥ 07-12

Meaning:-Do not be very upright in your dealings for you would see by going to the forest that straight trees are cut down while crooked ones are left standing.

अर्थ:-अपने व्यवहार में बहुत सीधे ना रहे. आप यदि वन जाकर देखते है तो पायेंगे की जो पेड़ सीधे उगे उन्हें काट लिया गया और जो पेड़ आड़े तिरछे है वो खड़े है.


यत्रोदकं तत्र वसन्ति हंसा- स्तथैव शुष्कं परिवर्जयन्ति ।
न हंसतुल्येन नरेण भाव्यं स्त्यजन्तः पुनराश्रयन्ते ॥ ०७-१३


yatrodakaṃ tatra vasanti haṃsā-stathaiva śuṣkaṃ parivarjayanti ।
na haṃsatulyena nareṇa bhāvyaṃ punastyajantaḥ punarāśrayante ॥ 07-13

Meaning:-Swans live wherever there is water, and leave the place where water dries up; let not a man act so -- and comes and goes as he pleases.

अर्थ:-हंस वहा रहते है जहा पानी होता है. पानी सूखने पर वे उस जगह को छोड़ देते है. आप किसी आदमी को ऐसा व्यवहार ना करने दे की वह आपके पास आता जाता रहे.


उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् ।
तडागोदरसंस्थानां परीवाह इवाम्भसाम् ॥ ०७-१४
upārjitānāṃ vittānāṃ tyāga eva hi rakṣaṇam ।
taḍāgodarasaṃsthānāṃ parīvāha ivāmbhasām ॥ 07-14

Meaning:- Accumulated wealth is saved by spending just as incoming fresh water is saved by letting out stagnant water.

अर्थ:-संचित धन खर्च करने से बढ़ता है. उसी प्रकार जैसे ताजा जल जो अभी आया
है बचता है, यदि पुराने स्थिर जल को निकल बहार किया जाये.


यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः ।
यस्यार्थाः स पुमाँल्लोके यस्यार्थाः स च पण्डितः ॥ ०७-१५

yasyārthāstasya mitrāṇi yasyārthāstasya bāndhavāḥ ।
yasyārthāḥ sa pumām̐lloke yasyārthāḥ sa ca paṇḍitaḥ ॥ 07-15

Meaning:- He who has wealth has friends and relations; he alone survives and is respected as a man.

अर्थ:-वह व्यक्ति जिसके पास धन है उसके पास मित्र और सम्बन्धी भी बहोत रहते
है. वही इस दुनिया में टिक पाता है और उसीको इज्जत मिलती है.



स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे ।
दानप्रसंगो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च ॥ ०७-१६

svargasthitānāmiha jīvaloke catvāri cihnāni vasanti dehe ।
dānaprasaṃgo madhurā ca vāṇī devārcanaṃ brāhmaṇatarpaṇaṃ ca ॥ 07-16

Meaning:- The following four characteristics of the denizens of heaven may be seen in the residents of this earth planet; charity, sweet words, worship of the Supreme Personality of Godhead, and satisfying the needs of Brahmanas.

अर्थ:-स्वर्ग में निवास करने वाले देवता लोगो में और धरती पर निवास करने वाले लोगो में कुछ साम्य पाया जाता है. उनके समान गुण है १. परोपकार २. मीठे वचन ३. भगवान् की आराधना. ४. ब्राह्मणों के जरूरतों की पूर्ति.


अत्यन्तकोपः कटुका च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ।
नीचप्रसंगः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् ॥ ०७-१७

atyantakopaḥ kaṭukā ca vāṇī daridratā ca svajaneṣu vairam ।
nīcaprasaṃgaḥ kulahīnasevā cihnāni dehe narakasthitānām ॥ 07-17

Meaning:- The following qualities of the denizens of hell may characterise men on earth; extreme wrath, harsh speech, enmity with one's relations, the company with the base, and service to men of low extraction.

अर्थ:-नरक में निवास करने वाले और धरती पर निवास करने वालो में साम्यता - १. अत्याधिक क्रोध २. कठोर वचन ३. अपने ही संबंधियों से शत्रुता ४. नीच लोगो से मैत्री ५. हीन हरकते करने वालो की चाकरी.


गम्यते यदि मृगेन्द्रमन्दिरं लभ्यते करिकपालमौक्तिकम् ।
जम्बुकालयगते च प्राप्यते वत्सपुच्छखरचर्मखण्डनम् ॥ ०७-१८

gamyate yadi mṛgendramandiraṃ labhyate karikapālamauktikam ।
jambukālayagate ca prāpyate vatsapucchakharacarmakhaṇḍanam ॥ 07-18

Meaning:- By going to the den of a lion pearls from the head of an elephant may be obtained; but by visiting the hole of a jackal nothing but the tail of a calf or a bit of the hide of an ass may be found.

अर्थ:-यदि आप शेर की गुफा में जाते हो तो आप को हाथी के माथे का मणि मिल सकता है. लेकिन यदि आप लोमड़ी जहा रहती है वहा जाते हो तो बछड़े की पूछ या गधे की हड्डी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा.


शुनः पुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्यया विना ।
न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे ॥ ०७-१९

śunaḥ pucchamiva vyarthaṃ jīvitaṃ vidyayā vinā ।
na guhyagopane śaktaṃ na ca daṃśanivāraṇe ॥ 07-19

Meaning:- The life of an uneducated man is as useless as the tail of a dog, which neither covers its rear end, nor protects it from the bites of insects.

अर्थ:-एक अनपढ़ आदमी की जिंदगी किसी कुत्ते की पूछ की तरह बेकार है. उससे ना उसकी इज्जत ही ढकती है और ना ही कीड़े मक्खियों को भागने के काम आती है.


वाचां शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूतदयाशौचमेतच्छौचं परार्थिनाम् ॥ ०७-२०

vācāṃ śaucaṃ ca manasaḥ śaucamindriyanigrahaḥ ।
sarvabhūtadayāśaucametacchaucaṃ parārthinām ॥ 07-20

Meaning:- Purity of speech, of the mind, of the senses, and a compassionate heart are needed by one who desires to rise to the divine platform.

अर्थ:-यदि आप दिव्यता चाहते है तो आपके वाचा, मन और इन्द्रियों में शुद्धता होनी चाहिए. उसी प्रकार आपके ह्रदय में करुणा होनी चाहिए.


पुष्पे गन्धं तिले तैलं काष्ठेऽग्निं पयसि घृतम् ।
इक्षौ गुडं तथा देहे पश्यात्मानं विवेकतः ॥ ०७-२१

puṣpe gandhaṃ tile tailaṃ kāṣṭhe'gniṃ payasi ghṛtam ।
ikṣau guḍaṃ tathā dehe paśyātmānaṃ vivekataḥ ॥ 07-21

Meaning:- As you seek fragrance in a flower, oil in the sesamum seed, fire in wood, ghee (butter) in milk, and jaggery (guda) in sugarcane; so seek the spirit that is in the body by means of discrimination.

अर्थ:-यदि आप दिव्यता चाहते है तो आपके वाचा, मन और इन्द्रियों में शुद्धता होनी चाहिए. उसी प्रकार आपके ह्रदय में करुणा होनी चाहिए.


पुष्पे गन्धं तिले तैलं काष्ठेऽग्निं पयसि घृतम् ।
इक्षौ गुडं तथा देहे पश्यात्मानं विवेकतः ॥ ०७-२१

puṣpe gandhaṃ tile tailaṃ kāṣṭhe'gniṃ payasi ghṛtam ।
ikṣau guḍaṃ tathā dehe paśyātmānaṃ vivekataḥ ॥ 07-21

Meaning:- As you seek fragrance in a flower, oil in the sesamum seed, fire in wood, ghee (butter) in milk, and jaggery (guda) in sugarcane; so seek the spirit that is in the body by means of discrimination.

अर्थ:-जिस प्रकार एक फूल में खुशबु है. तील में तेल है. लकड़ी में अग्नि है. दूध में घी है. गन्ने में गुड है. उसी प्रकार यदि आप ठीक से देखते हो तो हर व्यक्ति में परमात्मा है.


अधमा धनमिच्छन्ति धनमानौ च मध्यमाः ।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम् ॥ ०८-०१


adhamā dhanamicchanti dhanamānau ca madhyamāḥ ।
uttamā mānamicchanti māno hi mahatāṃ dhanam ॥ 08-01

Meaning:- Low class men desire wealth; middle class men both wealth and respect; but the noble, honour only; hence honour is the noble man's true wealth.

अर्थ:-नीच वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन उच्च वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही उच्च लोगो की असली दौलत है.


इक्षुरापः पयो मूलं ताम्बूलं फलमौषधम् ।
भक्षयित्वापि कर्तव्याः स्नानदानादिकाः क्रियाः ॥ ०८-०२


ikṣurāpaḥ payo mūlaṃ tāmbūlaṃ phalamauṣadham ।
bhakṣayitvāpi kartavyāḥ snānadānādikāḥ kriyāḥ ॥ 08-02

Meaning:- Chanakya says even after chewing sugar cane, after taking milk and ater, and after eating fruits, paan and medicine, one can take bath and practice the donation.

अर्थ:-गन्ना, पानी, दूध, कन्द, पान, फल और औषधि – इन वस्तुओं का सेवन करने के बाद भी स्नान, दान, उपासना आदि किये जा सकते हैं।


दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते ।
यदन्नं भक्षयते नित्यं जायते तादृशी प्रजा ॥ ०८-०३


dīpo bhakṣayate dhvāntaṃ kajjalaṃ ca prasūyate ।
yadannaṃ bhakṣayate nityaṃ jāyate tādṛśī prajā ॥ 08-03

Meaning:- The lamp eats up the darkness and therefore it produces blackened lamp; in the same way according to the nature of our diet (sattva, rajas, or tamas) we produce offspring in similar quality.

अर्थ:-दीपक अँधेरे का भक्षण करता है इसीलिए काला धुआ बनाता है. इसी प्रकार हम जिस प्रकार का अन्न खाते है. माने सात्विक, राजसिक, तामसिक उसी प्रकार के विचार उत्पन्न करते है.


वित्तं देहि गुणान्वितेषु मतिमन्नान्यत्र देहि क्वचित् प्राप्तं वारिनिधेर्जलं घनमुखे माधुर्ययुक्तं सदा ।
जीवान्स्थावरजंगमांश्च सकलान्संजीव्य भूमण्डलं भूयः पश्य तदेव कोटिगुणितं गच्छन्तमम्भोनिधिम् ॥ ०८-०४


vittaṃ dehi guṇānviteṣu matimannānyatra dehi kvacit
prāptaṃ vārinidherjalaṃ ghanamukhe mādhuryayuktaṃ sadā ।
jīvānsthāvarajaṃgamāṃśca sakalānsaṃjīvya bhūmaṇḍalaṃ
bhūyaḥ paśya tadeva koṭiguṇitaṃ gacchantamambhonidhim ॥ 08-04

Meaning:- O wise man! Give your wealth only to the worthy and never to others. The water of the sea received by the clouds is always sweet. The rainwater enlivens all living beings of the earth both movable (insects, animals, humans, etc.) and immovable (plants, trees, etc.), and then returns to the ocean where its value is multiplied a million
fold.

अर्थ:-हे विद्वान् पुरुष ! अपनी संपत्ति केवल पात्र को ही दे और दूसरो को कभी ना दे. जो जल बादल को समुद्र देता है वह बड़ा मीठा होता है. बादल वर्षा करके वह जल पृथ्वी के सभी चल अचल जीवो को देता है और फिर उसे समुद्र को लौटा देता है.

चाण्डालानां सहस्रैश्च सूरिभिस्तत्त्वदर्शिभिः ।
एको हि यवनः प्रोक्तो न नीचो यवनात्परः ॥ ०८-०५


cāṇḍālānāṃ sahasraiśca sūribhistattvadarśibhiḥ ।
eko hi yavanaḥ prokto na nīco yavanātparaḥ ॥ 08-05

Meaning:-The wise who discern the essence of things have declared that the yavana (meat eater) is equal in baseness to a thousand candalas (the lowest class), and hence a yavana is the basest of men; indeed there is no one more base.

अर्थ:-विद्वान् लोग जो तत्त्व को जानने वाले है उन्होंने कहा है की मास खाने वाले चांडालो से हजार गुना नीच है. इसलिए ऐसे आदमी से नीच कोई नहीं.


तैलाभ्यङ्गे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि ।
तावद्भवति चाण्डालो यावत्स्नानं न चाचरेत् ॥ ०८-०६


tailābhyaṅge citādhūme maithune kṣaurakarmaṇi ।
tāvadbhavati cāṇḍālo yāvatsnānaṃ na cācaret ॥ 08-06

Meaning:- After having rubbed oil on the body, after encountering the smoke from a funeral pyre, after sexual intercourse, and after being shaved, one remains a chandala until he bathes.

अर्थ:-शरीर पर मालिश करने के बाद, स्मशान में चिता का धुआ शरीर पर आने के बाद, सम्भोग करने के बाद, दाढ़ी बनाने के बाद जब तक आदमी नहा ना ले वह चांडाल रहता है.


अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम् ।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषापहम् ॥ ०८-०७


ajīrṇe bheṣajaṃ vāri jīrṇe vāri balapradam ।
bhojane cāmṛtaṃ vāri bhojanānte viṣāpaham ॥ 08-07

Meaning:- Water is the medicine for indigestion; it is invigorating when the food that is eaten is well digested; it is like nectar when drunk in the middle of a dinner; and it is like poison when taken at the end of a meal.
अर्थ:- जल की गुणवत्ता बताते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भोजन यदि पच नहीं रहा है तो जल औषधि के समान कार्य करता है। भोजन करते समय जल अमृत है तथा भोजन के बाद विष का काम करता है


हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हतश्चाज्ञानतो नरः ।
हतं निर्णायकं सैन्यं स्त्रियो नष्टा ह्यभर्तृकाः ॥ ०८-०८


hataṃ jñānaṃ kriyāhīnaṃ hataścājñānato naraḥ ।
hataṃ nirṇāyakaṃ sainyaṃ striyo naṣṭā hyabhartṛkāḥ ॥ 08-08

Meaning:-Knowledge is lost without putting it into practice; a man is lost due to ignorance; an army is lost without a commander; and a woman is lost without a husband.

अर्थ:-यदि ज्ञान को उपयोग में ना लाया जाए तो वह खो जाता है. आदमी यदि अज्ञानी है तो खो जाता है. सेनापति के बिना सेना खो जाती है. पति के बिना पत्नी खो जाती है.


वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्तगतं धनम् ।
भोजनं च पराधीनं तिस्रः पुंसां विडम्बनाः ॥ ०८-०९


vṛddhakāle mṛtā bhāryā bandhuhastagataṃ dhanam ।
bhojanaṃ ca parādhīnaṃ tisraḥ puṃsāṃ viḍambanāḥ ॥ 08-09

Meaning:-A man who encounters the following three is unfortunate; the death of his wife in his old age, the entrusting of money into the hands of
relatives, and depending upon others for food

अर्थ:-वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है. वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है. वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर निर्भर है.


नाग्निहोत्रं विना वेदा न च दानं विना क्रिया ।
न भावेन विना सिद्धिस्तस्माद्भावो हि कारणम् ॥ ०८-१०


nāgnihotraṃ vinā vedā na ca dānaṃ vinā kriyā ।
na bhāvena vinā siddhistasmādbhāvo hi kāraṇam ॥ 08-10

Meaning:- Chanting of the Vedas without making ritualistic sacrifices to the Supreme Lord through the medium of Agni, and sacrifices not followed by bountiful gifts are futile. Perfection can be achieved only through devotion (to the Supreme Lord) for devotion is the basis of all success.

अर्थ:-यह बाते बेकार है. वेद मंत्रो का उच्चारण करना लेकिन निहित यज्ञ कर्मो को ना करना. यज्ञ करना लेकिन बाद में लोगो को दान दे कर तृप्त ना करना. पूर्णता तो भक्ति से ही आती है. भक्ति ही सभी सफलताओ का मूल है. .


काष्ठपाषाणधातूनां कृत्वा भावेन सेवनम् ।
श्रद्धया च तथा सिद्धिस्तस्य विष्णुप्रसादतः ॥ ०८-११


kāṣṭhapāṣāṇadhātūnāṃ kṛtvā bhāvena sevanam ।
śraddhayā ca tathā siddhistasya viṣṇuprasādataḥ ॥ 08-11

Meaning:- If there is a faith and belief in heart, even the stone sculpture of god is like a real god and blessed in real life.

अर्थ:-काष्ठ, पाषाण व धातु की मूर्तियों की भावना से सेवा करनी चाहिए। श्रद्धा से उनकी सेवा करने पर साक्षात् भगवान विष्णु सिद्धि देते हैं।


न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृण्मये ।
भावे हि विद्यते देवस्तस्माद्भावो हि कारणम् ॥ ०८-१२


na devo vidyate kāṣṭhe na pāṣāṇe na mṛṇmaye ।
bhāve hi vidyate devastasmādbhāvo hi kāraṇam ॥ 08-12

Meaning:-Gods do not exist in the idols made of wood, stone or clay. It is the mental attitude of the worshipper which gives them the feeling that they are worshipping the Gods. Therefore, this mental attitude is the main reason for their worshiping the idols.

अर्थ:-देवता न तो काष्ट (लकडी ) की न पत्थर की और न मिट्टी की मूर्ति में रहते हैं | यह तो भक्तों की भावना है जिस से वे इन मूर्तियों में देवता की उपस्थिति मान कर उनको पूजते हैं। अतः यह भावना ही पूजा करने का प्रमुख कारण है |
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शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम् ।
अपत्यं च कलत्रं च सतां सङ्गतिरेव च ॥ ०८-१३


śāntitulyaṃ tapo nāsti na santoṣātparaṃ sukham ।
apatyaṃ ca kalatraṃ ca satāṃ saṅgatireva ca ॥ 08-13

Meaning:-Swans live wherever there is water, and leave the place where water dries up; let not a man act so -- and comes and goes as he pleases.

अर्थ:-देवता न तो काष्ट (लकडी ) की न पत्थर की और न मिट्टी की मूर्ति में रहते हैं | यह तो भक्तों की भावना है जिस से वे इन मूर्तियों में देवता की उपस्थिति मान कर उनको पूजते हैं। अतः यह भावना ही पूजा करने का प्रमुख कारण है |



क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुधा धेनुः संतोषो नन्दनं वनम्।।14।।

krodho vaivasvato rājā tṛṣṇā vaitaraṇī nadī।​
vidyā kāmadudhā dhenuḥ saṃtoṣo nandanaṃ vanam।।14।।

Meaning:- Accumulated wealth is saved by spending just as incoming fresh water is saved by letting out stagnant water.

अर्थ:-संचित धन खर्च करने से बढ़ता है. उसी प्रकार जैसे ताजा जल जो अभी आया है बचता है, यदि पुराने स्थिर जल को निकल बहार किया जाये.


गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् ।
प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ॥ ०८-१५

guṇo bhūṣayate rūpaṃ śīlaṃ bhūṣayate kulam ।
prāsādaśikharastho'pi kākaḥ kiṃ garuḍāyate ॥ 08-15 ॥

Meaning:- Moral excellence is an ornament for personal beauty; righteous conduct, for high birth; success for learning; and proper spending for
wealth.

अर्थ:-नीति की उत्तमता ही व्यक्ति के सौंदर्य का गहना है. उत्तम आचरण से व्यक्ति उत्तरोत्तर ऊँचे लोक में जाता है. सफलता ही विद्या का आभूषण है. उचित विनियोग ही संपत्ति का गहना है.


निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम् ।
असिद्धस्य हता विद्या ह्यभोगेन हतं धनम् ॥ ०८-१६

nirguṇasya hataṃ rūpaṃ duḥśīlasya hataṃ kulam ।
asiddhasya hatā vidyā hyabhogena hataṃ dhanam ॥ 08-16

Meaning:- The following qualities of the denizens of hell may characterise men on earth; extreme wrath, harsh speech, enmity with one's relations, the company with the base, and service to men of low extraction.

अर्थ:-नरक में निवास करने वाले और धरती पर निवास करने वालो में साम्यता - १. अत्याधिक क्रोध २. कठोर वचन ३. अपने ही संबंधियों से शत्रुता ४. नीच लोगो से मैत्री ५. हीन हरकते करने वालो की चाकरी.


शुद्धं भूमिगतं तोयं शुद्धा नारी पतिव्रता ।
शुचिः क्षेमकरो राजा सन्तोषो ब्राह्मणः शुचिः ॥ ०८-१७

śuddhaṃ bhūmigataṃ toyaṃ śuddhā nārī pativratā ।
śuciḥ kṣemakaro rājā santoṣo brāhmaṇaḥ śuciḥ ॥ 08-17

Meaning:- Water seeping into the earth is pure; and a devoted wife is pure; the king who is the benefactor of his people is pure; and pure is the brahmana who is contented.

अर्थ:-जो जल धरती में समां गया वो शुद्ध है. परिवार को समर्पित पत्नी शुद्ध है. लोगो का कल्याण करने वाला राजा शुद्ध है. वह ब्राह्मण शुद्ध है जो संतुष्ट है.


असन्तुष्टा द्विजा नष्टाः सन्तुष्टाश्च महीभृतः ।
सलज्जा गणिका नष्टा निर्लज्जाश्च कुलाङ्गना ॥ ०८-१८

asantuṣṭā dvijā naṣṭāḥ santuṣṭāśca mahībhṛtaḥ ।
salajjā gaṇikā naṣṭā nirlajjāśca kulāṅganā ॥ 08-18

Meaning:- Discontented Brahmanas, contented kings, shy prostitutes, and immodest housewives are ruined.

अर्थ:-असंतुष्ट ब्राह्मण, संतुष्ट राजा, लज्जा रखने वाली वेश्या, कठोर आचरण करने वाली गृहिणी ये सभी लोग विनाश को प्राप्त होते है.


किं कुलेन विशालेन विद्याहीनेन देहिनाम् ।
दुष्कुलं चापि विदुषो देवैरपि स पूज्यते ॥ ०८-१९

kiṃ kulena viśālena vidyāhīnena dehinām ।
duṣkulaṃ cāpi viduṣo devairapi sa pūjyate ॥ 08-19

Meaning:- Of what avail is a high birth if a person is destitute of scholarship? A man who is of low extraction is honoured even by the demigods if he is learned.

अर्थ:-क्या करना उचे कुल का यदि बुद्धिमत्ता ना हो. एक नीच कुल में उत्पन्न होने वाले विद्वान् व्यक्ति का सम्मान देवता भी करते है.


विद्वान्प्रशस्यते लोके विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ।
विद्यया लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते ॥ ०८-२०

vidvānpraśasyate loke vidvān sarvatra pūjyate ।
vidyayā labhate sarvaṃ vidyā sarvatra pūjyate ॥ 08-20

Meaning:- A learned man is honoured by the people. A learned man commands respect everywhere for his learning. Indeed, learning is honoured everywhere

अर्थ:-विद्वान् व्यक्ति लोगो से सम्मान पाता है. विद्वान् उसकी विद्वत्ता के लिए हर जगह सम्मान पाता है. यह बिलकुल सच है की विद्या हर जगह सम्मानित है.


ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी ।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ॥ ०८-२१

ṛṇakartā pitā śatrurmātā ca vyabhicāriṇī ।
bhāryā rūpavatī śatruḥ putraḥ śatrurapaṇḍitaḥ ॥ 08-21

Meaning:- A father who has incurred a huge debt and a mother who is a wanton woman, both of them are like enemies of their children. Likewise, a very beautiful wife and illiterate son are also like enemies to a person.

अर्थ:-एक पिता जिसने बडी धनराशि ऋण के रूप में ली हो तथा एक माता जो व्यभिचारिणी (दुश्चरित्र ) हो दोनों अपनी सन्तान के लिये शत्रु के समान होते हैं | किसी व्यक्ति की पत्नी यदि अत्यन्त सुन्दर हो तथा सन्तान निरक्षर हो तो ये दोनों भी उसके लिये शत्रु समान ही होते हैं |


मांसभक्ष्यैः सुरापानैर्मुखैश्चाक्षरवर्जितैः ।
पशुभिः पुरुषाकारैर्भाराक्रान्ता हि मेदिनी ॥ ०८-२२

māṃsabhakṣyaiḥ surāpānairmukhaiścākṣaravarjitaiḥ ।
paśubhiḥ puruṣākārairbhārākrāntā hi medinī ॥ 08-22

Meaning:- The earth is encumbered with the weight of the flesh-eaters,winebibbers, dolts (dull and stupid) and blockheads, who are beasts in the form of men.

अर्थ:-यह धरती उन लोगो के भार से दबी जा रही है, जो मास खाते है, दारू पीते है, बेवकूफ है, वे सब तो आदमी होते हुए पशु ही है.


अन्नहीनो दहेद्राष्ट्रं मन्त्रहीनश्च ऋत्विजः ।
यजमानं दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपुः ॥ ०८-२३

annahīno dahedrāṣṭraṃ mantrahīnaśca ṛtvijaḥ ।
yajamānaṃ dānahīno nāsti yajñasamo ripuḥ ॥ 08-23

Meaning:- There is no enemy like a yajna (sacrifice) which consumes the kingdom when not attended by feeding on a large scale; consumes the priest when the chanting is not done properly; and consumes the yajaman (the responsible person) when the gifts are not made.

अर्थ:-उस यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं जिसके उपरांत लोगो को बड़े पैमाने पर भोजन ना कराया जाए. ऐसा यज्ञ राज्यों को ख़तम कर देता है. यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे ख़तम कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेटवस्तू ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा ख़तम हो जाता है.


मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान्विषवत्त्यज ।
क्षमार्जवदयाशौचं सत्यं पीयूषवत्पिब ॥ ०९-०१


muktimicchasi cettāta viṣayānviṣavattyaja ।
kṣamārjavadayāśaucaṃ satyaṃ pīyūṣavatpiba ॥ 09-01

Meaning:- My dear child, if you desire to be free from the cycle of birth and death, then abandon the objects of sense gratification as poison. Drink instead the nectar of forbearance, upright conduct, mercy, cleanliness and truth.

अर्थ:-तात, यदि तुम जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो. इन सब को छोड़कर हे तात तितिक्षा, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य इसका अमृत पियो.


परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः ।
त एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत् ॥ ०९-०२


parasparasya marmāṇi ye bhāṣante narādhamāḥ ।
ta eva vilayaṃ yānti valmīkodarasarpavat ॥ 09-02

Meaning:- Those base men who speak of the secret faults of others destroy themselves like serpents who stray onto anthills.

अर्थ:-वो कमीने लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को उजागर करते हुए फिरते है, उसी तरह नष्ट हो जाते है जिस तरह कोई साप चीटियों के टीलों में जा कर मर जाता है.


गन्धः सुवर्णे फलमिक्षुदण्डे

नाकरि पुष्पं खलु चन्दनस्य ।
विद्वान्धनाढ्यश्च नृपश्चिरायुः
धातुः पुरा कोऽपि न बुद्धिदोऽभूत् ॥ ०९-०३


gandhaḥ suvarṇe phalamikṣudaṇḍe
nākari puṣpaṃ khalu candanasya ।
vidvāndhanāḍhyaśca nṛpaścirāyuḥ
dhātuḥ purā ko'pi na buddhido'bhūt ॥ 09-03

Meaning:- Perhaps nobody has advised Lord Brahma, the creator, to impart perfume to gold; fruit to the sugarcane; flowers to the sandalwood tree; wealth to the learned; and long life to the king.

अर्थ:-शायद किसीने ब्रह्माजी, जो इस सृष्टि के निर्माता है, को यह सलाह नहीं दी की वह ... सुवर्ण को सुगंध प्रदान करे. गन्ने के झाड को फल प्रदान करे. चन्दन के वृक्ष को फूल प्रदान करे.
विद्वान् को धन प्रदान करे. राजा को लम्बी आयु प्रदान करे.



सर्वौषधीनाममृता प्रधाना
सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम् ।
सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं
सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम् ॥ ०९-०४


sarvauṣadhīnāmamṛtā pradhānā
sarveṣu saukhyeṣvaśanaṃ pradhānam ।
sarvendriyāṇāṃ nayanaṃ pradhānaṃ
sarveṣu gātreṣu śiraḥ pradhānam ॥ 09-04

Meaning:- Nectar (amrita) is the best among medicines; eating good food is the best of all types of material happiness; the eye is the chief among all organs; and the head occupies the chief position among all parts of the body.

अर्थ:-अमृत सबसे बढ़िया औषधि है.
इन्द्रिय सुख में अच्छा भोजन सर्वश्रेष्ठ सुख है.
नेत्र सभी इन्द्रियों में श्रेष्ठ है.
मस्तक शरीर के सभी भागो मे श्रेष्ठ है.


दूतो न सञ्चरति खे न चलेच्च वार्ता
पूर्वं न जल्पितमिदं न च सङ्गमोऽस्ति ।
व्योम्नि स्थितं रविशाशिग्रहणं प्रशस्तं
जानाति यो द्विजवरः स कथं न विद्वान् ॥ ०९-०५


dūto na sañcarati khe na calecca vārtā
pūrvaṃ na jalpitamidaṃ na ca saṅgamo'sti ।
vyomni sthitaṃ raviśāśigrahaṇaṃ praśastaṃ
jānāti yo dvijavaraḥ sa kathaṃ na vidvān ॥ 09-05

Meaning:-No messenger can travel about in the sky and no tidings come from there. The voice of its inhabitants as never heard, nor can any contact be established with them. Therefore the brahmana who predicts the eclipse of the sun and moon which occur in the sky must be considered as a vidwan (man of great learning).

अर्थ:-कोई संदेशवाहक आकाश में जा नहीं सकता और आकाश से कोई खबर आ नहीं सकती. वहा रहने वाले लोगो की आवाज सुनाई नहीं देती. और उनके साथ कोई संपर्क नहीं हो सकता. इसीलिए वह ब्राह्मण जो सूर्य और चन्द्र ग्रहण की भविष्य वाणी करता है, उसे विद्वान मानना चाहिए.


विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधार्तो भयकातरः ।
भाण्डारी प्रतिहारी च सप्त सुप्तान्प्रबोधयेत् ॥ ०९-०६


vidyārthī sevakaḥ pānthaḥ kṣudhārto bhayakātaraḥ ।
bhāṇḍārī pratihārī ca sapta suptānprabodhayet ॥ 09-06

Meaning:- The student, the servant, the traveller, the hungry person, the frightened man, the treasury guard, and the steward: these seven ought to be awakened if they fall asleep.

अर्थ:-इन सातो को जगा दे यदि ये सो जाए... १. विद्यार्थी २. सेवक ३. पथिक ४. भूखा आदमी ५. डरा हुआ आदमी ६. खजाने का रक्षक ७. खजांची


अहिं नृपं च शार्दूलं वृद्धं च बालकं तथा ।
परश्वानं च मूर्खं च सप्त सुप्तान्न बोधयेत् ॥ ०९-०७

ahiṃ nṛpaṃ ca śārdūlaṃ vṛddhaṃ ca bālakaṃ tathā ।
paraśvānaṃ ca mūrkhaṃ ca sapta suptānna bodhayet ॥ 09-07

Meaning:- The serpent, the king, the tiger, the stinging wasp, the small child, the dog owned by other people, and the fool: these seven ought not
to be awakened from sleep.

अर्थ:- इन सातो को नींद से नहीं जगाना चाहिए... १. साप २. राजा ३. बाघ ४. डंख करने वाला कीड़ा ५. छोटा बच्चा ६. दुसरो का कुत्ता ७. मुर्ख


अर्धाधीताश्च यैर्वेदास्तथा शूद्रान्नभोजनाः ।
ते द्विजाः किं करिष्यन्ति निर्विषा इव पन्नगाः ॥ ०९-०८


ardhādhītāśca yairvedāstathā śūdrānnabhojanāḥ ।
te dvijāḥ kiṃ kariṣyanti nirviṣā iva pannagāḥ ॥ 09-08

Meaning:-Of those who have studied the Vedas for material rewards, and those who accept foodstuffs offered by shudras, what potency have they? They are just like serpents without fangs.

अर्थ:-जिन्होंने वेदों का अध्ययन पैसा कमाने के लिए किया और जो नीच काम करने वाले लोगो का दिया हुआ अन्न खाते है उनके पास कौनसी शक्ति हो सकती है. वो ऐसे भुजंगो के समान है जो दंश नहीं कर सकते.


यस्मिन्रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः ।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति ॥ ०९-०९

yasminruṣṭe bhayaṃ nāsti tuṣṭe naiva dhanāgamaḥ ।
nigraho'nugraho nāsti sa ruṣṭaḥ kiṃ kariṣyati ॥ 09-09

Meaning:-He who neither rouses fear by his anger, nor confers a favour when he is pleased can neither control nor protect. What can he do?

अर्थ:-जिसके डाटने से सामने वाले के मन में डर नहीं पैदा होता और प्रसन्न होने के बाद जो सामने वाले को कुछ देता नहीं है. वो ना किसी की रक्षा कर सकता है ना किसी को नियंत्रित कर सकता है. ऐसा आदमी भला क्या कर सकता है.


निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा ।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोपो भयङ्करः ॥ ०९-१०


nirviṣeṇāpi sarpeṇa kartavyā mahatī phaṇā ।
viṣamastu na cāpyastu ghaṭāṭopo bhayaṅkaraḥ ॥ 09-10

Meaning:- The serpent may, without being poisonous, raise high its hood, but the show of terror is enough to frighten people -- whether he be venomous or not. The serpent may, without being poisonous, raise high its hood, but the show of terror is enough to frighten people -- whether he be venomous or not.

अर्थ:-यदि नाग अपना फना खड़ा करे तो भले ही वह जहरीला ना हो तो भी उसका यह करना सामने वाले के मन में डर पैदा करने को पर्याप्त है. यहाँ यह बात कोई माइना नहीं रखती की वह जहरीला है की नहीं.


काष्ठपाषाणधातूनां कृत्वा भावेन सेवनम् ।
श्रद्धया च तथा सिद्धिस्तस्य विष्णुप्रसादतः ॥ ०८-११


prātardyūtaprasaṅgena madhyāhne strīprasaṅgataḥ ।
rātrau cauraprasaṅgena kālo gacchanti dhīmatām ॥ 09-11

Meaning:- Wise men spend their mornings in discussing gambling, the afternoon discussing the activities of women, and the night hearing about the activities of theft. (The first item above refers to the gambling of King Yuddhisthira, the great devotee of Krishna. The second item refers to the glorious deeds of mother Sita, the consort of Lord Ramachandra. The third item hints at the adorable childhood pastimes of Sri Krishna who stole butter from the elderly cowherd ladies of Gokula. Hence Chanakya Pandits advises wise persons to spend the morning absorbed in Mahabharata, the afternoon studying Ramayana, and the evening devotedly hearing the Srimad-Bhagvatam.)

अर्थ:-महापुरुषों की जीवन चर्चा बताते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्वानों का प्रातःकाल का समय जुए के प्रसंग (महाभारत की कथा) में बीतता है, दोपहर का समय स्त्री प्रसंग (रामायण की कथा) में बीतता है, रात्रि में उनका समय चोर प्रसंग (कृष्ण कथा) में बीतता है। यही महान् पुरुषों की जीवन चर्या होती है।


स्वहस्तग्रथिता माला स्वहस्तघृष्टचन्दनम् ।
स्वहस्तलिखितं स्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत् ॥ ०९-१२


svahastagrathitā mālā svahastaghṛṣṭacandanam ।
svahastalikhitaṃ stotraṃ śakrasyāpi śriyaṃ haret ॥ 09-12

Meaning:-By preparing a garland for a Deity with one's own hand; by grinding sandal paste for the Lord with one's own hand; and by writing sacred texts with one's own hand -- one becomes blessed with opulence equal to that of Indra.

अर्थ:-आपको इन्द्र के समान वैभव प्राप्त होगा यदि आप.. अपने भगवान् के गले की माला अपने हाथो से बनाये. अपने भगवान् के लिए चन्दन अपने हाथो से घिसे. अपने हाथो से पवित्र ग्रंथो को लिखे. .


इक्षुदण्डास्तिलाः शूद्राः कान्ता हेम च मेदिनी ।
चन्दनं दधि ताम्बूलं मर्दनं गुणवर्धनम् ॥ ०९-१३


ikṣudaṇḍāstilāḥ śūdrāḥ kāntā hema ca medinī ।
candanaṃ dadhi tāmbūlaṃ mardanaṃ guṇavardhanam ॥ 09-13

Meaning:-Acharya Chanakya, says that their properties increase only by manning them- Sugarcane, sesame, shudra, wife, gold, earth, sandalwood, curd and betel leaf (paan).

अर्थ:-गन्ना, तिल, मूर्ख, स्त्री, स्वर्ण, धरती, चन्दन, दही और पान – इन सबका मर्दन करने से इनके गुण बढ़ते हैं।



दह्यमानाः सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते ।
दरिद्रता धीरतया विराजतेकुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते ॥ ०९-१४

dahyamānāḥ sutīvreṇa nīcāḥ parayaśo'gninā
aśaktāstatpadaṃ gantuṃ tato nindāṃ prakurvate ।
daridratā dhīratayā virājatekuvastratā śubhratayā virājate
kadannatā coṣṇatayā virājate kurūpatā śīlatayā virājate ॥ 09-14

Meaning:- Poverty is set off by fortitude; shabby garments by keeping them clean; bad food by warming it; and ugliness by good behaviour.

अर्थ:-गरीबी पर धैर्य से मात करे. पुराने वस्त्रो को स्वच्छ रखे. बासी अन्न को गरम करे. अपनी कुरूपता पर अपने अच्छे व्यवहार से मात करे.


धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः ।
विद्यारत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु ॥ १०-०१


dhanahīno na hīnaśca dhanikaḥ sa suniścayaḥ ।
vidyāratnena hīno yaḥ sa hīnaḥ sarvavastuṣu ॥ 10-01

Meaning:- One destitute of wealth is not destitute, he is indeed rich (if he is learned); but the man devoid of learning is destitute in every way.

अर्थ:-जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है.


दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं पिबेज्जलम् ।
शास्त्रपूतं वदेद्वाक्यः मनःपूतं समाचरेत् ॥ १०-०२


dṛṣṭipūtaṃ nyasetpādaṃ vastrapūtaṃ pibejjalam ।
śāstrapūtaṃ vadedvākyaḥ manaḥpūtaṃ samācaret ॥ 10-02

Meaning:- We should carefully scrutinise that place upon which we step (having it ascertained to be free from filth and living creatures like insects, etc.); we should drink water which has been filtered (through a clean cloth); we should speak only those words which have the sanction of the satras; and do that act which we have carefully considered.

अर्थ:-हम अपना हर कदम फूक फूक कर रखे. हम छाना हुआ जल पिए. हम वही बात बोले जो शास्त्र सम्मत है. हम वही काम करे जिसके बारे हम सावधानीपुर्वक सोच चुके है.


सुखार्थी चेत्त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत्त्यजेत्सुखम् ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या सुखं विद्यार्थिनः कुतः ॥ १०-०३


sukhārthī cettyajedvidyāṃ vidyārthī cettyajetsukham ।
sukhārthinaḥ kuto vidyā sukhaṃ vidyārthinaḥ kutaḥ ॥ 10-03

Meaning:- He who desires sense gratification must give up all thoughts of acquiring knowledge; and he who seeks knowledge must not hope for sense gratification. How can he who seeks sense gratification acquire knowledge, and he who possesses knowledge enjoy mundane sense pleasure?

अर्थ:-जिसे अपने इन्द्रियों की तुष्टि चाहिए, वह विद्या अर्जन करने के सभी विचार भूल जाए. और जिसे ज्ञान चाहिए वह अपने इन्द्रियों की तुष्टि भूल जाये. जो इन्द्रिय विषयों में लगा है उसे ज्ञान कैसा, और जिसे ज्ञान है वह व्यर्थ की इन्द्रिय तुष्टि में लगा रहे यह संभव नहीं.


कवयः किं न पश्यन्ति किं न भक्षन्ति वायसाः ।
मद्यपाः किं न जल्पन्ति किं न कुर्वन्ति योषितः ॥ १०-०४


kavayaḥ kiṃ na paśyanti kiṃ na bhakṣanti vāyasāḥ ।
madyapāḥ kiṃ na jalpanti kiṃ na kurvanti yoṣitaḥ ॥ 10-04

Meaning:- What is it that escapes the observation of poets? What is that act women are incapable of doing? What will drunken people not prate? What will not a crow eat?

अर्थ:-वह क्या है जो कवी कल्पना में नहीं आ सकता. वह कौनसी बात है जिसे करने में औरत सक्षम नहीं है. ऐसी कौनसी बकवास है जो दारू पिया हुआ आदमी
नहीं करता. ऐसा क्या है जो कौवा नहीं खाता.


रङ्कं करोति राजानं राजानं रङ्कमेव च ।
धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः ॥ १०-०५


raṅkaṃ karoti rājānaṃ rājānaṃ raṅkameva ca ।
dhaninaṃ nirdhanaṃ caiva nirdhanaṃ dhaninaṃ vidhiḥ ॥ 10-05

Meaning:-Fate makes a beggar a king and a king a beggar. He makes a rich man​ poor and a poor man rich.

अर्थ:-नियति एक भिखारी को राजा और राजा को भिखारी बनाती है. वह एक अमीर आदमी को गरीब और गरीब को अमीर.


लुब्धानां याचकः शत्रुर्मूर्खानां बोधको रिपुः ।
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चौराणां चन्द्रमा रिपुः ॥ १०-०६


lubdhānāṃ yācakaḥ śatrurmūrkhānāṃ bodhako ripuḥ ।
jārastrīṇāṃ patiḥ śatruścaurāṇāṃ candramā ripuḥ ॥ 10-06

Meaning:- The beggar is a miser's enemy; the wise counsellor is the fool's enemy; her husband is an adulterous wife's enemy; and the moon is the enemy of the thief.

अर्थ:-भिखारी यह कंजूस आदमी का दुश्मन है. एक अच्छा सलाहकार एक मुर्ख आदमी का शत्रु है. वह पत्नी जो पर पुरुष में रूचि रखती है, उसके लिए उसका पति ही उसका शत्रु है. जो चोर रात को काम करने निकलता है, चन्द्रमा ही उसका शत्रु है.


येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलां न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ १०-०७

yeṣāṃ na vidyā na tapo na dānaṃ
jñānaṃ na śīlāṃ na guṇo na dharmaḥ ।
te martyaloke bhuvi bhārabhūtā
manuṣyarūpeṇa mṛgāścaranti ॥ 10-07

Meaning:- Those who are destitute of learning, penance, knowledge, good disposition, virtue and benevolence are brutes wandering the earth in the form of men. They are burdensome to the earth.

अर्थ:- जिनके पास यह कुछ नहीं है...
विद्या.
तप.
ज्ञान.
अच्छा स्वभाव.
गुण.
दया भाव.
...वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है. धरती पर उनका भार है.


अन्तःसारविहीनानामुपदेशो न जायते ।
मलयाचलसंसर्गान्न वेणुश्चन्दनायते ॥ १०-०८


antaḥsāravihīnānāmupadeśo na jāyate ।
malayācalasaṃsargānna veṇuścandanāyate ॥ 10-08

Meaning:-Those that are empty-minded cannot be benefited by instruction. Bamboo does not acquire the quality of sandalwood by being associated with the Malaya Mountain.

अर्थ:-जिनके भेजे खाली है, वो कोई उपदेश नहीं समझते. यदि बास को मलय पर्वत पर उगाया जाये तो भी उसमे चन्दन के गुण नहीं आते.


यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥ १०-०९

yasya nāsti svayaṃ prajñā śāstraṃ tasya karoti kim ।
locanābhyāṃ vihīnasya darpaṇaḥ kiṃ kariṣyati ॥ 10-09

Meaning:-What good can the scriptures do to a man who has no sense of his own? Of what use is as mirror to a blind man?

अर्थ:-जिसे अपनी कोई अकल नहीं उसकी शास्त्र क्या भलाई करेंगे. एक अँधा आदमी आयने का क्या करेगा.

दुर्जनं सज्जनं कर्तुमुपायो नहि भूतले ।
अपानं शातधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत् ॥ १०-१०


durjanaṃ sajjanaṃ kartumupāyo nahi bhūtale ।
apānaṃ śātadhā dhautaṃ na śreṣṭhamindriyaṃ bhavet ॥ 10-10

Meaning:- Nothing can reform a bad man, just as the posterious cannot become a superior part of the body though washed one hundred times.

अर्थ:-एक बुरा आदमी सुधर नहीं सकता. आप पृष्ठ भाग को चाहे जितना साफ़ करे वो श्रेष्ठ भागो की बराबरी नहीं कर सकता.


आप्तद्वेषाद्भवेन्मृत्युः परद्वेषाद्धनक्षयः ।
राजद्वेषाद्भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषात्कुलक्षयः ॥ १०-११


āptadveṣādbhavenmṛtyuḥ paradveṣāddhanakṣayaḥ ।
rājadveṣādbhavennāśo brahmadveṣātkulakṣayaḥ ॥ 10-11

Meaning:- Wise men spend their mornings in discussing gambling, the afternoon discussing the activities of women, and the night hearing about the activities of theft. (The first item above refers to the gambling of King Yuddhisthira, the great devotee of Krishna. The second item refers to the glorious deeds of mother Sita, the consort of Lord Ramachandra. The third item hints at the adorable childhood pastimes of Sri Krishna who stole butter from the elderly cowherd ladies of Gokula. Hence Chanakya Pandits advises wise persons to spend the morning absorbed in Mahabharata, the afternoon studying Ramayana, and the evening devotedly hearing the Srimad-Bhagvatam.)

अर्थ:-महापुरुषों की जीवन चर्चा बताते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्वानों का प्रातःकाल का समय जुए के प्रसंग (महाभारत की कथा) में बीतता है, दोपहर का समय स्त्री प्रसंग (रामायण की कथा) में बीतता है, रात्रि में उनका समय चोर प्रसंग (कृष्ण कथा) में बीतता है। यही महान् पुरुषों की जीवन चर्या होती है।


वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं
द्रुमालयं पत्रफलाम्बुसेवनम् ।
तृणेषु शय्या शतजीर्णवल्कलं
न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम् ॥ १०-१२


varaṃ vanaṃ vyāghragajendrasevitaṃ
drumālayaṃ patraphalāmbusevanam ।
tṛṇeṣu śayyā śatajīrṇavalkalaṃ
na bandhumadhye dhanahīnajīvanam ॥ 10-12

Meaning:-It is better to live under a tree in a jungle inhabited by tigers and elephants, to maintain oneself in such a place with ripe fruits and spring water, to lie down on grass and to wear the ragged barks of trees than to live amongst one's relations when reduced to poverty.

अर्थ:-यह बेहतर है की आप जंगल में एक झाड के नीचे रहे, जहा बाघ और हाथी रहते है, उस जगह रहकर आप फल खाए और जलपान करे, आप घास पर सोये और पुराने पेड़ो की खाले पहने. लेकिन आप अपने सगे संबंधियों में ना रहे यदि आप निर्धन हो गए है.


विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या
वेदः शाखा धर्मकर्माणि पत्रम् ।
तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं
छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ॥ १०-१३


vipro vṛkṣastasya mūlaṃ ca sandhyā
vedaḥ śākhā dharmakarmāṇi patram ।
tasmānmūlaṃ yatnato rakṣaṇīyaṃ
chinne mūle naiva śākhā na patram ॥ 10-13

Meaning:-The Brahmana is like tree; his prayers are the roots, his chanting of the Vedas are the branches, and his religious act are the leaves. Consequently effort should be made to preserve his roots for if the roots are destroyed there can be no branches or leaves.

अर्थ:-ब्राह्मण एक वृक्ष के समान है. उसकी प्रार्थना ही उसका मूल है. वह जो वेदों का गान करता है वही उसकी शाखाए है. वह जो पुण्य कर्म करता है वही उसके पत्ते है. इसीलिए उसने अपने मूल को बचाना चाहिए. यदि मूल नष्ट हो जाता है तो शाखाये भी ना रहेगी और पत्ते भी.


माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः ।
बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ १०-१४

mātā ca kamalā devī pitā devo janārdanaḥ ।
bāndhavā viṣṇubhaktāśca svadeśo bhuvanatrayam ॥ 10-14

Meaning:- My mother is Kamala devi (Lakshmi), my father is Lord Janardana (Vishnu), my kinsmen are the Vishnu-bhaktas (Vaisnavas) and, my homeland is all the three worlds.

अर्थ:-लक्ष्मी मेरी माता है. विष्णु मेरे पिता है. वैष्णव जन मेरे सगे सम्बन्धी है. तीनो लोक मेरा देश है.


एकवृक्षसमारूढा नानावर्णा विहङ्गमाः ।
प्रभाते दिक्षु दशसु यान्ति का तत्र वेदना ॥ १०-१५

ekavṛkṣasamārūḍhā nānāvarṇā vihaṅgamāḥ ।
prabhāte dikṣu daśasu yānti kā tatra vedanā ॥ 10-15

Meaning:- (Through the night) a great many kinds of birds perch(Sit and rest) on a tree but in the morning they fly in all the ten directions. Why should we lament (Expression of sorrow) for that? (Similarly, we should not grieve when we must inevitably part company from our dear ones).

अर्थ:-रात्रि के समय कितने ही प्रकार के पंछी वृक्ष पर विश्राम करते है. भोर होते ही सब पंछी दसो दिशाओ में उड़ जाते है. हम क्यों भला दुःख करे यदि हमारे अपने हमें छोड़कर चले गए.


बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेश्च कुतो बलम् ।
वने सिंहो यदोन्मत्तः मशकेन निपातितः ॥ १०-१६

buddhiryasya balaṃ tasya nirbuddheśca kuto balam ।
vane siṃho yadonmattaḥ maśakena nipātitaḥ ॥ 10-16

Meaning:- He who possesses intelligence is strong; how can the man that is unintelligent be powerful? The elephant of the forest having lost his senses by intoxication was tricked into a lake by a small rabbit. (this verse refers to a famous story from the niti-sastra called pancatantra compiled by the pandit Vishnusharma 2500 years ago).

अर्थ:-जिसके पास में विद्या है वह शक्तिशाली है. निर्बुद्ध पुरुष के पास क्या शक्ति हो सकती है? एक छोटा खरगोश भी चतुराई से मदमस्त हाथी को तालाब में गिरा देता है.


का चिन्ता मम जीवने यदि हरिर्विश्वम्भरो गीयते
नो चेदर्भकजीवनाय जननीस्तन्यं कथं निर्ममे ।
इत्यालोच्य मुहुर्मुहुर्यदुपते लक्ष्मीपते केवलं
त्वत्पादाम्बुजसेवनेन सततं कालो मया नीयते ॥ १०-१७

kā cintā mama jīvane yadi harirviśvambharo gīyate
no cedarbhakajīvanāya jananīstanyaṃ kathaṃ nirmame ।
ityālocya muhurmuhuryadupate lakṣmīpate kevalaṃ
tvatpādāmbujasevanena satataṃ kālo mayā nīyate ॥ 10-17

Meaning:- Why should I be concerned for my maintenance while absorbed in praising the glories of Lord Vishwambhara (Vishnu), the supporter of all. Without the grace of Lord Hari, how could milk flow from a mother's breast for a child's nourishment? Repeatedly thinking only in this way, O Lord of the Yadus, O husband of Lakshmi, all my time is spent in serving Your lotus feet.

अर्थ:-हे विश्वम्भर तू सबका पालन करता है. मै मेरे गुजारे की क्यों चिंता करू जब मेरा मन तेरी महिमा गाने में लगा हुआ है. आपके अनुग्रह के बिना एक माता की छाती से दूध नहीं बह सकता और शिशु का पालन नहीं हो सकता. मै हरदम यही सोचता हुआ, हे यदु वंशियो के प्रभु, हे लक्ष्मी पति, मेरा पूरा समय आपकी ही चरण सेवा में खर्च करता हू.


गीर्वाणवाणीषु विशिष्टबुद्धि- स्तथापि भाषान्तरलोलुपोऽहम् ।
यथा सुधायाममरेषु सत्यां स्वर्गाङ्गनानामधरासवे रुचिः ॥ १०-१८

gīrvāṇavāṇīṣu viśiṣṭabuddhi-
stathāpi bhāṣāntaralolupo'ham ।
yathā sudhāyāmamareṣu satyāṃ
svargāṅganānāmadharāsave ruciḥ ॥ 10-18

Meaning:- My learning in holy language Sanskrit. Still, I learn for the knowledge of other tongues. God drank nectar yet they thirst to drink the sweetness of love from the lips of heavenly beauties. (apsaras)

अर्थ:-यद्पि मेरी बुद्धि देववाणी (संस्कृत) में श्रेष्ठ है, तब भी मै दूसरी भाषा का लालची हूं। जैसे अमृत पीने पर भी देवताओं की इच्छा स्वर्ग की अप्सराओं के ओष्ट रूपी मद्ध को पीने की बनी रहती है।


अन्नाद्दशगुणं पिष्टं पिष्टाद्दशगुणं पयः ।
पयसोऽष्टगुणं मांसां मांसाद्दशगुणं घृतम् ॥ १०-१९

annāddaśaguṇaṃ piṣṭaṃ piṣṭāddaśaguṇaṃ payaḥ ।
payaso'ṣṭaguṇaṃ māṃsāṃ māṃsāddaśaguṇaṃ ghṛtam ॥ 10-19

Meaning:- Compared to grains flour has ten times more energy, milk has ten times more than milk and Ghee has ten times more energy than meat.

अर्थ:-अन्न की अपेक्षा उसके चूर्ण अथार्थ पिसे हुए आटे में दस गुना अधिक शक्ति होती हैं, दूध में आटे से भी दस गुना ज्यादा शक्ति होती हैं, मांस में दूध से भी आठ गुना ज्यादा शक्ति होती हैं और घी में मांस से भी दस गुना ज्यादा बल हैं।


शोकेन रोगा वर्धन्ते पयसा वर्धते तनुः ।
घृतेन वर्धते वीर्यं मांसान्मांसं प्रवर्धते ॥ १०-२०

śokena rogā vardhante payasā vardhate tanuḥ ।
ghṛtena vardhate vīryaṃ māṃsānmāṃsaṃ pravardhate ॥ 10-20

Meaning:- Saag increases ills, milk invigorates the body, ghee builds up semen and meet adds to the flesh.

अर्थ:-साग-सब्जी खाने रहने से रोग बढ़ जाते हैं दूध का सेवन करने से शरीर बढ़ता हैं घी खाने से बल-वीर्य की वृद्धि होती हैं और मांस खाने से मांस की वृद्धि होती हैं।


दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता ।
अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वारः सहजा गुणाः ॥ ११-०१


dātṛtvaṃ priyavaktṛtvaṃ dhīratvamucitajñatā ।
abhyāsena na labhyante catvāraḥ sahajā guṇāḥ ॥ 11-01

Meaning:- Charitable disposition, sweet voice, [patience and discernment of right and wrong]these four natural qualities. One cannot learn them by training.

अर्थ:-उदारता, वचनों में मधुरता, साहस, आचरण में विवेक ये बाते कोई पा नहीं सकता ये मूल में होनी चाहिए.


आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं समाश्रयेत् ।
स्वयमेव लयं याति यथा राजान्यधर्मतः ॥ ११-०२


ātmavargaṃ parityajya paravargaṃ samāśrayet ।
svayameva layaṃ yāti yathā rājānyadharmataḥ ॥ 11-02

Meaning:- He who forsakes his own community and joins another perishes as the king who embraces an unrighteous path.

अर्थ:-जिस प्रकार एक राजा अत्यधिक अधर्म के आचरण से नष्ट हो जाता हैं, उसका पाप ही उसे समाप्त कर देता हैं ठीक उसी प्रकार अपने लोगो को छोड़ कर दूसरों को अपनाने वाला मुर्ख व्यक्ति भी अपने-आप ही नष्ट हो जाता हैं।


हस्ती स्थूलतनुः स चाङ्कुशवशः किं हस्तिमात्रोऽङ्कुशो
दीपे प्रज्वलिते प्रणश्यति तमः किं दीपमात्रं तमः ।
वज्रेणापि हताः पतन्ति गिरयः किं वज्रमात्रं नगा-
स्तेजो यस्य विराजते स बलवान्स्थूलेषु कः प्रत्ययः ॥ ११-०३


hastī sthūlatanuḥ sa cāṅkuśavaśaḥ kiṃ hastimātro'ṅkuśo
dīpe prajvalite praṇaśyati tamaḥ kiṃ dīpamātraṃ tamaḥ ।
vajreṇāpi hatāḥ patanti girayaḥ kiṃ vajramātraṃ nagā-
stejo yasya virājate sa balavānsthūleṣu kaḥ pratyayaḥ ॥ 11-03

Meaning:- The elephant has a huge body but is controlled by the Ankush (goad): yet, is the goad as large as the elephant? A lighted candle banishes darkness: is the candle as vast as the darkness. A mountain is broken even by a thunderbolt: is the thunderbolt therefore as big as the mountain? No, he whose power prevails is really mighty; what is there in bulk?

अर्थ:-छोटे से अंकुश से इतने बड़े हाथी को साधना, छोटे से दीपक से इतने बड़े व्यापक अन्धकार का नष्ट होना तथा छोटे से वज्र से विशाल-उन्नत पर्वतो का टूटना इस सत्य का प्रमाण हैं कि तेज-ओज की ही विजय होती हैं, तेज में ही शक्ति रहती हैं मोटापे को बल का प्रतीक नहीं समझना चाहिए अथार्थ मोटे व्यक्ति को बलवान समझना भ्रान्ति हैं।


कलौ दशसहस्राणि हरिस्त्यजति मेदिनीम् ।
तदर्धं जाह्नवीतोयं तदर्धं ग्रामदेवताः ॥ ११-०४


kalau daśasahasrāṇi haristyajati medinīm ।
tadardhaṃ jāhnavītoyaṃ tadardhaṃ grāmadevatāḥ ॥ 11-04

Meaning:- When Kaliyug is ten thousand years old, the Lord Vishnu goes back to His heavenly abode deserting earth. Five thousand years hence, river Ganga dries up and two thousand and five hundred years from that all the deities will depart.

अर्थ:-जब कलयुग के समाप्त होने में दस हज़ार वर्ष शेष रह जाएगे तो भगवान भारत से बाहर चले जायेगे और पांच हज़ार वर्ष शेष रहने पर इस धरती पर गंगा का जल भी नहीं रहेगा तथा ढाई वर्ष पूर्व ग्रामदेवता भी ग्रामो से कूच कर जायेंगे, कहने का तात्पर्य हैं की जब अधर्म बढ़ जाता हैं तो अपने भी साथ छोड़ जाते हैं।


गृहासक्तस्य नो विद्या नो दया मांसभोजिनः ।
द्रव्यलुब्धस्य नो सत्यं स्त्रैणस्य न पवित्रता ॥ ११-०५


gṛhāsaktasya no vidyā no dayā māṃsabhojinaḥ ।
dravyalubdhasya no satyaṃ straiṇasya na pavitratā ॥ 11-05

Meaning:-He who is engrossed in family life will never acquire knowledge; there can be no mercy in the eater of flesh; the greedy man will not be truthful; and purity will not be found in a woman and a hunter.

अर्थ:- घर के सुखो अथवा परिवार में मोह रखने वाला कभी विधा प्राप्त नहीं कर सकता, मांस खाने वाले के मन में कभी दया का भाव नहीं उपज सकता, धन का लोभी कभी सत्यभाषण नहीं कर सकता, स्त्रियों में आसक्ति रखने वाला कामी पुरुष पवित्र सदाचारी नहीं रह सकता।


न दुर्जनः साधुदशामुपैति
बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः ।
आमूलसिक्तः पयसा घृतेन
न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति ॥ ११-०६


na durjanaḥ sādhudaśāmupaiti
bahuprakārairapi śikṣyamāṇaḥ ।
āmūlasiktaḥ payasā ghṛtena
na nimbavṛkṣo madhuratvameti ॥ 11-06

Meaning:- Feeding milk and ghee to the roots of a Neem tree does not make it shed bitterness. The wicked man will not attain sanctity even if he is instructed in different ways.

अर्थ:- नीम के वृक्ष की जड़ को कितना ही दूध और घी से सींचने पर भी नीम का वृक्ष जिस प्रकार अपना कडवापन छोड़ कर मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति को कितना भी समझाने की चेष्टा की जाए, वह अपनी दुर्जनता को छोड़ कर सज्जनता को नहीं अपना सकता।


येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलां न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ १०-०७

yeṣāṃ na vidyā na tapo na dānaṃ
jñānaṃ na śīlāṃ na guṇo na dharmaḥ ।
te martyaloke bhuvi bhārabhūtā
manuṣyarūpeṇa mṛgāścaranti ॥ 10-07

Meaning:- Those who are destitute of learning, penance, knowledge, good disposition, virtue and benevolence are brutes wandering the earth in the form of men. They are burdensome to the earth.

अर्थ:- जिनके पास यह कुछ नहीं है...
विद्या.
तप.
ज्ञान.
अच्छा स्वभाव.
गुण.
दया भाव.
...वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है. धरती पर उनका भार है.


अन्तर्गतमलो दुष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि ।
न शुध्यति यथा भाण्डं सुराया दाहितं च सत् ॥ ११-०७


antargatamalo duṣṭastīrthasnānaśatairapi ।
na śudhyati yathā bhāṇḍaṃ surāyā dāhitaṃ ca sat ॥ 11-07

Meaning:-A container that contained wine does not become pure even after getting heated in the fire and a hundred times. Similarly, a person’s heart that contains evil does not become purified even after hundred pilgrimages.

अर्थ:- जिस प्रकार जिस पात्र में शराब अथवा मादक द्रव्य रखा जाता हैं उसे आग से तपाये जाने पर भी उसकी गंध नहीं जाती हैं वह शुद्ध नहीं हो सकता ठीक उसी प्रकार कुटिल मन वाला व्यक्ति, जिसमे मन में पाप भरा हैं सैकड़ो तीर्थो में स्नान करने पर भी पवित्र और निष्पाप नहीं हो सकता।


न वेत्ति यो यस्य गुणप्रकर्षं
स तं सदा निन्दति नात्र चित्रम् ।
यथा किराती करिकुम्भलब्धां
मुक्तां परित्यज्य बिभर्ति गुञ्जाम् ॥ ११-०८


na vetti yo yasya guṇaprakarṣaṃ
sa taṃ sadā nindati nātra citram ।
yathā kirātī karikumbhalabdhāṃ
muktāṃ parityajya bibharti guñjām ॥ 11-08

Meaning:-It is not strange if a man reviles (Degrades) a thing of which he has no knowledge, just as a wild hunter's wife throws away the pearl that is found in the head of an elephant, and picks up a gunj (a type of seed which poor tribals wear as ornaments).

अर्थ:- जिसे किसी विशेषताओं या गुण का ज्ञान नहीं यदि ऐसे व्यक्ति की कोई निंदा करता हैं तो आश्चर्य नहीं जिसकी निंदा की जाती हैं उसकी भी कोई हानि नहीं होती उदाहरण के रूप में यदि भीलनी को गजमुक्ता यानि हाथी के कपाल में पाई जाने वाली काले रंग की भारी और मूल्यवान मणि मिल जाए तो उसका मूल्य न जानने के कारण वह भीलनी उस मणि को फेक कर घुघुंची की माला को ही गले में धारण करती हैं।

ये तु संवत्सरं पूर्णं नित्यं मौनेन भुञ्जते ।
युगकोटिसहस्रं तैः स्वर्गलोके महीयते ॥ ११-०९


ye tu saṃvatsaraṃ pūrṇaṃ nityaṃ maunena bhuñjate ।
yugakoṭisahasraṃ taiḥ svargaloke mahīyate ॥ 11-09

Meaning:- He who for one year eats his meals silently (inwardly meditating upon the Lord's prasadam); attains to the heavenly planets for a thousand crore of years. ( Note: one crore equals ten million)

अर्थ:-वर्ष भर नित्यप्रति मौन रह कर भोजन करने वाला करोडो चतुर्युगो तक (एक युग से चार युग –सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग होते हैं और प्रत्येक की आयु क्र्मशा 12, 10, 8, और 6 वर्ष मानी गई हैं ) स्वर्ग में निवास करता हैं और देवो द्वारा पूजा जाता हैं।


कामक्रोधौ तथा लोभं स्वादुश‍ृङ्गारकौतुके ।
अतिनिद्रातिसेवे च विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत् ॥ ११-१०


kāmakrodhau tathā lobhaṃ svāduśa‍ṛṅgārakautuke ।
atinidrātiseve ca vidyārthī hyaṣṭa varjayet ॥ 11-10

Meaning:- The student (brahmacari) should completely renounce the following eight things -- his lust, anger, greed, desire for sweets, sense of decorating the body, excessive curiosity, excessive sleep, and excessive endeavour for bodily maintenance.

अर्थ:- एक विद्यार्थी पूर्ण रूप से निम्न लिखित बातो का त्याग करे. १. काम २. क्रोध ३. लोभ ४. स्वादिष्ट भोजन की अपेक्षा. ५. शरीर का शृंगार ६. अत्याधिक जिज्ञासा ७. अधिक निद्रा ८. शरीर निर्वाह के लिए अत्याधिक प्रयास.


अकृष्टफलमूलानि वनवासरतिः सदा ।
कुरुतेऽहरहः श्राद्धमृषिर्विप्रः स उच्यते ॥ ११-११


akṛṣṭaphalamūlāni vanavāsaratiḥ sadā ।
kurute'harahaḥ śrāddhamṛṣirvipraḥ sa ucyate ॥ 11-11

Meaning:-One who eats fruits and edible roots from uncultivated land, one who is content with whatever, food nature provide, one who loves the wild and one who pays daily homage to departed ones, is the real saint.

अर्थ:- धरती पर अपने आप उगने वाले फल-फुल का सेवन करने वाला अर्थात् ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति से संतुष्ट रहने वाला, वन में ही अनासक्त भाव से रहने वाला तथा प्रतिदिन पितरो का श्राद-तर्पण करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता हैं।


एकाहारेण सन्तुष्टः षट्कर्मनिरतः सदा ।
ऋतुकालाभिगामी च स विप्रो द्विज उच्यते ॥ ११-१२


ekāhāreṇa santuṣṭaḥ ṣaṭkarmanirataḥ sadā ।
ṛtukālābhigāmī ca sa vipro dvija ucyate ॥ 11-12

Meaning:-A true Brahman is he, who is satisfied the one meal in a day, who always involve in study, self realisation, charity etc. six work and intercourse with his wife once in a month after her menses.

अर्थ:- जो वक्ती दिन में एक ही बार भोजन करे, अध्ययन, ताप, दान आदि 6 कार्यों में सलंग्न रहने वाला और अपनी पत्नी के साथ सिर्फ ऋतुकाल (महामारी ख़त्म जो जाने के बाद का समय) में ही सम्भोग करे| वाही ब्राह्मण है


लौकिके कर्मणि रतः पशूनां परिपालकः ।
वाणिज्यकृषिकर्मा यः स विप्रो वैश्य उच्यते ॥ ११-१३

laukike karmaṇi rataḥ paśūnāṃ paripālakaḥ ।
vāṇijyakṛṣikarmā yaḥ sa vipro vaiśya ucyate ॥ 11-13

Meaning:- A Brahmin engaged in the worldly pursuit, animal farming, business, and cultivation is merely a trader. No Brahmin.

अर्थ:- सदा सांसारिक कार्यो में व्यस्त रहने वाला, पशुओ का पालक, व्यापार तथा कृषि-कर्म से अपनी आजीविका चलाने वाला ब्राह्मण, ब्राह्मण –कुल में उत्पन्न होकर भी वैश्य कहलाता हैं।


लाक्षादितैलनीलीनां कौसुम्भमधुसर्पिषाम् ।
विक्रेता मद्यमांसानां स विप्रः शूद्र उच्यते ॥ ११-१४

lākṣāditailanīlīnāṃ kausumbhamadhusarpiṣām ।
vikretā madyamāṃsānāṃ sa vipraḥ śūdra ucyate ॥ 11-14

Meaning:- The Brahmana who deals in lac-die, articles, oil, indigo, silken cloth, honey, clarified butter, liquor, and flesh is called a shudra.

अर्थ:-लाख आदि, तेल, नील, कपडे के रंग, शहद, घी, मदिरा और मांस आदि का व्यापार करने वाला ब्राह्मण शुद्र कहलाता हैं।


परकार्यविहन्ता च दाम्भिकः स्वार्थसाधकः ।
छली द्वेषी मृदुः क्रूरो विप्रो मार्जार उच्यते ॥ ११-१५

parakāryavihantā ca dāmbhikaḥ svārthasādhakaḥ ।
chalī dveṣī mṛduḥ krūro vipro mārjāra ucyate ॥ 11-15

Meaning:- One who put hurdles in the way of others, one who is vengeful, selfish, deceitful, and quarrelsome and sweet-tongued but wicked at heart, such Brahmin is a tomcat.

अर्थ:-दूसरों के कार्यो को बिगाड़ने वाला, पाखंडी अपना ही प्रोयजन सिद्ध करने वाला अथार्थ स्वार्थी, धोखेबाज़, अकारण ही दूसरों से शत्रुता करने वाला, ऊपर से कोमल और अन्दर से क्रूर ब्राह्मण, निक्र्स्त पशु कहलाता हैं।


वापीकूपतडागानामारामसुरवेश्मनाम् ।
उच्छेदने निराशङ्कः स विप्रो म्लेच्छ उच्यते ॥ ११-१६

vāpīkūpataḍāgānāmārāmasuraveśmanām ।
ucchedane nirāśaṅkaḥ sa vipro mleccha ucyate ॥ 11-16

Meaning:- Brahmin who destroys water spring, well, pond garden, and temples is meanest per who is not fit to be called a Hindu.

अर्थ:-बावड़ी, कूप तालाब बैग और देव मंदिरों को तोड़ने –फोड़ने में संकोच न करने वाला ब्राह्मण अपने निक्रस्त कर्मो के कारण म्लेच्छ कहलाता हैं।


देवद्रव्यं गुरुद्रव्यं परदाराभिमर्शनम् ।
निर्वाहः सर्वभूतेषु विप्रश्चाण्डाल उच्यते ॥ ११-१७

devadravyaṃ gurudravyaṃ paradārābhimarśanam ।
nirvāhaḥ sarvabhūteṣu vipraścāṇḍāla ucyate ॥ 11-17

Meaning:- The Brahmana who steals the property of the Deities and the spiritual preceptor, who cohabits with another's wife, and who maintains himself by eating anything and everything s called a chandala.

अर्थ:- वह ब्राह्मण जो भगवान् के मूर्ति की सम्पदा चुराता है और वह अध्यात्मिक गुरु जो दुसरे की पत्नी के साथ समागम करता है और जो अपना गुजारा करने के लिए कुछ भी और सब कुछ खाता है वह चांडाल है.


सानन्दं सदनं सुतास्तु सुधियः कान्ता प्रियालापिनी
इच्छापूर्तिधनं स्वयोषिति रतिः स्वाज्ञापराः सेवकाः ।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधोः संगमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ॥ १२-०१


sānandaṃ sadanaṃ sutāstu sudhiyaḥ kāntā priyālāpinī
icchāpūrtidhanaṃ svayoṣiti ratiḥ svājñāparāḥ sevakāḥ ।
ātithyaṃ śivapūjanaṃ pratidinaṃ miṣṭānnapānaṃ gṛhe
sādhoḥ saṃgamupāsate ca satataṃ dhanyo gṛhasthāśramaḥ ॥ 12-01

Meaning:- He is a blessed grhasta (householder) in whose house there is a blissful atmosphere, whose sons are talented, whose wife speaks sweetly, whose wealth is enough to satisfy his desires, who finds pleasure in the company of his wife, whose servants are obedient, in whose house hospitality is shown, the auspicious Supreme Lord is worshiped daily, delicious food and drink is partaken, and who finds joy in the company of devotees.

अर्थ:- वह गृहस्थ भगवान् की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी जरूरते पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. जिसके घर में मंगल दायी भगवान की पूजा रोज की जाती है. जहा स्वाद भरा भोजन और पान किया जाता है. जिसे भगवान् के भक्तो की संगती में आनंद आता है.



आर्तेषु विप्रेषु दयान्वितश्च
यच्छ्रद्धया स्वल्पमुपैति दानम् ।
अनन्तपारमुपैति राजन्
यद्दीयते तन्न लभेद्द्विजेभ्यः ॥ १२-०२


ārteṣu vipreṣu dayānvitaśca
yacchraddhayā svalpamupaiti dānam ।
anantapāramupaiti rājan
yaddīyate tanna labheddvijebhyaḥ ॥ 12-02

Meaning:- One who devotedly gives a little to a Brahmana who is in distress is recompensed abundantly. Hence, O Prince, what is given to a good Brahmana is got back not in an equal quantity, but in an infinitely higher degree.

अर्थ:- जो एक संकट का सामना करने वाले ब्राह्मण को भक्ति भाव से अल्प दान देता है उसे बदले में विपुल लाभ होता है.


दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने
प्रीतिः साधुजने स्मयः खलजने विद्वज्जने चार्जवम् ।
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता
इत्थं ये पुरुषा कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥ १२-०३


dākṣiṇyaṃ svajane dayā parajane śāṭhyaṃ sadā durjane
prītiḥ sādhujane smayaḥ khalajane vidvajjane cārjavam ।
śauryaṃ śatrujane kṣamā gurujane nārījane dhūrtatā
itthaṃ ye puruṣā kalāsu kuśalāsteṣveva lokasthitiḥ ॥ 12-03

Meaning:- Those men who are happy in this world, who are generous towards their relatives, kind to strangers, indifferent to the wicked, loving to the good, shrewd in their dealings with the base, frank with the learned, courageous with enemies, humble with elders and stern with the wife.

अर्थ:- वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगो के प्रति सह्रदय है. अच्छे लोगो के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगो से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छुपाते. दुश्मनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ो के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है.


हस्तौ दानविवर्जितौ श्रुतिपुटौ सारस्वतद्रोहिणौ
नेत्रे साधुविलोकनेन रहिते पादौ न तीर्थं गतौ ।
अन्यायार्जितवित्तपूर्णमुदरं गर्वेण तुङ्गं शिरो
रे रे जम्बुक मुञ्च मुञ्च सहसा नीचं सुनिन्द्यं वपुः ॥ १२-०४


hastau dānavivarjitau śrutipuṭau sārasvatadrohiṇau
netre sādhuvilokanena rahite pādau na tīrthaṃ gatau ।
anyāyārjitavittapūrṇamudaraṃ garveṇa tuṅgaṃ śiro
re re jambuka muñca muñca sahasā nīcaṃ sunindyaṃ vapuḥ ॥ 12-04

Meaning:- O jackal, leave aside the body of that man at once, whose hands have never given in charity, whose ears have not heard the voice of learning, whose eyes have not beheld a pure devotee of the Lord, whose feet have never traversed to holy places, whose belly is filled with things obtained by crooked practices, and whose head is held
high in vanity. Do not eat it, O jackal, otherwise you will become polluted.

अर्थ:-
अरे लोमड़ी !!! उस व्यक्ति के शरीर को तुरंत छोड़ दे. जिसके हाथो ने कोई दान नहीं दिया. जिसके कानो ने कोई विद्या ग्रहण नहीं की. जिसके आँखों ने भगवान् का सच्चा भक्त नहीं देखा. जिसके पाँव कभी तीर्थ क्षेत्रो में नहीं गए. जिसने अधर्म के मार्ग से कमाए हुए धन से अपना पेट भरा. और जिसने बिना मतलब ही अपना सर ऊँचा उठा रखा है. अरे लोमड़ी !! उसे मत खा. नहीं तो तू दूषित हो जाएगी.


येषां श्रीमद्यशोदासुतपदकमले नास्ति भक्तिर्नराणां
येषामाभीरकन्याप्रियगुणकथने नानुरक्ता रसज्ञा ।
येषां श्रीकृष्णलीलाललितरसकथासादरौ नैव कर्णौ
धिक् तान् धिक् तान् धिगेतान् कथयति सततं कीर्तनस्थो मृदंगः ॥ १२-०५


yeṣāṃ śrīmadyaśodāsutapadakamale nāsti bhaktirnarāṇāṃ
yeṣāmābhīrakanyāpriyaguṇakathane nānuraktā rasajñā ।
yeṣāṃ śrīkṛṣṇalīlālalitarasakathāsādarau naiva karṇau
dhik tān dhik tān dhigetān kathayati satataṃ kīrtanastho mṛdaṃgaḥ ॥ 12-05

Meaning:- "Shame upon those who have no devotion to the lotus feet of SriKrishna, the son of mother Yasoda; who have no attachment for the describing the glories of Srimati Radharani; whose ears are not eager to listen to the stories of the Lord's lila." Such is the exclamation of the mrdanga sound of dhik-tam dhik-tam dhigatam at kirtana.

अर्थ:- धिक्कार है उन्हें जिन्हें भगवान् श्री कृष्ण जो माँ यशोदा के लाडले है उन के चरण कमलो में कोई भक्ति नहीं. मृदंग की ध्वनि धिक् तम धिक् तम करके ऐसे लोगो का धिक्कार करती है.


पत्रं नैव यदा करीलविटपे दोषो वसन्तस्य किं
नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् ।
वर्षा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणं
यत्पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः ॥ १२-०६


patraṃ naiva yadā karīlaviṭape doṣo vasantasya kiṃ
nolūko'pyavalokate yadi divā sūryasya kiṃ dūṣaṇam ।
varṣā naiva patanti cātakamukhe meghasya kiṃ dūṣaṇaṃ
yatpūrvaṃ vidhinā lalāṭalikhitaṃ tanmārjituṃ kaḥ kṣamaḥ ॥ 12-06

Meaning:- What fault of spring that the bamboo shoot has no leaves? What fault of the sun if the owl cannot see during the daytime? Is it the fault of the clouds if no raindrops fall into the mouth of the chatak bird? Who can erase what Lord Brahma has inscribed upon our foreheads at the time of birth?

अर्थ:- बसंत ऋतू क्या करेगी यदि बास पर पत्ते नहीं आते. सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता. बादलो का क्या दोष यदि बारिश की बूंदे चातक पक्षी की चोच में नहीं गिरती. उसे कोई कैसे बदल सकता है जो किसी के मूल में है.


सत्सङ्गाद्भवति हि साधुना खलानां
साधूनां न हि खलसंगतः खलत्वम् ।
आमोदं कुसुमभवं मृदेव धत्ते
मृद्गन्धं नहि कुसुमानि धारयन्ति ॥ १२-०७


satsaṅgādbhavati hi sādhunā khalānāṃ
sādhūnāṃ na hi khalasaṃgataḥ khalatvam ।
āmodaṃ kusumabhavaṃ mṛdeva dhatte
mṛdgandhaṃ nahi kusumāni dhārayanti ॥ 12-07

Meaning:- A wicked man may develop saintly qualities in the company of a devotee, but a devotee does not become impious in the company of a wicked person. The earth is scented by a flower that falls upon it, but the flower does not contact the odour of the earth.

अर्थ:- एक दुष्ट के मन में सद्गुणों का उदय हो सकता है यदि वह एक भक्त से सत्संग करता है. लेकिन दुष्ट का संग करने से भक्त दूषित नहीं होता. जमीन पर जो फूल गिरता है उससे धरती सुगन्धित होती है लेकिन पुष्प को धरती की गंध नहीं लगती.


साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थभूता हि साधवः ।
कालेन फलते तीर्थं सद्यः साधुसमागमः ॥ १२-०८


sādhūnāṃ darśanaṃ puṇyaṃ tīrthabhūtā hi sādhavaḥ ।
kālena phalate tīrthaṃ sadyaḥ sādhusamāgamaḥ ॥ 12-08

Meaning:-One indeed becomes blessed by having darshan of a devotee; for the devotee has the ability to purify immediately, whereas the sacred tirtha gives purity only after prolonged contact.

अर्थ:- उसका सही में कल्याण हो जाता है जिसे भक्त के दर्शन होते है. भक्त में तुरंत शुद्ध करने की क्षमता है. पवित्र क्षेत्र में तो लम्बे समय के संपर्क से शुद्धि होती है.


विप्रास्मिन्नगरे महान्कथय कस्तालद्रुमाणां गणः
को दाता रजको ददाति वसनं प्रातर्गृहीत्वा निशि ।
को दक्षः परवित्तदारहरणे सर्वोऽपि दक्षो जनः
कस्माज्जीवसि हे सखे विषकृमिन्यायेन जीवाम्यहम् ॥ १२-०९


viprāsminnagare mahānkathaya kastāladrumāṇāṃ gaṇaḥ
ko dātā rajako dadāti vasanaṃ prātargṛhītvā niśi ।
ko dakṣaḥ paravittadāraharaṇe sarvo'pi dakṣo janaḥ
kasmājjīvasi he sakhe viṣakṛminyāyena jīvāmyaham ॥ 12-09

Meaning:-A stranger asked a Brahmana, "Tell me, who is great in this city?" The Brahmana replied, "The cluster of palmyra trees is great." Then the traveller asked, "Who is the most charitable person?" The Brahmana answered, "The washerman who takes the clothes in the morning and gives them back in the evening is the most charitable." He then asked, "Who is the ablest man?" The Brahmana answered, "Everyone is expert in robbing others of their wives and wealth." The man then asked the Brahmana, "How do you manage to live in such a city?" The Brahmana replied, "As a worm survives while even in a filthy
place so do I survive here!"

अर्थ:- एक अजनबी ने एक ब्राह्मण से पूछा. "बताइए, इस शहर में महान क्या है?". ब्राह्मण ने जवाब दिया की खजूर के पेड़ का समूह महान है. अजनबी ने सवाल किया की यहाँ दानी कौन है? जवाब मिला के वह धोबी जो सुबह कपडे ले जाता है और शाम को लौटाता है. प्रश्न हुआ यहाँ सबसे काबिल कौन है. जवाब मिला यहाँ हर कोई दुसरे का द्रव्य और दारा हरण करने में काबिल है. प्रश्न हुआ की आप ऐसी जगह रह कैसे लेते हो? जवाब मिला की जैसे एक कीड़ा एक दुर्गन्ध युक्त जगह पर रहता है.


न विप्रपादोदककर्दमाणि
न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि ।
स्वाहास्वधाकारविवर्जितानि
श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि ॥ १२-१०


na viprapādodakakardamāṇi
na vedaśāstradhvanigarjitāni ।
svāhāsvadhākāravivarjitāni
śmaśānatulyāni gṛhāṇi tāni ॥ 12-10

Meaning:- The house in which the lotus feet of Brahmanas are not washed, in which Vedic mantras are not loudly recited, and in which the holy rites of svaha (sacrificial offerings to the Supreme Lord) and swadha (offerings to the ancestors) are not performed, is like a crematorium.

अर्थ:- वह घर जहा ब्राह्मणों के चरण कमल को धोया नहीं जाता, जहा वैदिक मंत्रो का जोर से उच्चारण नहीं होता. और जहा भगवान् को और पितरो को भोग नहीं लगाया जाता वह घर एक स्मशान है.


सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा ।
शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः ॥ १२-११


satyaṃ mātā pitā jñānaṃ dharmo bhrātā dayā sakhā ।​
śāntiḥ patnī kṣamā putraḥ ṣaḍete mama bāndhavāḥ ॥ 12-11

Meaning:- (It is said that a sadhu, when asked about his family, replied thusly): truth is my mother, and my father is spiritual knowledge; righteous conduct is my brother, and mercy is my friend, inner peace is my wife, and forgiveness is my son: these six are my kinsmen.

अर्थ:- सत्य मेरी माता है. अध्यात्मिक ज्ञान मेरा पिता है. धर्माचरण मेरा बंधू है. दया मेरा मित्र है. भीतर की शांति मेरी पत्नी है. क्षमा मेरा पुत्र है. मेरे परिवार में ये छह लोग है.


अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः ।
नित्यं संनिहितो मृत्युः कर्तव्यो धर्मसङ्ग्रहः ॥ १२-१२


anityāni śarīrāṇi vibhavo naiva śāśvataḥ ।
nityaṃ saṃnihito mṛtyuḥ kartavyo dharmasaṅgrahaḥ ॥ 12-12

Meaning:-Our bodies are perishable, wealth is not at all permanent and death is always nearby. Therefore we must immediately engage in acts of merit.

अर्थ: हमारा शरीर नश्वर हैं, अनित्य हैं, नष्ट होने वाला हैं, तो भी लोभी मनुष्य अधर्माचरण में लिप्त रहता हैं चाणक्य ने कहा हैं कि शरीर अनित्य हैं ऐसी स्थिति में मनुष्य को यथाशीघ्र धर्म-संग्रह में प्रवर्त हो जाना चाहिए, जीवन के उपरान्त धर्म ही मनुष्य का सच्चा मित्र हैं।


निमन्त्रोत्सवा विप्रा गावो नवतृणोत्सवाः ।
पत्युत्साहयुता भार्या अहं कृष्णचरणोत्सवः ॥ १२-१३


nimantrotsavā viprā gāvo navatṛṇotsavāḥ ।
patyutsāhayutā bhāryā ahaṃ kṛṣṇacaraṇotsavaḥ ॥ 12-13

Meaning:-Arjuna says to Krishna. "Brahmanas find joy in going to feasts, cows find joy in eating their tender grass, wives find joy in the company of their husbands, and know, O Krishna, that in the same way I rejoice in battle.

अर्थ:- जिस प्रकार यजमान से निमंत्रण पाना ही ब्राह्मणों के लिए प्रसन्नता का अवसर होता हैं, जैसे हरी घास मिल जाना गायो के लिए प्रसन्नता की बात होती हैं इसी प्रकार पति की प्रसन्नता स्त्रियों के लिए उत्सव होती हैं परन्तु मेरे लिए तो भीषण रण में अनुराग ही जीवन की सार्थकता अथार्त उत्सव हैं।


मातृवत्परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ट्रवत् ।
आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः ॥ १२-१४

mātṛvatparadāreṣu paradravyeṣu loṣṭravat ।
ātmavatsarvabhūteṣu yaḥ paśyati sa paṇḍitaḥ ॥ 12-14

Meaning:- He who regards another's wife as his mother, the wealth that does not belong to him as a lump of mud, and the pleasure and pain of all other living beings as his own -- truly sees things in the right perspective, and he is a true pandit.

अर्थ:- जो दुसरे के पत्नी को अपनी माता मानता है, दुसरे को धन को मिटटी का ढेला, दुसरे के सुख दुःख को अपने सुख दुःख. उसी को सही दृष्टी प्राप्त है और वही विद्वान है.


धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेऽवञ्चकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिमभीरता ।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञानता
रूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्ति भो राघव ॥ १२-१५

dharme tatparatā mukhe madhuratā dāne samutsāhatā
mitre'vañcakatā gurau vinayatā citte'timabhīratā ।
ācāre śucitā guṇe rasikatā śāstreṣu vijñānatā
rūpe sundaratā śive bhajanatā tvayyasti bho rāghava ॥ 12-15

Meaning:- O Raghava, the love of virtue, pleasing speech, and an ardent desire for performing acts of charity, guileless dealings with friends, humility in the guru's presence , deep tranquillity of mind, pure conduct, discernment of virtues, realised knowledge of the sastras, beauty of form and devotion to God are all found in you." (The great sage Vasistha Muni, the spiritual preceptor of the dynasty of the sun, said this to Lord Ramachandra at the time of His proposed coronation).

अर्थ:- भगवान राम में ये सब गुण है. १. सद्गुणों में प्रीती. २. मीठे वचन ३. दान देने की तीव्र इच्छा शक्ति. ४. मित्रो के साथ कपट रहित व्यवहार. ५. गुरु की उपस्थिति में विनम्रता ६. मन की गहरी शान्ति. ६. शुद्ध आचरण ७. गुणों की परख ८. शास्त्र के ज्ञान की अनुभूति ८. रूप की सुन्दरता ९. भगवत भक्ति.


काष्ठं कल्पतरुः सुमेरुचलश्चिन्तामणिः प्रस्तरः
सूर्यास्तीव्रकरः शशी क्षयकरः क्षारो हि वारां निधिः ।
कामो नष्टतनुर्वलिर्दितिसुतो नित्यं पशुः कामगौ-
र्नैतांस्ते तुलयामि भो रघुपते कस्योपमा दीयते ॥ १२-१६

kāṣṭhaṃ kalpataruḥ sumerucalaścintāmaṇiḥ prastaraḥ
sūryāstīvrakaraḥ śaśī kṣayakaraḥ kṣāro hi vārāṃ nidhiḥ ।
kāmo naṣṭatanurvalirditisuto nityaṃ paśuḥ kāmagau-
rnaitāṃste tulayāmi bho raghupate kasyopamā dīyate ॥ 12-16

Meaning:- The desire tree is wood; the golden Mount Meru is motionless; the wish-fulfilling gem cintamani is just a stone; the sun is scorching; the moon is prone to wane; the boundless ocean is saline; the demigod of lust lost his body (due to Shiva's wrath); Bali Maharaja, the son of Diti, was born into a clan of demons; and Kamadhenu (the cow of heaven) is a mere beast. O Lord of the Raghu dynasty! I cannot compare you to any one of these (taking their merits into account).

अर्थ:- कल्प तरु तो एक लकड़ी ही है. सुवर्ण का सुमेर पर्वत तो निश्छल है. चिंता मणि तो एक पत्थर है. सूर्य में ताप है. चन्द्रमा तो घटता बढ़ता रहता है. अमर्याद समुद्र तो खारा है. काम देव का तो शरीर ही जल गया. महाराज बलि तो राक्षस कुल में पैदा हुए. कामधेनु तो पशु ही है. भगवान् राम के समान कौन है.


विद्या मित्रं प्रवासे च भार्या मित्रं गृहेषु च ।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च ॥ १२-१७

vidyā mitraṃ pravāse ca bhāryā mitraṃ gṛheṣu ca ।
vyādhitasyauṣadhaṃ mitraṃ dharmo mitraṃ mṛtasya ca ॥ 12-17

Meaning:- Realised learning (Vidya) is our friend while travelling , the wife is a friend at home, medicine is the friend of a sick man, and meritorious deeds are the friends at death.

अर्थ:- विद्या सफ़र में हमारा मित्र है. पत्नी घर पर मित्र है. औषधि रुग्ण व्यक्ति की मित्र है. मरते वक्त तो पुण्य कर्म ही मित्र है.


विनयं राजपुत्रेभ्यः पण्डितेभ्यः सुभाषितम् ।
अनृतं द्यूतकारेभ्यः स्त्रीभ्यः शिक्षेत कैतवम् ॥ १२-१८

vinayaṃ rājaputrebhyaḥ paṇḍitebhyaḥ subhāṣitam ।
anṛtaṃ dyūtakārebhyaḥ strībhyaḥ śikṣeta kaitavam ॥ 12-18

Meaning:- Courtesy should be learned from princes, the art of conversation from pandits, lying should be learned from gamblers and deceitful ways should be learned from women.

अर्थ:- राज परिवारों से शिष्टाचार सीखे. पंडितो से बोलने की कला सीखे. जुगारियो से झूट बोलना सीखे. एक औरत से छल सीखे.


अनालोक्य व्ययं कर्ता अनाथः कलहप्रियः ।
आतुरः सर्वक्षेत्रेषु नरः शीघ्रं विनश्यति ॥ १२-१९

anālokya vyayaṃ kartā anāthaḥ kalahapriyaḥ ।
āturaḥ sarvakṣetreṣu naraḥ śīghraṃ vinaśyati ॥ 12-19

Meaning:- The unthinking spender, the homeless urchin, the quarrel monger, the man who neglects his wife and is heedless in his actions -- all these will soon come to ruination.

अर्थ:- बिना सोचे समझे खर्च करने वाला, नटखट बच्चा जिसे अपना घर नहीं, झगड़े पर आमदा आदमी, अपनी पत्नी को दुर्लक्षित करने वाला, जो अपने आचरण पर ध्यान नहीं देता है. ये सब लोग जल्दी ही बर्बाद हो जायेंगे.


नाहारं चिन्तयेत्प्राज्ञो धर्ममेकं हि चिन्तयेत् ।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते ॥ १२-२०

nāhāraṃ cintayetprājño dharmamekaṃ hi cintayet ।
āhāro hi manuṣyāṇāṃ janmanā saha jāyate ॥ 12-20

Meaning:- The wise man should not be anxious about his food; he should be anxious to be engaged only in dharma (Krishna consciousness). the food of each man is created for him at his birth.

अर्थ:- एक विद्वान व्यक्ति ने अपने भोजन की चिंता नहीं करनी चाहिए. उसे सिर्फ अपने धर्म को निभाने की चिंता होनी चाहिए. हर व्यक्ति का भोजन पर जन्म से ही अधिकार है.


धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासङ्ग्रहणे तथा ।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ॥ १२-२१

dhanadhānyaprayogeṣu vidyāsaṅgrahaṇe tathā ।
āhāre vyavahāre ca tyaktalajjaḥ sukhī bhavet ॥ 12-21

Meaning:- He who is not shy in the acquisition of wealth, grain and knowledge, and in taking his meals, will be happy.

अर्थ:- जिसे दौलत, अनाज और विद्या अर्जित करने में और भोजन करने में शर्म नहीं आती वह सुखी रहता है.


जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ॥ १२-२२

jalabindunipātena kramaśaḥ pūryate ghaṭaḥ ।
sa hetuḥ sarvavidyānāṃ dharmasya ca dhanasya ca ॥ 12-22

Meaning:- As centesimal droppings will fill a pot so also are knowledge, virtue and wealth gradually obtained.

अर्थ:- बूंद बूंद से सागर बनता है. इसी तरह बूंद बूंद से ज्ञान, गुण और संपत्ति प्राप्त होते है.


वयसः परिणामेऽपि यः खलः खल एव सः ।
सम्पक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम् ॥ १२-२३

vayasaḥ pariṇāme'pi yaḥ khalaḥ khala eva saḥ ।
sampakvamapi mādhuryaṃ nopayātīndravāruṇam ॥ 12-23

Meaning:- The man who remains a fool even in advanced age is really a fool, just as the Indra-Varuna fruit does not become sweet no matter how ripe it might become.

अर्थ:-
जो व्यक्ति अपने बुढ़ापे में भी मुर्ख है वह सचमुच ही मुर्ख है. उसी प्रकार जिस प्रकार इन्द्र वरुण का फल कितना भी पके मीठा नहीं होता.


मुहूर्तमपि जीवेच्च नरः शुक्लेन कर्मणा ।
न कल्पमपि कष्टेन लोकद्वयविरोधिना ॥ १३-०१


muhūrtamapi jīvecca naraḥ śuklena karmaṇā ।
na kalpamapi kaṣṭena lokadvayavirodhinā ॥ 13-01

Meaning:- A man may live but for a moment, but that moment should be spent in doing auspicious deeds. It is useless living even for a kalpa (4,320,000 *1000 years) and bringing only distress upon the two worlds (this world and the next).

अर्थ:-
यदि आदमी एक पल के लिए भी जिए तो भी उस पल को वह शुभ कर्म करने में खर्च करे. एक कल्प तक जी कर कोई लाभ नहीं. दोनों लोक इस लोक और पर-लोक में तकलीफ होती है.


गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः ॥ १३-०२


gate śoko na kartavyo bhaviṣyaṃ naiva cintayet ।
vartamānena kālena vartayanti vicakṣaṇāḥ ॥ 13-02

Meaning:- We should not fret for what is past, nor should we be anxious about the future; men of discernment deal only with the present moment.

अर्थ:- हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है.


स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषाः पिता ।
ज्ञातयः स्नानपानाभ्यां वाक्यदानेन पण्डिताः ॥ १३-०३


svabhāvena hi tuṣyanti devāḥ satpuruṣāḥ pitā ।
jñātayaḥ snānapānābhyāṃ vākyadānena paṇḍitāḥ ॥ 13-03

Meaning:- It certainly is nature of the demigods, men of good character, and parents to be easily pleased. Near and distant relatives are pleased when they are hospitably received with bathing, food, and drink; and pandits are pleased with an opportunity for giving spiritual discourse.

अर्थ:- यह देवताओ का, संत जनों का और पालको का स्वभाव है की वे जल्दी प्रसन्न हो जाते है. निकट के और दूर के रिश्तेदार तब प्रसन्न होते है जब उनका आदर सम्मान किया जाए. उनके नहाने का, खाने पिने का प्रबंध किया जाए. पंडित जन जब उन्हें अध्यात्मिक सन्देश का मौका दिया जाता है तो प्रसन्न होते है.


आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च ।
पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ॥ १३-०४


āyuḥ karma ca vittaṃ ca vidyā nidhanameva ca ।
pañcaitāni hi sṛjyante garbhasthasyaiva dehinaḥ ॥ 13-04

Meaning:- Even as the unborn babe is in the womb of his mother, these five are fixed as his life destiny: his life span, his activities, his acquisition of wealth and knowledge, and his time of death.

अर्थ:- जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है तो यह पाच बाते तय हो जाती है... १. कितनी लम्बी उम्र होगी. २. वह क्या करेगा ३. और ४. कितना धन और ज्ञान अर्जित करेगा. ५. मौत कब होगी.


अहो बत विचित्राणि चरितानि महात्मनाम् ।
लक्ष्मीं तृणाय मन्यन्ते तद्भारेण नमन्ति च ॥ १३-०५


aho bata vicitrāṇi caritāni mahātmanām ।
lakṣmīṃ tṛṇāya manyante tadbhāreṇa namanti ca ॥ 13-05

Meaning:- O see what a wonder it is! The doings of the great are strange: they treat wealth as light as a straw, yet, when they obtain it, they bend under its weight.

अर्थ:- देखिये क्या आश्चर्य है? बड़े लोग अनोखी बाते करते है. वे पैसे को तो तिनके की तरह मामूली समझते है लेकिन जब वे उसे प्राप्त करते है तो उसके भार से और विनम्र होकर झुक जाते है.


यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम् ।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्त्वा वसेत् सुखम् ॥ १३-०६


yasya sneho bhayaṃ tasya sneho duḥkhasya bhājanam ।
snehamūlāni duḥkhāni tāni tyaktvā vaset sukham ॥ 13-06

Meaning:- He who is overly attached to his family members experiences fear and sorrow, for the root of all grief is attachment. Thus one should discard attachment to be happy.
अर्थ:- जो भविष्य के लिए तैयार है और जो किसी भी परिस्थिति को चतुराई से निपटता है. ये दोनों व्यक्ति सुखी है. लेकिन जो आदमी सिर्फ नसीब के सहारे चलता है वह बर्बाद होता है.


अनागतविधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा ।
द्वावेतौ सुखमेधेते यद्भविष्यो विनश्यति ॥ १३-०७


anāgatavidhātā ca pratyutpannamatistathā ।
dvāvetau sukhamedhete yadbhaviṣyo vinaśyati ॥ 13-07

Meaning:- He who is prepared for the future and he who deals cleverly with any situation that may arise are both happy; but the fatalistic man who wholly depends on luck is ruined.

अर्थ:- जो भविष्य के लिए तैयार है और जो किसी भी परिस्थिति को चतुराई से निपटता है. ये दोनों व्यक्ति सुखी है. लेकिन जो आदमी सिर्फ नसीब के सहारे चलता है वह बर्बाद होता है.


राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः ।
राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः ॥ १३-०८


rājñi dharmiṇi dharmiṣṭhāḥ pāpe pāpāḥ same samāḥ ।
rājānamanuvartante yathā rājā tathā prajāḥ ॥ 13-08

Meaning:-If the king is virtuous, then the subjects are also virtuous. If the king is sinful, then the subjects also become sinful. If he is mediocre, then the subjects are mediocre. The subjects follow the example of the king. In short, as is the king so are the subjects.

अर्थ:- यदि राजा पुण्यात्मा है तो प्रजा भी वैसी ही होती है. यदि राजा पापी है तो प्रजा भी पापी. यदि वह सामान्य है तो प्रजा सामान्य. प्रजा के सामने राजा का उद्हारण होता है. और वो उसका अनुसरण करती है.


जीवन्तं मृतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितम् ।
मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशयः ॥ १३-०९


jīvantaṃ mṛtavanmanye dehinaṃ dharmavarjitam ।
mṛto dharmeṇa saṃyukto dīrghajīvī na saṃśayaḥ ॥ 13-09

Meaning:-I consider him who does not act religiously as dead though living, but he who dies acting religiously unquestionably lives long though he is dead.

अर्थ:- मेरी नजरो में वह आदमी मृत है जो जीते जी धर्म का पालन नहीं करता. लेकिन जो धर्म पालन में अपने प्राण दे देता है वह मरने के बाद भी बेशक लम्बा जीता है.


धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते ।
अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ॥ १३-१०


dharmārthakāmamokṣāṇāṃ yasyaiko'pi na vidyate ।
ajāgalastanasyeva tasya janma nirarthakam ॥ 13-10

Meaning:- He who has acquired neither virtue, wealth, satisfaction of desires nor salvation (dharma, artha, kama, moksa), lives an utterly useless life, like the "nipples" hanging from the neck of a goat.

अर्थ:- जिस व्यक्ति ने न ही कोई ज्ञान संपादन किया, ना ही पैसा कमाया, मुक्ति के लिए जो आवश्यक है उसकी पूर्ति भी नहीं किया. वह एक निहायत बेकार जिंदगी जीता है जैसे के बकरी की गर्दन से झूलने वाले स्तन.


दह्यमानाः सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते ॥१३-११


dahyamānāḥ sutīvreṇa nīcāḥ parayaśo'gninā​
aśaktāstatpadaṃ gantuṃ tato nindāṃ prakurvate ॥13-11

Meaning:- The hearts of base men burn before the fire of other's fame, and they slander them being themselves unable to rise to such a high position.

अर्थ- जो नीच लोग होते है वो दुसरे की कीर्ति को देखकर जलते है. वो दुसरे के बारे में अपशब्द कहते है क्यों की उनकी कुछ करने की औकात नहीं है.


बन्धाय विषयासङ्गो मुक्त्यै निर्विषयं मनः ।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ॥ १३-१२


bandhāya viṣayāsaṅgo muktyai nirviṣayaṃ manaḥ ।
mana eva manuṣyāṇāṃ kāraṇaṃ bandhamokṣayoḥ ॥ 13-12

Meaning:-Excessive attachment to sense pleasures leads to bondage, and detachment from sense pleasures leads to liberation; therefore it is the mind alone that is responsible for bondage or liberation.

अर्थ:- यदि विषय बहुत प्रिय है तो वो बंधन में डालते है. विषय सुख की अनासक्ति से मुक्ति की और गति होती है. इसीलिए मुक्ति या बंधन का मूल मन ही है.


देहाभिमाने गलितं ज्ञानेन परमात्मनि ।
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः ॥ १३-१३


dehābhimāne galitaṃ jñānena paramātmani ।
yatra yatra mano yāti tatra tatra samādhayaḥ ॥ 13-13

Meaning:-He who sheds bodily identification by means of knowledge of the indwelling Supreme Self (Paramatma), will always be absorbed in meditative trance (samadhi) wherever his mind leads him.

अर्थ:- जो आत्म स्वरुप का बोध होने से खुद को शारीर नहीं मानता, वह हरदम समाधी में ही रहता है भले ही उसका शरीर कही भी चला जाए.


ईप्सितं मनसः सर्वं कस्य सम्पद्यते सुखम् ।
दैवायत्तं यतः सर्वं तस्मात्सन्तोषमाश्रयेत् ॥ १३-१४

īpsitaṃ manasaḥ sarvaṃ kasya sampadyate sukham ।
daivāyattaṃ yataḥ sarvaṃ tasmātsantoṣamāśrayet ॥ 13-14

Meaning:- Who realises all the happiness he desires? Everything is in the hands of God. Therefore one should learn contentment.

अर्थ:- किस को सब सुख प्राप्त हुए जिसकी कामना की. सब कुछ भगवान् के हाथ में है. इसलिए हमें संतोष में जीना होगा.


यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम् ।
तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति ॥ १३-१५

yathā dhenusahasreṣu vatso gacchati mātaram ।
tathā yacca kṛtaṃ karma kartāramanugacchati ॥ 13-15

Meaning:- As a calf follows its mother among a thousand cows, so the (good or bad) deeds of a man follow him.

अर्थ:- जिस प्रकार एक गाय का बछड़ा, हजारो गायो में अपनी माँ के पीछे चलता है उसी तरह कर्म आदमी के पीछे चलते है.


अनवस्थितकार्यस्य न जने न वने सुखम् ।
जनो दहति संसर्गाद्वनं संगविवर्जनात् ॥ १३-१६

anavasthitakāryasya na jane na vane sukham ।
jano dahati saṃsargādvanaṃ saṃgavivarjanāt ॥ 13-16

Meaning:- He whose actions are disorganised has no happiness either in the midst of men or in a jungle -- in the midst of men his heart burns by social contacts, and his helplessness burns him in the forest.

अर्थ:- जिस के काम करने में कोई व्यवस्था नहीं, उसे कोई सुख नहीं मिल सकता. लोगो के बीच या वन में. लोगो के मिलने से उसका ह्रदय जलता है और वन में तो कोई सुविधा होती ही नहीं.


यथा खात्वा खनित्रेण भूतले वारि विन्दति ।
तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रूषुरधिगच्छति ॥ १३-१७

khanitvā hi khanitreṇa bhūtale vāri vindati ।
tathā gurugatāṃ vidyāṃ śuśrūṣuradhigacchati ॥ 13-17

Meaning:- As the man who digs obtains underground water by use of a shovel, so the student attains the knowledge possessed by his preceptor through his service.

अर्थ:- यदि आदमी उपकरण का सहारा ले तो गर्भजल से पानी निकाल सकता है. उसी तरह यदि विद्यार्थी अपने गुरु की सेवा करे तो गुरु के पास जो ज्ञान निधि है उसे प्राप्त करता है.


कर्मायत्तं फलं पुंसां बुद्धिः कर्मानुसारिणी ।
तथापि सुधियश्चार्या सुविचार्यैव कुर्वते ॥ १३-१८

karmāyattaṃ phalaṃ puṃsāṃ buddhiḥ karmānusāriṇī ।
tathāpi sudhiyaścāryā suvicāryaiva kurvate ॥ 13-18

Meaning:- Men reap the fruits of their deeds, and intellects bear the mark of deeds performed in previous lives; even so the wise act after due circumspection.

अर्थ:- हमें अपने कर्म का फल मिलता है. हमारी बुद्धि पर इसके पहले हमने जो कर्म किये है उसका निशान है. इसीलिए जो बुद्धिमान लोग है वो सोच विचार कर कर्म करते है.


सन्तोषस्त्रिषुकर्तव्य: स्वदारेभोजनेधने ||
त्रिषुचैवन कर्तव्योऽध्ययनेजपदानयोः ॥ १३-१९

santoṣastriṣukartavya: svadārebhojanedhane ||
triṣucaivana kartavyo'dhyayanejapadānayoḥ ॥ 13-19

Meaning:- It is appropriate to be satisfied with these three:- 1)women, 2)food and 3)money. You should never be satisfied in these three:- 1)Reading 2)penance and 3)charity.

अर्थ:- टीका-स्त्री, भोजन और धन इन तीनमें सन्तोष करना उचित है. पढना, तप और दान इन तीन में संतोष कभी नहीं करना चाहिये.



एकाक्षरप्रदातारं यो गुरुं नाभिवन्दते ।
श्वानयोनिशतं गत्वा चाण्डालेष्वभिजायते ॥ १३-२०

ekākṣarapradātāraṃ yo guruṃ nābhivandate ।
śvānayoniśataṃ gatvā cāṇḍāleṣvabhijāyate ॥ 13-20

Meaning:- Even the man who has taught the spiritual significance of just one letter ought to be worshiped. He who does not give reverence to such a guru is born as a dog a hundred times, and at last takes birth as a chandala (dog-eater).

अर्थ:- जिस व्यक्ति ने आपको अध्यात्मिक महत्ता का एक अक्षर भी पढाया उसकी पूजा करनी चाहिए. जो ऐसे गुरु का सम्मान नहीं करता वह सौ बार कुत्ते का जन्म लेता है. और आखिर चंडाल बनता है. चांडाल वह है जो कुत्ता खाता है.


युगान्ते प्रचलेन्मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः ।
साधवः प्रतिपन्नार्थान्न चलन्ति कदाचन ॥ १३-२१

yugānte pracalenmeruḥ kalpānte sapta sāgarāḥ ।
sādhavaḥ pratipannārthānna calanti kadācana ॥ 13-21

Meaning:- He who is not shy in the acquisition of wealth, grain and knowledge, and in taking his meals, will be happy.

अर्थ:- जिसे दौलत, अनाज और विद्या अर्जित करने में और भोजन करने में शर्म नहीं आती वह सुखी रहता है.


युगान्ते प्रचलेन्मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः ।
साधवः प्रतिपन्नार्थान्न चलन्ति कदाचन ॥ १३-२१

yugānte pracalenmeruḥ kalpānte sapta sāgarāḥ ।
sādhavaḥ pratipannārthānna calanti kadācana ॥ 13-21

Meaning:- At the end of the yuga, Mount Meru may be shaken; at the end of the kalpa, the waters of the seven oceans may be disturbed; but a sadhu will never swerve from the spiritual path.

अर्थ:- जब युग का अंत हो जायेगा तो मेरु पर्वत डिग जाएगा. जब कल्प का अंत होगा तो सातों समुद्र का पानी विचलित हो जायगा. लेकिन साधू कभी भी अपने अध्यात्मिक मार्ग से नहीं डिगेगा.


पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥ १४-०१

pṛthivyāṃ trīṇi ratnāni jalamannaṃ subhāṣitam ।
mūḍhaiḥ pāṣāṇakhaṇḍeṣu ratnasaṃjñā vidhīyate ॥ 14-01

Meaning:- There are three gems upon this earth; food, water, and pleasing words -- fools (mudhas) consider pieces of rocks as gems.

अर्थ:- इस धरती पर अन्न, जल और मीठे वचन ये असली रत्न है. मूर्खो को लगता है पत्थर के टुकड़े रत्न है.


आत्मापराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।
दारिद्र्यदुःखरोगाणि बन्धनव्यसनानि च ॥ १४-०२

ātmāparādhavṛkṣasya phalānyetāni dehinām ।
dāridryaduḥkharogāṇi bandhanavyasanāni ca ॥ 14-02

Meaning:- Poverty, disease, sorrow, imprisonment and other evils are the fruits borne by the tree of one's own sins.

अर्थ:- गरीबी, दुःख और एक बंदी का जीवन यह सब व्यक्ति के किए हुए पापो का ही फल है.


पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही ।
एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः ॥ १४-०३

punarvittaṃ punarmitraṃ punarbhāryā punarmahī ।
etatsarvaṃ punarlabhyaṃ na śarīraṃ punaḥ punaḥ ॥ 14-03

Meaning:- Wealth, a friend, a wife, and a kingdom may be regained; but this body when lost may never be acquired again.

अर्थ:- आप दौलत, मित्र, पत्नी और राज्य गवाकर वापस पा सकते है लेकिन यदि आप अपनी काया गवा देते है तो वापस नहीं मिलेगी.


बहूनां चैव सत्त्वानां समवायो रिपुञ्जयः ।
वर्षाधाराधरो मेघस्तृणैरपि निवार्यते ॥ १४-०४

bahūnāṃ caiva sattvānāṃ samavāyo ripuñjayaḥ ।
varṣādhārādharo meghastṛṇairapi nivāryate ॥ 14-04

Meaning:- The enemy can be overcome by the union of large numbers, just as grass through its collectiveness wards off erosion caused by heavy rainfall.

अर्थ:- यदि हम बड़ी संख्या में एकत्र हो जाए तो दुश्मन को हरा सकते है. उसी प्रकार जैसे घास के तिनके एक दुसरे के साथ रहने के कारण भारी बारिश में भी क्षय नहीं होते.


जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि ।
प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्तितः ॥ १४-०५

jale tailaṃ khale guhyaṃ pātre dānaṃ manāgapi ।
prājñe śāstraṃ svayaṃ yāti vistāraṃ vastuśaktitaḥ ॥ 14-05

Meaning:- Oil on water, a secret communicated to a base man, a gift given to a worthy receiver, and scriptural instruction given to an intelligent man spread out by virtue of their nature.

अर्थ:- पानी पर तेल, एक कमीने आदमी को बताया हुआ राज, एक लायक व्यक्ति को दिया हुआ दान और एक बुद्धिमान व्यक्ति को पढाया हुआ शास्त्रों का ज्ञान
अपने स्वभाव के कारण तेजी से फैलते है.


धर्माख्याने श्मशाने च रोगिणां या मतिर्भवेत् ।
सा सर्वदैव तिष्ठेच्चेत्को न मुच्येत बन्धनात् ॥ १४-०६

dharmākhyāne śmaśāne ca rogiṇāṃ yā matirbhavet ।
sā sarvadaiva tiṣṭheccetko na mucyeta bandhanāt ॥ 14-06

Meaning:- If men should always retain the state of mind they experience when hearing religious instruction, when present at a crematorium ground, and when in sickness -- then who could not attain liberation.

अर्थ:- वह व्यक्ति क्यों मुक्ति को नहीं पायेगा जो निम्न लिखित परिस्थितियों में जो उसके मन की अवस्था होती है उसे कायम रखता है...
जब वह धर्म के अनुदेश को सुनता है.
जब वह स्मशान घाट में होता है.
जब वह बीमार होता है.


उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी ।
तादृशी यदि पूर्वं स्यात्कस्य न स्यान्महोदयः ॥ १४-०७

utpannapaścāttāpasya buddhirbhavati yādṛśī ।
tādṛśī yadi pūrvaṃ syātkasya na syānmahodayaḥ ॥ 14-07

Meaning:- If a man should feel before, as he feels after, repentance -- then who would not attain perfection?

अर्थ:- वह व्यक्ति क्यों पूर्णता नहीं हासिल करेगा जो पश्चाताप में जो मन की अवस्था होती है, उसी अवस्था को काम करते वक़्त बनाए रखेंगा.


दाने तपसि शौर्ये वा विज्ञाने विनये नये ।
विस्मयो नहि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ॥ १४-०८

dāne tapasi śaurye vā vijñāne vinaye naye ।
vismayo nahi kartavyo bahuratnā vasundharā ॥ 14-08

Meaning:-We should not feel pride in our charity, austerity, valour, scriptural knowledge, modesty and morality for the world is full of the rarest gems.

अर्थ:- हमें अभिमान नहीं होना चाहिए जब हम ये बाते करते है.. १. परोपकार २. आत्म संयम ३. पराक्रम ४. शास्त्र का ज्ञान हासिल करना. ५. विनम्रता ६. नीतिमत्ता यह करते वक़्त अभिमान करने की इसलिए जरुरत नहीं क्यों की दुनिया बहुत कम दिखाई देने वाले दुर्लभ रत्नों से भरी पड़ी है.


दूरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थितः ।
यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः ॥ १४-०९

dūrastho'pi na dūrastho yo yasya manasi sthitaḥ ।
yo yasya hṛdaye nāsti samīpastho'pi dūrataḥ ॥ 14-09

Meaning:-He who lives in our mind is near though he may actually be far away; but he who is not in our heart is far though he may really be nearby.

अर्थ:- वह जो हमारे मन में रहता हमारे निकट है. हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो. लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत दूर है.


यस्माच्च प्रियमिच्छेत्तु तस्य ब्रूयात्सदा प्रियम् ।
व्याधो मृगवधं कर्तुं गीतं गायति सुस्वरम् ॥ १४-१०

yasmācca priyamicchettu tasya brūyātsadā priyam ।
vyādho mṛgavadhaṃ kartuṃ gītaṃ gāyati susvaram ॥ 14-10

Meaning:- He who has acquired neither virtue, wealth, satisfaction of desires nor salvation (dharma, artha, kama, moksa), lives an utterly useless life, like the "nipples" hanging from the neck of a goat.

अर्थ:- जिस व्यक्ति ने न ही कोई ज्ञान संपादन किया, ना ही पैसा कमाया, मुक्ति के लिए जो आवश्यक है उसकी पूर्ति भी नहीं किया. वह एक निहायत बेकार जिंदगी जीता है जैसे के बकरी की गर्दन से झूलने वाले स्तन.


अत्यासन्ना विनाशाय दूरस्था न फलप्रदा ।
सेव्यतां मध्यभावेन राजा वह्निर्गुरुः स्त्रियः ॥ १४-११

atyāsannā vināśāya dūrasthā na phalapradā ।
sevyatāṃ madhyabhāvena rājā vahnirguruḥ striyaḥ ॥ 14-11

Meaning:- It is ruinous to be familiar with the king, fire, the religious preceptor, and a woman. To be altogether indifferent of them is to be deprived of the opportunity to benefit ourselves, hence our association with them must be from a safe distance.

अर्थ:- जो व्यक्ति राजा से, अग्नि से, धर्म गुरु से और स्त्री से बहुत परिचय बढ़ाता है वह विनाश को प्राप्त होता है. जो व्यक्ति इनसे पूर्ण रूप से अलिप्त रहता है, उसे अपना भला करने का कोई अवसर नहीं मिलता. इसलिए इनसे सुरक्षित अंतर रखकर सम्बन्ध रखना चाहिए.


अग्निरापः स्त्रियो मूर्खाः सर्पा राजकुलानि च ।
नित्यं यत्नेन सेव्यानि सद्यः प्राणहराणि षट् ॥ १४-१२

agnirāpaḥ striyo mūrkhāḥ sarpā rājakulāni ca ।
nityaṃ yatnena sevyāni sadyaḥ prāṇaharāṇi ṣaṭ ॥ 14-12

Meaning:-We should always deal cautiously with fire, water, women, foolish people, serpents, and members of a royal family; for they may, when the occasion presents itself, at once bring about our death.

अर्थ:- हम इनके साथ बहुत सावधानी से पेश आये.. १. अग्नि २. पानी ३. औरत ४. मुर्ख ५. साप ६. राज परिवार के सदस्य. जब जब हम इनके संपर्क में आते है. क्योकि ये हमें एक झटके में मौत तक पंहुचा सकते है.


स जीवति गुणा यस्य यस्य धर्मः स जीवति ।
गुणधर्मविहीनस्य जीवितं निष्प्रयोजनम् ॥ १४-१३

sa jīvati guṇā yasya yasya dharmaḥ sa jīvati ।
guṇadharmavihīnasya jīvitaṃ niṣprayojanam ॥ 14-13

Meaning:-He should be considered to be living who is virtuous and pious, but the life of a man who is destitute of religion and virtues is void of any blessing.

अर्थ:- वही व्यक्ति जीवित है जो गुणवान है और पुण्यवान है. लेकिन जिसके पास धर्म और गुण नहीं उसे क्या शुभ कामना दी जा सकती है.


यदीच्छसि वशीकर्तुं जगदेकेन कर्मणा ।
पुरा पञ्चदशास्येभ्यो गां चरन्ती निवारय ॥ १४-१४

yadīcchasi vaśīkartuṃ jagadekena karmaṇā ।
purā pañcadaśāsyebhyo gāṃ carantī nivāraya ॥ 14-14

Meaning:- If you wish to gain control of the world by the performance of a single deed, then keep the following fifteen, which are prone to wander here and there, from getting the upper hand of you: the five sense objects (objects of sight, sound, smell, taste, and touch); the five sense organs (ears, eyes, nose, tongue and skin) and organs of
activity (hands, legs, mouth, genitals and anus).

अर्थ:- यदि आप दुनिया को एक काम करके जितना चाहते हो तो इन पंधरा को अपने काबू में रखो. इन्हें इधर उधर ना भागने दे. पांच इन्द्रियों के विषय १. जो दिखाई देता है २. जो सुनाई देता है ३. जिसकी गंध
आती है ४. जिसका स्वाद आता है. ५. जिसका स्पर्श होता है. पांच इन्द्रिय १. आँख २. कान ३. नाक ४. जिव्हा ५. त्वचा पांच कर्मेन्द्रिय १. हाथ २. पाँव ३. मुह ४. जननेंद्रिय ५. गुदा


प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम् ।
आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः ॥ १४-१५

prastāvasadṛśaṃ vākyaṃ prabhāvasadṛśaṃ priyam ।
ātmaśaktisamaṃ kopaṃ yo jānāti sa paṇḍitaḥ ॥ 14-15

Meaning:- He is a pandit (man of knowledge) who speaks what is suitable to the occasion, who renders loving service according to his ability, and who knows the limits of his anger.

अर्थ:- वही पंडित है जो वही बात बोलता है जो प्रसंग के अनुरूप हो. जो अपनी शक्ति के अनुरूप दुसरो की प्रेम से सेवा करता है. जिसे अपने क्रोध की मर्यादा का पता है.


एक एव पदार्थस्तु त्रिधा भवति वीक्षितः ।
कुणपं कामिनी मांसं योगिभिः कामिभिः श्वभिः ॥ १४-१६

eka eva padārthastu tridhā bhavati vīkṣitaḥ ।
kuṇapaṃ kāminī māṃsaṃ yogibhiḥ kāmibhiḥ śvabhiḥ ॥ 14-16

Meaning:- One single object (a woman) appears in three different ways: to the man who practices austerity it appears as a corpse, to the sensual it appears as a woman, and to the dogs as a lump of flesh.

अर्थ:- एक ही वस्तु देखने वालो की योग्यता के अनुरूप बिलग बिलग दिखती है. तप करने वाले में वस्तु को देखकर कोई कामना नहीं जागती. लम्पट आदमी को हर वस्तु में स्त्री दिखती है. कुत्ते को हर वस्तु में मांस दिखता है.


सुसिद्धमौषधं धर्मं गृहच्छिद्रं च मैथुनम् ।
कुभुक्तं कुश्रुतं चैव मतिमान्न प्रकाशयेत् ॥ १४-१७

susiddhamauṣadhaṃ dharmaṃ gṛhacchidraṃ ca maithunam ।
kubhuktaṃ kuśrutaṃ caiva matimānna prakāśayet ॥ 14-17

Meaning:- A wise man should not divulge the formula of a medicine which he has well prepared; an act of charity which he has performed; domestic conflicts; private affairs with his wife; poorly prepared food he may have been offered; or slang he may have heard.

अर्थ:- जो व्यक्ति बुद्धिमान है वह निम्न लिखित बाते किसी को ना बताये... वह औषधि उसने कैसे बनायीं जो अच्छा काम कर रही है. वह परोपकार जो उसने किया. उसके घर के झगडे. उसकी उसके पत्नी के साथ होने वाली व्यक्तिगत बाते. उसने जो ठीक से न पका हुआ खाना खाया. जो गालिया उसने सुनी.


तावन्मौनेन नीयन्ते कोकिलैश्चैव वासराः ।
यावत्सर्वजनानन्ददायिनी वाक्प्रवर्तते ॥ १४-१८

tāvanmaunena nīyante kokilaiścaiva vāsarāḥ ।
yāvatsarvajanānandadāyinī vākpravartate ॥ 14-18

Meaning:- The cuckoos remain silent for a long time (for several seasons) until they are able to sing sweetly (in the Spring ) so as to give joy to all.

अर्थ:- कोकिल तब तक मौन रहते है. जबतक वो मीठा गाने की क़ाबलियत हासिल नहीं कर लेते और सबको आनंद नहीं पंहुचा सकते.


धर्मं धनं च धान्यं च गुरोर्वचनमौषधम् ।
सुगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा तु न जीवति ॥ १४-१९

dharmaṃ dhanaṃ ca dhānyaṃ ca gurorvacanamauṣadham ।
sugṛhītaṃ ca kartavyamanyathā tu na jīvati ॥ 14-19

Meaning:- It is appropriate to be satisfied with these three:- 1)women, 2)food and 3)money. You should never be satisfied in these three:- 1)Reading 2)penance and 3)charity.

अर्थ:- टीका-स्त्री, भोजन और धन इन तीनमें सन्तोष करना उचित है. पढना, तप और दान इन तीन में संतोष कभी नहीं करना चाहिये.



धर्मं धनं च धान्यं च गुरोर्वचनमौषधम् ।
सुगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा तु न जीवति ॥ १४-१९

dharmaṃ dhanaṃ ca dhānyaṃ ca gurorvacanamauṣadham ।
sugṛhītaṃ ca kartavyamanyathā tu na jīvati ॥ 14-19

Meaning:- Even the man who has taught the spiritual significance of just one letter ought to be worshiped. He who does not give reverence to such a guru is born as a dog a hundred times, and at last takes birth as a chandala (dog-eater).

अर्थ:- जिस व्यक्ति ने आपको अध्यात्मिक महत्ता का एक अक्षर भी पढाया उसकी पूजा करनी चाहिए. जो ऐसे गुरु का सम्मान नहीं करता वह सौ बार कुत्ते का जन्म लेता है. और आखिर चंडाल बनता है. चांडाल वह है जो कुत्ता खाता है.


धर्मं धनं च धान्यं च गुरोर्वचनमौषधम् ।
सुगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा तु न जीवति ॥ १४-१९

dharmaṃ dhanaṃ ca dhānyaṃ ca gurorvacanamauṣadham ।
sugṛhītaṃ ca kartavyamanyathā tu na jīvati ॥ 14-19

Meaning:- We should secure and keep the following: the blessings of meritorious deeds, wealth, grain, the words of the spiritual master, and rare medicines. Otherwise life becomes impossible.

अर्थ:- हम निम्न लिखित बाते प्राप्त करे और उसे कायम रखे. हमें पुण्य कर्म के जो आशीर्वाद मिले. धन, अनाज, वो शब्द जो हमने हमारे अध्यात्मिक गुरु से सुने.


त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् ।
कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः ॥ १४-२०

tyaja durjanasaṃsargaṃ bhaja sādhusamāgamam ।
kuru puṇyamahorātraṃ smara nityamanityataḥ ॥ 14-20

Meaning:- Eschew (Avoid) wicked company and associate with saintly persons. Acquire virtue day and night, and always meditate on that which is eternal forgetting that which is temporary.

अर्थ:- कुसंग का त्याग करे और संत जानो से मेलजोल बढाए. दिन और रात गुणों का संपादन करे. उसपर हमेशा चिंतन करे जो शाश्वत है और जो अनित्य है उसे भूल जाए.


यस्य चित्तं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु ।
तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटाभस्मलेपनैः ॥ १५-०१

yasya cittaṃ dravībhūtaṃ kṛpayā sarvajantuṣu ।
tasya jñānena mokṣeṇa kiṃ jaṭābhasmalepanaiḥ ॥ 15-01

Meaning:- For one whose heart melts with compassion for all creatures; what is the necessity of knowledge, liberation, matted hair on the head, and smearing the body with ashes.

अर्थ:- वह व्यक्ति जिसका ह्रदय हर प्राणी मात्र के प्रति करुणा से पिघलता है. उसे जरुरत क्या है किसी ज्ञान की, मुक्ति की, सर के ऊपर जटाजूट रखने की और अपने शारीर पर राख मलने की.


एकमप्यक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ।
पृथिव्यां नास्ति तद्द्रव्यं यद्दत्त्वा सोऽनृणी भवेत् ॥ १५-०२

ekamapyakṣaraṃ yastu guruḥ śiṣyaṃ prabodhayet ।
pṛthivyāṃ nāsti taddravyaṃ yaddattvā so'nṛṇī bhavet ॥ 15-02

Meaning:- There is no treasure on earth the gift of which will cancel the debt a disciple owes his guru for having taught him even a single letter ( that leads to Krishna consciousness).

अर्थ:- इस दुनिया में वह खजाना नहीं है जो आपको आपके सदगुरु ने ज्ञान का एक अक्षर दिया उसके कर्जे से मुक्त कर सके.


खलानां कण्टकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया ।
उपानन्मुखभङ्गो वा दूरतो वा विसर्जनम् ॥ १५-०३

khalānāṃ kaṇṭakānāṃ ca dvividhaiva pratikriyā ।
upānanmukhabhaṅgo vā dūrato vā visarjanam ॥ 15-03

Meaning:- There are two ways to get rid of thorns and wicked persons; using footwear in the first case and in the second shaming them so that they cannot raise their faces again thus keeping them at a distance.

अर्थ:- काटो से और दुष्ट लोगो से बचने के दो उपाय है. पैर में जुते पहनो और उन्हें इतना शर्मसार करो की वो अपना सर उठा ना सके और आपसे दूर रहे.


कुचैलिनं दन्तमलोपधारिणं
बह्वाशिनं निष्ठुरभाषिणं च ।
सूर्योदये चास्तमिते शयानं
विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः ॥ १५-०४

kucailinaṃ dantamalopadhāriṇaṃ
bahvāśinaṃ niṣṭhurabhāṣiṇaṃ ca ।
sūryodaye cāstamite śayānaṃ
vimuñcati śrīryadi cakrapāṇiḥ ॥ 15-04

Meaning:- He who wears unclean garments, has dirty teeth, as a glutton, speaks unkindly and sleeps after sunrise -- although he may be the greatest personality -- will lose the favour of Lakshmi.

अर्थ:- जो अस्वच्छ कपडे पहनता है. जिसके दात साफ़ नहीं. जो बहोत खाता है. जो कठोर शब्द बोलता है. जो सूर्योदय के बाद उठता है. उसका कितना भी बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो, वह लक्ष्मी की कृपा से वंचित रह जायेगा.


त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं
पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च ।
तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ति
अर्थो हि लोके मनुष्यस्य बन्धुः ॥ १५-०५

tyajanti mitrāṇi dhanairvihīnaṃ
putrāśca dārāśca suhṛjjanāśca ।
tamarthavantaṃ punarāśrayanti
artho hi loke manuṣyasya bandhuḥ ॥ 15-05

Meaning:- He who loses his money is forsaken by his friends, his wife, his servants and his relations; yet when he regains his riches those who have forsaken him come back to him. Hence wealth is certainly the best of relations.

अर्थ:- किसी धनहीन व्यक्ति के मित्र, संतान, पत्नी तथा घनिष्ठ मित्र भी उसका साथ छोड देते हैं| यदि वह फिर से धनवान हो जाता है तो वे ही लोग फिर से उसके आश्रय में आ जाते हैं | इसी लिये कहा गया है कि धन ही सामान्य जीवन में मनुष्य का परम् मित्र है |


अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठति ।
प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद्विनश्यति ॥ १५-०६

anyāyopārjitaṃ dravyaṃ daśa varṣāṇi tiṣṭhati ।
prāpte caikādaśe varṣe samūlaṃ tadvinaśyati ॥ 15-06

Meaning:- Sinfully acquired wealth may remain for ten years; in the eleventh year it disappears with even the original stock.

अर्थ:- पाप से कमाया हुआ पैसा दस साल रह सकता है. ग्यारवे साल में वह लुप्त हो जाता है, उसकी मुद्दल के साथ.


अयुक्तं स्वामिनो युक्तं युक्तं नीचस्य दूषणम् ।
अमृतं राहवे मृत्युर्विषं शङ्करभूषणम् ॥ १५-०७

ayuktaṃ svāmino yuktaṃ yuktaṃ nīcasya dūṣaṇam ।
amṛtaṃ rāhave mṛtyurviṣaṃ śaṅkarabhūṣaṇam ॥ 15-07

Meaning:- A bad action committed by a great man is not censured (as there is none that can reproach him), and a good action performed by a low-class man comes to be condemned (because none respects him). Just see: the drinking of nectar is excellent, but it became the cause of Rahu's demise; and the drinking of poison is harmful, but when Lord Shiva (who is exalted) drank it, it became an ornament to his neck (nila-kanta).

अर्थ:- एक महान आदमी जब कोई गलत काम करता है तो उसे कोई कुछ नहीं कहता. एक नीच आदमी जब कोई अच्छा काम भी करता है तो उसका धिक्कार होता है. देखिये अमृत पीना तो अच्छा है लेकिन राहू की मौत अमृत पिने से ही हुई. विष पीना नुकसानदायी है लेकिन भगवान् शंकर ने जब विष प्राशन किया तो विष उनके गले का अलंकार हो गया.



तद्भोजनं यद्द्विजभुक्तशेषं
तत्सौहृदं यत्क्रियते परस्मिन् ।
सा प्राज्ञता या न करोति पापं
दम्भं विना यः क्रियते स धर्मः ॥ १५-०८

tadbhojanaṃ yaddvijabhuktaśeṣaṃ
tatsauhṛdaṃ yatkriyate parasmin ।
sā prājñatā yā na karoti pāpaṃ
dambhaṃ vinā yaḥ kriyate sa dharmaḥ ॥ 15-08

Meaning:-A true meal is that which consists of the remnants left after a brahmana's meal. Love which is shown to others is true love, not that which is cherished for one's own self. to abstain from sin is true wisdom. That is an act of charity which is performed without ostentation.

अर्थ:- एक सच्चा भोजन वह है जो ब्राह्मण को देने के बाद शेष है. प्रेम वह सत्य है जो दुसरो को दिया जाता है. खुद से जो प्रेम होता है वह नहीं. वही बुद्धिमत्ता है जो पाप करने से रोकती है. वही दान है जो बिना दिखावे के किया जाता है.


मणिर्लुण्ठति पादाग्रे काचः शिरसि धार्यते ।
क्रयविक्रयवेलायां काचः काचो मणिर्मणिः ॥ १५-०९

maṇirluṇṭhati pādāgre kācaḥ śirasi dhāryate ।
krayavikrayavelāyāṃ kācaḥ kāco maṇirmaṇiḥ ॥ 15-09

Meaning:-For want of discernment the most precious jewels lie in the dust at the feet of men while bits of glass are worn on their heads. But we should not imagine that the gems have sunk in value, and the bits of glass have risen in importance. When a person of critical judgement shall appear, each will be given its right position.

अर्थ:- यदि आदमी को परख नहीं है तो वह अनमोल रत्नों को तो पैर की धुल में पडा हुआ रखता है और घास को सर पर धारण करता है. ऐसा करने से रत्नों का मूल्य कम नहीं होता और घास के तिनको की महत्ता नहीं बढती. जब विवेक बुद्धि वाला आदमी आता है तो हर चीज को उसकी जगह दिखाता है.


अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्याः
स्वल्पश्च कालो बहुविघ्नता च ।
यत्सारभूतं तदुपासनीयां
हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् ॥ १५-१०

anantaśāstraṃ bahulāśca vidyāḥ
svalpaśca kālo bahuvighnatā ca ।
yatsārabhūtaṃ tadupāsanīyāṃ
haṃso yathā kṣīramivāmbumadhyāt ॥ 15-10

Meaning:- Sastric knowledge is unlimited, and the arts to be learned are many; the time we have is short, and our opportunities to learn are beset with obstacles. Therefore select for learning that which is most important, just as the swan drinks only the milk in water.

अर्थ:- शास्त्रों का ज्ञान अगाध है. वो कलाए अनंत जो हमें सीखनी छाहिये. हमारे पास समय थोडा है. जो सिखने के मौके है उसमे अनेक विघ्न आते है. इसीलिए वही सीखे जो अत्यंत महत्वपूर्ण है. उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमे मिला हुआ दूध पी लेता है.


दूरागतं पथि श्रान्तं वृथा च गृहमागतम् ।
अनर्चयित्वा यो भुङ्क्ते स वै चाण्डाल उच्यते ॥ १५-११

dūrāgataṃ pathi śrāntaṃ vṛthā ca gṛhamāgatam ।
anarcayitvā yo bhuṅkte sa vai cāṇḍāla ucyate ॥ 15-11

Meaning:- He is a chandala who eats his dinner without entertaining the stranger who has come to his house quite accidentally, having travelled from a long distance and is wearied.

अर्थ:- वह आदमी चंडाल है जो एक दूर से अचानक आये हुए थके मांदे अतिथि को आदर सत्कार दिए बिना रात्रि का भोजन खुद खाता है.


पठन्ति चतुरो वेदान्धर्मशास्त्राण्यनेकशः ।
आत्मानं नैव जानन्ति दर्वी पाकरसं यथा ॥ १५-१२

paṭhanti caturo vedāndharmaśāstrāṇyanekaśaḥ ।
ātmānaṃ naiva jānanti darvī pākarasaṃ yathā ॥ 15-12

Meaning:-One may know the four Vedas and the Dharma-sastras, yet if he has no realisation of his own spiritual self, he can be said to be like the
ladle which stirs all kinds of foods but knows not the taste of any.

अर्थ:- एक व्यक्ति को चारो वेद और सभी धर्मं शास्त्रों का ज्ञान है. लेकिन उसे यदि अपने आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को हिलाया लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा.


धन्या द्विजमयी नौका विपरीता भवार्णवे ।
तरन्त्यधोगताः सर्वे उपरिष्ठाः पतन्त्यधः ॥ १५-१३

dhanyā dvijamayī naukā viparītā bhavārṇave ।
tarantyadhogatāḥ sarve upariṣṭhāḥ patantyadhaḥ ॥ 15-13

Meaning:-Those blessed souls are certainly elevated who, while crossing the ocean of life, take shelter of a genuine brahmana, who is likened unto a boat. They are unlike passengers aboard an ordinary ship which runs the risk of sinking.

अर्थ:- वह लोग धन्य है, ऊँचे उठे हुए है जिन्होंने संसार समुद्र को पार करते हुए एक सच्चे ब्राह्मण की शरण ली. उनकी शरणागति ने नौका का काम किया. वे ऐसे मुसाफिरों की तरह नहीं है जो ऐसे सामान्य जहाज पर सवार है जिसके डूबने का खतरा है.


अयममृतनिधानं नायकोऽप्योषधीनाम्
अमृतमयशरीरः कान्तियुक्तोऽपि चन्द्रः ।
भवतिविगतरश्मिर्मण्डलं प्राप्य भानोः
परसदननिविष्टः को लघुत्वं न याति ॥ १५-१४

ayamamṛtanidhānaṃ nāyako'pyoṣadhīnām
amṛtamayaśarīraḥ kāntiyukto'pi candraḥ ।
bhavativigataraśmirmaṇḍalaṃ prāpya bhānoḥ
parasadananiviṣṭaḥ ko laghutvaṃ na yāti ॥ 15-14

Meaning:- The moon, who is the abode of nectar and the presiding deity of all medicines, although immortal like amrta and resplendent in form, loses the brilliance of his rays when he repairs to the abode of the sun (day time). Therefore will not an ordinary man be made to feel inferior by going to live at the house of another.

अर्थ:- चन्द्रमा जो अमृत से लबालब है और जो औषधियों की देवता माना जाता है, जो अमृत के समान अमर और दैदीप्यमान है. उसका क्या हश्र होता है जब वह सूर्य के घर जाता है अर्थात दिन में दिखाई देता
है. तो क्या एक सामान्य आदमी दुसरे के घर जाकर लघुता को नहीं प्राप्त होगा.


अलिरयं नलिनीदलमध्यगः
कमलिनीमकरन्दमदालसः ।
विधिवशात्परदेशमुपागतः
कुटजपुष्परसं बहु मन्यते ॥ १५-१५

alirayaṃ nalinīdalamadhyagaḥ
kamalinīmakarandamadālasaḥ ।
vidhivaśātparadeśamupāgataḥ
kuṭajapuṣparasaṃ bahu manyate ॥ 15-15

Meaning:- This humble bee, who always resides among the soft petals of the lotus and drinks abundantly its sweet nectar, is now feasting on the flower of the ordinary
kutaja. Being in a strange country where the lotuses do not exist, he is considering the pollen of the kutaja to be nice

अर्थ:- यह मधु मक्खी जो कमल की नाजुक पंखडियो में बैठकर उसके मीठे मधु का पान करती थी, वह अब एक सामान्य कुटज के फूल पर अपना ताव मारती है. क्यों की वह ऐसे देश में आ गयी है जहा
कमल है ही नहीं, उसे कुटज के पराग ही अच्छे लगते है.


पीतः क्रुद्धेन तातश्चरणतलहतो वल्लभो येन रोषा
दाबाल्याद्विप्रवर्यैः स्ववदनविवरे धार्यते वैरिणी मे ।
गेहं मे छेदयन्ति प्रतिदिवसमुमाकान्तपूजानिमित्तं
तस्मात्खिन्ना सदाहं द्विजकुलनिलयं नाथ युक्तं त्यजामि ॥ १५-१६

pītaḥ kruddhena tātaścaraṇatalahato vallabho yena roṣā
dābālyādvipravaryaiḥ svavadanavivare dhāryate vairiṇī me ।
gehaṃ me chedayanti pratidivasamumākāntapūjānimittaṃ
tasmātkhinnā sadāhaṃ dvijakulanilayaṃ nātha yuktaṃ tyajāmi ॥ 15-16

Meaning:- (Lord Visnu asked His spouse Lakshmi why She did not care to live in the house of a brahmana, when She replied) " O Lord a rishi named Agastya drank up My father (the ocean) in anger; Brighu Muni kicked You; brahmanas pride themselves on their learning having sought the favour of My competitor Sarasvati; and lastly they pluck each day the lotus which is My abode, and therewith worship Lord Shiva. Therefore, O Lord, I fear to dwell with a brahmana and that properly.

अर्थ:- हे भगवान् विष्णु, मेरे स्वामी, मै ब्राह्मणों के घर में इस लिए नहीं रहती क्यों की..... अगस्त्य ऋषि ने गुस्से में समुद्र को ( जो मेरे पिता है) पी लिया. भृगु मुनि ने आपकी छाती पर लात मारी. ब्राह्मणों को पढने में बहोत आनंद आता है और वे मेरी जो स्पर्धक है उस सरस्वती की हरदम कृपा चाहते है. और वे रोज कमल के फूल को जो मेरा निवास है जलाशय से निकलते है और भगवान् शिव की पूजा करते है.


बन्धनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जुकृतबन्धनमन्यत् ।
दारुभेदनिपुणोऽपि षडंघ्रि- र्निष्क्रियो भवति पंकजकोशेः ॥ १५-१७

bandhanāni khalu santi bahūni premarajjukṛtabandhanamanyat ।
dārubhedanipuṇo'pi ṣaḍaṃghri- rniṣkriyo bhavati paṃkajakośeḥ ॥ 15-17

Meaning:- There are many ways of binding by which one can be dominated and controlled in this world, but the bond of affection is the strongest. For example, take the case of the humble bee which, although expert at piercing hardened wood, becomes caught in the embrace of its beloved flowers (as the petals close at dusk).

अर्थ:- दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को प्रभाव में लाया जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है. सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है. इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए.


पतिर्नजहातिलीलाम् उअन्त्रार्पितोमघुग्तनिजहातिचेक्षुः
क्षीणो पिनत्यजितशीलगुणान्कुलीनः ॥ १५-१८

patirnajahātilīlām uantrārpitomaghugtanijahāticekṣuḥ
kṣīṇo pinatyajitaśīlaguṇānkulīnaḥ ॥ 15-18

Meaning:- Although sandalwood be cut, it does not forsake its natural quality of fragrance; so also the elephant does not give up sportiveness though he should grow old. The sugarcane does not cease to be sweet though squeezed in a mill; so the man of noble extraction does not lose his lofty qualities, no matter how pinched he is by poverty.

अर्थ:- चन्दन कट जाने पर भी अपनी महक नहीं छोड़ते. हाथी बुढा होने पर भी अपनी लीला नहीं छोड़ता. गन्ना निचोड़े जाने पर भी अपनी मिठास नहीं छोड़ता. उसी प्रकार ऊँचे कुल में पैदा हुआ व्यक्ति अपने उन्नत गुणों को नहीं छोड़ता भले ही उसे कितनी भी गरीबी में क्यों ना बसर करना पड़े.


उर्व्यां कोऽपि महीधरो लघुतरो दोर्भ्यां धृतो
लीलया तेन त्वं दिवि भूतले च सततं गोवर्धनो गीयसे।
त्वां त्रैलोक्यधरं वहामि कुचयोरग्रे न तद्गण्यते
किं वा केशव भाषणेन बहुना पुण्यैर्यशो लभ्यते ॥ १५-१९

urvyāṃ ko'pi mahīdharo laghutaro dorbhyāṃ dhṛto
līlayā tena tvaṃ divi bhūtale ca satataṃ govardhano gīyase ।

Meaning:- Rukmini says to God, O Keshav! You lifted a small mountain with both hands, that is why in both heaven and earth people came to be known as government. But I will lift you from the next part of my clutches, holding all the three worlds, then there is no count. Hey Nath! There is no purpose in saying a lot, just understand that great
virtue yields fame.

अर्थ:- रुक्मिणी भगवान् से कहती हैं हे केशव! आपने एक छोटे से पहाड़ को दोनों हाथों से उठा लिया वह इसीलिये स्वर्ग और पृथ्वी दोनों लोकों में गोवर्धनधारी कहे जाने लगे। लेकिन तीनों लोकों को धारण करनेवाले आपको मैं अपने कुचों के अगले भाग से ही उठा लेती हूँ, फिर उसकी कोई गिनती ही नहीं होती। हे नाथ! बहुत कुछ कहने से कोई प्रयोजन नहीं, यही समझ लीजिए कि बडे पुण्य से यश प्राप्त होता है ।


धर्मं धनं च धान्यं च गुरोर्वचनमौषधम् ।
सुगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा तु न जीवति ॥ १४-१९

dharmaṃ dhanaṃ ca dhānyaṃ ca gurorvacanamauṣadham ।
sugṛhītaṃ ca kartavyamanyathā tu na jīvati ॥ 14-19

Meaning:- Even the man who has taught the spiritual significance of just one letter ought to be worshiped. He who does not give reverence to such a guru is born as a dog a hundred times, and at last takes birth as a chandala (dog-eater).

अर्थ:- जिस व्यक्ति ने आपको अध्यात्मिक महत्ता का एक अक्षर भी पढाया उसकी पूजा करनी चाहिए. जो ऐसे गुरु का सम्मान नहीं करता वह सौ बार कुत्ते का जन्म लेता है. और आखिर चंडाल बनता है. चांडाल वह है जो कुत्ता खाता है.


धर्मं धनं च धान्यं च गुरोर्वचनमौषधम् ।
सुगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा तु न जीवति ॥ १४-१९

dharmaṃ dhanaṃ ca dhānyaṃ ca gurorvacanamauṣadham ।
sugṛhītaṃ ca kartavyamanyathā tu na jīvati ॥ 14-19

Meaning:- We should secure and keep the following: the blessings of meritorious deeds, wealth, grain, the words of the spiritual master, and rare medicines. Otherwise life becomes impossible.

अर्थ:- हम निम्न लिखित बाते प्राप्त करे और उसे कायम रखे. हमें पुण्य कर्म के जो आशीर्वाद मिले. धन, अनाज, वो शब्द जो हमने हमारे अध्यात्मिक गुरु से सुने.


त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् ।
कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः ॥ १४-२०

tyaja durjanasaṃsargaṃ bhaja sādhusamāgamam ।
kuru puṇyamahorātraṃ smara nityamanityataḥ ॥ 14-20

Meaning:- Eschew (Avoid) wicked company and associate with saintly persons. Acquire virtue day and night, and always meditate on that which is eternal forgetting that which is temporary.

अर्थ:- कुसंग का त्याग करे और संत जानो से मेलजोल बढाए. दिन और रात गुणों का संपादन करे. उसपर हमेशा चिंतन करे जो शाश्वत है और जो अनित्य है उसे भूल जाए.


न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्संसारविच्छित्तये
स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धर्मोऽपि नोपार्जितः ।
नारीपीनपयोधरोरुयुगला स्वप्नेऽपि नालिंगितं
मातुः केवलमेव यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम् ॥ १६-०१

na dhyātaṃ padamīśvarasya vidhivatsaṃsāravicchittaye
svargadvārakapāṭapāṭanapaṭurdharmo'pi nopārjitaḥ ।
nārīpīnapayodharoruyugalā svapne'pi nāliṃgitaṃ
mātuḥ kevalameva yauvanavanacchede kuṭhārā vayam ॥ 16-01

Meaning:- Acharya Chanakya says the life of a person is complete scrap and waste who do not pray to the god to attain salvation, not perform a good deed to earn an entry into heaven, and one who has not even dreamt of enjoying a woman. Such a person is compared to an axe which destroyed the forest of his mother youth by taking birth from his bomb

अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं एक ऐसा मनुष्य जो न तो मोक्ष पाने के लिए ईश्वर का ध्यान करता है, न स्वर्ग पाने के लिए धर्म का संचय करता है और न कभी स्वप्न में भी स्त्री के स्तनों का आलिंगन कर सम्भोग करता है| ऐसा मनुष्य केवल जन्म लेकर अपनी माँ का योवन ही ख़राब करता है, ऐसे मनुष्य का जीवन व्यर्थ है


जल्पन्ति सार्धमन्येन पश्यन्त्यन्यं सविभ्रमाः ।
हृदये चिन्तयन्त्यन्यं न स्त्रीणामेकतो रतिः ॥ १६-०२

jalpanti sārdhamanyena paśyantyanyaṃ savibhramāḥ ।
hṛdaye cintayantyanyaṃ na strīṇāmekato ratiḥ ॥ 16-02

Meaning:- The heart of a woman is not united; it is divided. While she is talking with one man, she looks lustfully at another and thinks fondly of a third in her heart.

अर्थ:- स्त्री (यहाँ लम्पट स्त्री या पुरुष अभिप्रेत है) का ह्रदय पूर्ण नहीं है वह बटा हुआ है. जब वह एक आदमी से बात करती है तो दुसरे की ओर वासना से देखती है और मन में तीसरे को चाहती है.


यो मोहान्मन्यते मूढो रक्तेयं मयि कामिनी ।
स तस्या वशगो भूत्वा नृत्येत् क्रीडाशकुन्तवत् ॥ १६-०३

yo mohānmanyate mūḍho rakteyaṃ mayi kāminī ।
sa tasyā vaśago bhūtvā nṛtyet krīḍāśakuntavat ॥ 16-03

Meaning:- There are two ways to get rid of thorns and wicked persons; using footwear in the first case and in the second shaming them so that they cannot raise their faces again thus keeping them at a distance.

अर्थ:- काटो से और दुष्ट लोगो से बचने के दो उपाय है. पैर में जुते पहनो और उन्हें इतना शर्मसार करो की वो अपना सर उठा ना सके और आपसे दूर रहे.


कोऽर्थान्प्राप्य न गर्वितो विषयिणः कस्यापदोऽस्तं गताः
स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं भुवि मनः को नाम राजप्रियः।
कः कालस्य न गोचरत्वमगमत् कोऽर्थी गतो गौरवं
को वा दुर्जनदुर्गमेषु पतितः क्षेमेण यातः पथि ॥ १६-०४

ko'rthānprāpya na garvito viṣayiṇaḥ kasyāpado'staṃ gatāḥ
strībhiḥ kasya na khaṇḍitaṃ bhuvi manaḥ ko nāma rājapriyaḥ ।
kaḥ kālasya na gocaratvamagamat ko'rthī gato gauravaṃ
ko vā durjanadurgameṣu patitaḥ kṣemeṇa yātaḥ pathi ॥ 16-04

Meaning:- Who is there who, having become rich, has not become proud? Which licentious (Free) man has put an end to his calamities (A grievous disaster)? Which man in this world has not been overcome by a woman? Who is always loved by the king? Who is there who has not been overcome by the ravages of time? Which beggar has
attained glory? Who has become happy by contracting the vices of the wicked?

अर्थ:- ऐसा यहाँ कौन है जिसमे दौलत पाने के बाद मस्ती नहीं आई. क्या कोई बेलगाम आदमी अपने संकटों पर रोक लगा पाया. इस दुनिया में किस आदमी को औरत ने कब्जे में नहीं किया. किस के ऊपर राजा की हरदम मेहेरबानी रही. किसके ऊपर समय के प्रकोप नहीं हुए. किस भिखारी को यहाँ शोहरत मिली. किस आदमी ने दुष्ट के दुर्गुण पाकर सुख को प्राप्त किया.


न निर्मितो न चैव न दृष्टपूर्वो
न श्रूयते हेममयः कुरंगः ।
तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य
विनाशकाले विपरीतबुद्धिः ॥ १६-०५

na nirmito na caiva na dṛṣṭapūrvo
na śrūyate hemamayaḥ kuraṃgaḥ ।
tathā'pi tṛṣṇā raghunandanasya
vināśakāle viparītabuddhiḥ ॥ 16-05

Meaning:- Acharya Chankaya says, the wisdom of a man deserts before the arrival of a bad time. Acharya illustrates, there are no golden dear spices in this world. Even if, Bhagwan Ram saw it and rush to catch him because hard time is about to come.

अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, जब मनुष्य का बुरा समय आने से पहले, उसकी बुद्धि उसका साथ छोड़ देती है| इसको सिद्ध करने के लिए वह एक उदहारण देते हैं. सोने का हिरन कभी होता नहीं है और न ही किसी ने कभी सुना, लेकिन तब भी भगवान् राम सोने के हिरन को पकड़ने के लिए चले गए| क्योंकि वक्त बुरा आने वाला था और बुद्धि ने साथ देना छोड़ दिया|


गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थिताः ।
प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ॥ १६-०६

guṇairuttamatāṃ yāti noccairāsanasaṃsthitāḥ ।
prāsādaśikharastho'pi kākaḥ kiṃ garuḍāyate ॥ 16-06

Meaning:- A man attains greatness by his merits, not simply by occupying an exalted seat. Can we call a crow an eagle (garuda) simply because he sits on the top of a tall building.

अर्थ:- व्यक्ति को महत्ता उसके गुण प्रदान करते है वह जिन पदों पर काम करता है सिर्फ उससे कुछ नहीं होता. क्या आप एक कौवे को गरुड़ कहेंगे यदि वह एक ऊँची ईमारत के छत पर जाकर बैठता है.


गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योऽपि सम्पदः ।
पूर्णेन्दुः किं तथा वन्द्यो निष्कलङ्को यथा कृशः ॥ १६-०७

guṇāḥ sarvatra pūjyante na mahatyo'pi sampadaḥ ।
pūrṇenduḥ kiṃ tathā vandyo niṣkalaṅko yathā kṛśaḥ ॥ 16-07

Meaning:- Chanakya says, a Man with good quality and virtue respected in society even if with less money. the full moon is not worshiped even if it emits good light and look beautiful because it has stains. But Moon of Douj is worshiped because it is clear and show no stains at all.

अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, गुणों की ही सर्वत्र पूजा होती है, गुणी व्यक्ति का ही सभी सम्मान करते हैं चाहे उसके पास धन कम हो| चाणक्य कहते हैं, पूर्णिमा का चन्द्रमा पूर्ण होता है, सबसे ज्यादा रोशनी देता है, लेकिन उसकी कोई पूजा नहीं करता क्योंकि उसमें दाग होता है| लेकिन दूज के चन्द्रमा की सभी पूजा करते हैं क्योंकि उसमें कोई दाग नहीं होता|


परैरुक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत् ।
इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः ॥ १६-०८

parairuktaguṇo yastu nirguṇo'pi guṇī bhavet ।
indro'pi laghutāṃ yāti svayaṃ prakhyāpitairguṇaiḥ ॥ 16-08

Meaning:-The man who is praised by others as great is regarded as worthy though he may be really void of all merit. But the man who sings his own praises lowers himself in the estimation of others though he should be Indra (the possessor of all excellences).

अर्थ:- जो व्यक्ति गुणों से रहित है लेकिन जिसकी लोग सराहना करते है वह दुनिया में काबिल माना जा सकता है. लेकिन जो आदमी खुद की ही डींगे हाकता है वो अपने आप को दुसरे की नजरो में गिराता है भले ही वह स्वर्ग का राजा इंद्र हो.


विवेकिनमनुप्राप्ता गुणा यान्ति मनोज्ञताम् ।
सुतरां रत्नमाभाति चामीकरनियोजितम् ॥ १६-०९

vivekinamanuprāptā guṇā yānti manojñatām ।
sutarāṃ ratnamābhāti cāmīkaraniyojitam ॥ 16-09

Meaning:-If good qualities should characterise a man of discrimination, the brilliance of his qualities will be recognised just as a gem which is essentially bright really shines when fixed in an ornament of gold.

अर्थ:- यदि एक विवेक संपन्न व्यक्ति अच्छे गुणों का परिचय देता है तो उसके गुणों की आभा को रत्न जैसी मान्यता मिलती है. एक ऐसा रत्न जो प्रज्वलित है और सोने के अलंकर में मढने पर और चमकता है.


गुणैः सर्वज्ञतुल्योऽपि सीदत्येको निराश्रयः ।
अनर्घ्यमपि माणिक्यं हेमाश्रयमपेक्षते ॥ १६-१०

guṇaiḥ sarvajñatulyo'pi sīdatyeko nirāśrayaḥ ।​
anarghyamapi māṇikyaṃ hemāśrayamapekṣate ॥ 16-10

Meaning:- Even one who by his qualities appears to be all knowing suffers without patronage; the gem, though precious, requires a gold setting.

अर्थ:- वह व्यक्ति जो सर्व गुण संपन्न है अपने आप को सिद्ध नहीं कर सकता है जबतक उसे समुचित संरक्षण नहीं मिल जाता. उसी प्रकार जैसे एक मणि तब तक नहीं निखरता जब तक उसे आभूषण में सजाया ना जाए.


अतिक्लेशेन यद्द्रव्यमतिलोभेन यत्सुखम् ।
शत्रूणां प्रणिपातेन ते ह्यर्था मा भवन्तु मे ॥ १६-११

atikleśena yaddravyamatilobhena yatsukham ।
śatrūṇāṃ praṇipātena te hyarthā mā bhavantu me ॥ 16-11

Meaning:- I do not deserve that wealth which is to be attained by enduring much suffering, or by transgressing the rules of virtue, or by flattering an enemy.

अर्थ:- मुझे वह दौलत नहीं चाहिए जिसके लिए कठोर यातना सहनी पड़े, या सदाचार का त्याग करना पड़े या अपने शत्रु की चापलूसी करनी पड़े.


पठन्ति चतुरो वेदान्धर्मशास्त्राण्यनेकशः ।
आत्मानं नैव जानन्ति दर्वी पाकरसं यथा ॥ १५-१२

paṭhanti caturo vedāndharmaśāstrāṇyanekaśaḥ ।
ātmānaṃ naiva jānanti darvī pākarasaṃ yathā ॥ 15-12

Meaning:-Chanakya says, money locked in safe, is of no use. similarly, the wealth of a foolish man is used by crooked and wicked, society is not benefited by it.

अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, एक घर में बंद वधु (बहु) के समान घर की तिजोरी में रखा हुआ धन कभी किसी काम का नहीं है, उसी प्रकार एक मुर्ख व्यक्ति का धन भी दुष्ट और पापी लोग ही उपयोग करते हैं उसका भी कोई समाज में सही प्रयोग नहीं होता है, ऐसा धन भी व्यर्थ है|


धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु चाहारकर्मसु ।
अतृप्ताः प्राणिनः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च ॥ १६-१३

dhaneṣu jīvitavyeṣu strīṣu cāhārakarmasu ।
atṛptāḥ prāṇinaḥ sarve yātā yāsyanti yānti ca ॥ 16-13

Meaning:-In this world, no one is satisfied with money, life, food, and woman. More you use it desire increases.

अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं, इस संसार में मनुष्य की धन, जीवन, भोजन और स्त्री की चाह कभी ख़त्म नहीं होती| कितने ही प्राणी आये और इस संसार को भोग लेकिन अतृप्त होकर ही मरे कभी संतुष्ट नहीं हुए|


प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥ १६-१४

priyavākyapradānena sarve tuṣyanti jantavaḥ ।
tasmāttadeva vaktavyaṃ vacane kā daridratā ॥ 16-14

Meaning:- All the creatures are pleased by loving words; and therefore we should address words that are pleasing to all, for there is no lack of sweet words.

अर्थ:- सभी जीव मीठे वचनों से आनंदित होते है. इसीलिए हम सबसे मीठे वचन कहे. मीठे वचन की कोई कमी नहीं है.


क्षीयन्ते सर्वदानानि यज्ञहोमबलिक्रियाः ।
न क्षीयते पात्रदानमभयं सर्वदेहिनाम् ॥ १६-१५

kṣīyante sarvadānāni yajñahomabalikriyāḥ ।
na kṣīyate pātradānamabhayaṃ sarvadehinām ॥ 16-15

Meaning:- All the (virtues earned, through) all kinds of giving, sacrificial rituals, fire sacrifices, oblations and other forms of worship diminish (over time). But the virtue earned by giving security/protection to a person in need – never diminishes.

अर्थ:- अन्न, जल, वस्त्र, भूमिदान आदि सब प्रकार के दान तथा ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ और बलिवैश्वदेवयज्ञ आदि सभी कर्म नष्ट हो जाते हैं परन्तु सुपात्र को दिया गया दान और प्राणिमात्र को दिया गया अभयदान कभी नष्ट नहीं होता।


क्षीयन्ते सर्वदानानि यज्ञहोमबलिक्रियाः ।
न क्षीयते पात्रदानमभयं सर्वदेहिनाम् ॥ १६-१५

kṣīyante sarvadānāni yajñahomabalikriyāḥ ।
na kṣīyate pātradānamabhayaṃ sarvadehinām ॥ 16-15

Meaning:- All the (virtues earned, through) all kinds of giving, sacrificial rituals, fire sacrifices, oblations and other forms of worship diminish (over time). But the virtue earned by giving security/protection to a person in need – never diminishes.

अर्थ:- हे भगवान् विष्णु, मेरे स्वामी, मै ब्राह्मणों के घर में इस लिए नहीं रहती क्यों की..... अगस्त्य ऋषि ने गुस्से में समुद्र को ( जो मेरे पिता है) पी लिया. भृगु मुनि ने आपकी छाती पर लात मारी. ब्राह्मणों को पढने में बहोत आनंद आता है और वे मेरी जो स्पर्धक है उस सरस्वती की हरदम कृपा चाहते है. और वे रोज कमल के फूल को जो मेरा निवास है जलाशय से निकलते है और भगवान् शिव की पूजा करते है.


तृणं लघु तृणात्तूलं तूलादपि च याचकः ।
वायुना किं न नीतोऽसौ मामयं याचयिष्यति ॥ १६-१६

tṛṇaṃ laghu tṛṇāttūlaṃ tūlādapi ca yācakaḥ ।
vāyunā kiṃ na nīto'sau māmayaṃ yācayiṣyati ॥ 16-16

Meaning:- A blade of grass is light, cotton is lighter, the beggar is infinitely lighter still. Why then does not the wind carry him away? Because it fears that he may ask alms of him.

अर्थ:- घास का तिनका हल्का है. कपास उससे भी हल्का है. भिखारी तो अनंत गुना हल्का है. फिर हवा का झोका उसे उड़ाके क्यों नहीं ले जाता. क्योकि वह डरता है कही वह भीख न मांग ले.


वरं प्राणपरित्यागो मानभङ्गेन जीवनात् ।
प्राणत्यागे क्षणं दुःखं मानभङ्गे दिने दिने ॥ १६-१७

varaṃ prāṇaparityāgo mānabhaṅgena jīvanāt ।
prāṇatyāge kṣaṇaṃ duḥkhaṃ mānabhaṅge dine dine ॥ 16-17

Meaning:- It is better to die than to preserve this life by incurring disgrace. The loss of life causes but a moment’s grief, but disgrace brings grief every day of one’s life.

अर्थ:- बेइज्जत होकर जीने से अच्छा है की मर जाए. मरने में एक क्षण का दुःख होता है पर बेइज्जत होकर जीने में हर रोज दुःख उठाना पड़ता है.


संसारविषवृक्षस्य द्वे फलेऽमृतोपमे ।
सुभाषितं च सुस्वादु सङ्गतिः सज्जने जने ॥ १६-१८

saṃsāraviṣavṛkṣasya dve phale'mṛtopame ।
subhāṣitaṃ ca susvādu saṅgatiḥ sajjane jane ॥ 16-18

Meaning:- There are two nectarine fruits hanging from the tree of this world: one is the hearing of sweet words (such as Krishna-katha) and the other, the society of saintly men.

अर्थ:-
इस दुनिया के वृक्ष को दो मीठे फल लगे है. मधुर वचन और सत्संग.


जन्म जन्म यदभ्यस्तं दानमध्ययनं तपः ।
तेनैवाभ्यासयोगेन देही चाभ्यस्यते पुनः ॥ १६-१९

janma janma yadabhyastaṃ dānamadhyayanaṃ tapaḥ ।
tenaivābhyāsayogena dehī cābhyasyate punaḥ ॥ 16-19

Meaning:- The good habits of charity, learning and austerity practised during many​ past lives continue to be cultivated in this birth by virtue of the link​(yoga) of this present life to the previous ones.

अर्थ:-
पहले के जन्मो की अच्छी आदते जैसे दान, विद्यार्जन और तप इस जनम में भी चलती रहती है. क्योकि सभी जनम एक श्रुंखला से जुड़े है.


पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनं ।
कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम् ॥ १६-२०

pustakasthā tu yā vidyā parahastagataṃ dhanaṃ ।
kāryakāle samutpanne na sā vidyā na taddhanam ॥ 16-20

Meaning:- One whose knowledge is confined to books and whose wealth is in the possession of others, can use neither his knowledge nor wealth when the need for them arises.

अर्थ:- जिसका ज्ञान किताबो में सिमट गया है और जिसने अपनी दौलत दुसरो के सुपुर्द कर दी है वह जरुरत आने पर ज्ञान या दौलत कुछ भी इस्तमाल नहीं कर सकता.


पुस्तकप्रत्ययाधीतं नाधीतं गुरुसन्निधौ ।
सभामध्ये न शोभन्ते जारगर्भा इव स्त्रियः ॥ १७-०१

pustakapratyayādhītaṃ nādhītaṃ gurusannidhau ।
sabhāmadhye na śobhante jāragarbhā iva striyaḥ ॥ 17-01

Meaning:- The scholar who has acquired knowledge by studying innumerable books without the blessings of a bonafide spiritual master does not shine in an assembly of truly learned men just as an illegitimate child is not honoured in society.

अर्थ:- वह विद्वान जिसने असंख्य किताबो का अध्ययन बिना सदगुरु के आशीर्वाद से कर लिया वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है. उसी प्रकार जिस प्रकार एक नाजायज औलाद को दुनिया में कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं होती.


कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्धिंसने प्रतिहिंसनम् ।
तत्र दोषो न पतति दुष्टे दुष्टं समाचरेत् ॥ १७-०२

kṛte pratikṛtiṃ kuryāddhiṃsane pratihiṃsanam ।
tatra doṣo na patati duṣṭe duṣṭaṃ samācaret ॥ 17-02

Meaning:- We should repay the favours of others by acts of kindness; so also should we return evil for evil in which there is no sin, for it is necessary to pay a wicked man in his own coin.

अर्थ:- हमें दुसरो से जो मदद प्राप्त हुई है उसे हमें लौटना चाहिए. उसी प्रकार यदि किसीने हमसे यदि दुष्टता की है तो हमें भी उससे दुष्टता करनी चाहिए. ऐसा करने में कोई पाप नहीं है.


यद्दूरं यद्दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम् ।
तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम् ॥ १७-०३

yaddūraṃ yaddurārādhyaṃ yacca dūre vyavasthitam ।
tatsarvaṃ tapasā sādhyaṃ tapo hi duratikramam ॥ 17-03

Meaning:- That thing which is distant, that thing which appears impossible, and that which is far beyond our reach, can be easily attained through tapasya (religious austerity), for nothing can surpass austerity.

अर्थ:- वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम तप करते है. क्यों की तप से ऊपर कुछ नहीं.


लोभश्चेदगुणेन किं पिशुनता यद्यस्ति किं पातकैः
सत्यं चेत्तपसा च किं शुचि मनो यद्यस्ति तीर्थेन किम्।
सौजन्यं यदि किं गुणैः सुमहिमा यद्यस्ति किं मण्डनैः
सद्विद्या यदि किं धनैरपयशो यद्यस्ति किं मृत्युना ॥ १७-०४

lobhaścedaguṇena kiṃ piśunatā yadyasti kiṃ pātakaiḥ
satyaṃ cettapasā ca kiṃ śuci mano yadyasti tīrthena kim ।
saujanyaṃ yadi kiṃ guṇaiḥ sumahimā yadyasti kiṃ maṇḍanaiḥ
sadvidyā yadi kiṃ dhanairapayaśo yadyasti kiṃ mṛtyunā ॥ 17-04

Meaning:- What vice could be worse than covetousness? What is more sinful than slander? For one who is truthful, what need is there for austerity? For one who has a clean heart, what is the need for pilgrimage? If one has a good disposition, what other virtue is needed? If a man has fame, what is the value of other ornamentation? What need is there for wealth for the man of practical knowledge? And if a man is dishonoured, what could there be worse in death?

अर्थ:- लोभ से बड़ा दुर्गुण क्या हो सकता है. पर निंदा से बड़ा पाप क्या है. जो सत्य में प्रस्थापित है उसे तप करने की क्या जरूरत है. जिसका ह्रदय शुद्ध है उसे तीर्थ यात्रा की क्या जरूरत है. यदि स्वभाव अच्छा है तो और किस गुण की जरूरत है. यदि कीर्ति है तो अलंकार की क्या जरुरत है. यदि व्यवहार ज्ञान है तो दौलत की क्या जरुरत है. और यदि अपमान हुआ है तो मृत्यु से भयंकर नहीं है क्या.


पिता रत्नाकरो यस्य लक्ष्मीर्यस्य सहोदरा ।
शङ्खो भिक्षाटनं कुर्यान्न दत्तमुपतिष्ठते ॥ १७-०५

pitā ratnākaro yasya lakṣmīryasya sahodarā ।
śaṅkho bhikṣāṭanaṃ kuryānna dattamupatiṣṭhate ॥ 17-05

Meaning:- Though the sea, which is the reservoir of all jewels, is the father of the conch shell, and the Goddess of fortune Lakshmi is conch's sister, still the conch must go from door to door for alms (in the hands of a beggar). It is true, therefore, that one gains nothing without having given in the past.

अर्थ:- समुद्र ही सभी रत्नों का भण्डार है. वह शंख का पिता है. देवी लक्ष्मी शंख की बहन है. लेकिन दर दर पर भीख मांगने वाले हाथ में शंख ले कर घूमते है. इससे यह बात सिद्ध होती है की उसी को मिलेगा जिसने पहले दिया है.


अशक्तस्तु भवेत्साधुर्ब्रह्मचारी वा निर्धनः ।
व्याधितो देवभक्तश्च वृद्धा नारी पतिव्रता ॥ १७-०६

aśaktastu bhavetsādhurbrahmacārī vā nirdhanaḥ ।
vyādhito devabhaktaśca vṛddhā nārī pativratā ॥ 17-06

Meaning:- When a man has no strength left in him he becomes a sadhu, one without wealth acts like a brahmacari, a sick man behaves like a devotee of the Lord, and when a woman grows old she becomes devoted to her husband.

अर्थ:- जब आदमी में शक्ति नहीं रह जाती वह साधू हो जाता है. जिसके पास दौलत नहीं होती वह ब्रह्मचारी बन जाता है. रुग्ण भगवान् का भक्त हो जाता है. जब औरत बूढी होती है तो पति के प्रति समर्पित हो जाती है.


नान्नोदकसमं दानं न तिथिर्द्वादशी समा ।
न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातुर्दैवतं परम् ॥ १७-०७

nānnodakasamaṃ dānaṃ na tithirdvādaśī samā ।
na gāyatryāḥ paro mantro na māturdaivataṃ param ॥ 17-07

Meaning:- Offering food-water and education are the biggest of all Dwadashi is the holiest day. Gayatri mantra is greatest of donations. all the mantras. And Mother is above all the Gods and Goddess.

अर्थ:- अन्न और जल के दान के समान कोई नहीं है । द्वादशी के समान कोई तिथि नहीं है । गायत्री से बढ़कर कोई मन्त्र नहीं है । माँ से बढ़कर कोई देवता नहीं है ।


परैरुक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत् ।
इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः ॥ १६-०८

parairuktaguṇo yastu nirguṇo'pi guṇī bhavet ।
indro'pi laghutāṃ yāti svayaṃ prakhyāpitairguṇaiḥ ॥ 16-08

Meaning:-The man who is praised by others as great is regarded as worthy though he may be really void of all merit. But the man who sings his own praises lowers himself in the estimation of others though he should be Indra (the possessor of all excellences).

अर्थ:- जो व्यक्ति गुणों से रहित है लेकिन जिसकी लोग सराहना करते है वह दुनिया में काबिल माना जा सकता है. लेकिन जो आदमी खुद की ही डींगे हाकता है वो अपने आप को दुसरे की नजरो में गिराता है भले ही वह स्वर्ग का राजा इंद्र हो.


तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायास्तु मस्तके ।
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वाङ्गे दुर्जने विषम् ॥ १७-०८

takṣakasya viṣaṃ dante makṣikāyāstu mastake ।
vṛścikasya viṣaṃ pucche sarvāṅge durjane viṣam ॥ 17-08

Meaning:-There is poison in the fang of the serpent, in the mouth of the fly and in​ the sting of a scorpion; but the wicked man is saturated with it.

अर्थ:- There is poison in the fang of the serpent, in the mouth of the fly and in​ the sting of a scorpion; but the wicked man is saturated with it.


पत्युराज्ञां विना नारी ह्युपोष्य व्रतचारिणी ।
आयुष्यं हरते भर्तुः सा नारी नरकं व्रजेत् ॥ १७-०९

patyurājñāṃ vinā nārī hyupoṣya vratacāriṇī ।​
āyuṣyaṃ harate bhartuḥ sā nārī narakaṃ vrajet ॥ 17-09

Meaning:-The woman who fasts and observes religious vows without the permission of her husband shortens his life, and goes to hell.

अर्थ:- जो स्त्री अपने पति की सम्मति के बिना व्रत रखती है और उपवास करती है, वह उसकी आयु घटाती है और खुद नरक में जाती है.


न दानैः शुध्यते नारी नोपवासशतैरपि ।
न तीर्थसेवया तद्वद्भर्तुः पदोदकैर्यथा ॥ १७-१०

na dānaiḥ śudhyate nārī nopavāsaśatairapi ।
na tīrthasevayā tadvadbhartuḥ padodakairyathā ॥ 17-10

Meaning:- A woman does not become holy by offering by charity, by observing hundreds of fasts, or by sipping sacred water, as by sipping the water used to wash her husbands feet.

अर्थ:- स्त्री दान दे कर, उपवास रख कर और पवित्र जल का पान करके पावन नहीं हो सकती. वह पति के चरणों को धोने से और ऐसे जल का पान करने से शुद्ध होती है.


पादशेषं पीतशेषं सन्ध्याशेषं तथैव च ।
श्वानमूत्रसमं तोयं पीत्वा चान्द्रायणं चरेत् ॥ १७-११

pādaśeṣaṃ pītaśeṣaṃ sandhyāśeṣaṃ tathaiva ca ।
śvānamūtrasamaṃ toyaṃ pītvā cāndrāyaṇaṃ caret ॥ 17-11

Meaning:-The water left after washing the feet, the water left after drinking and the water left after the evening is like dog urine. Even if he drinks that water due to confusion, then one should done Chandrayan fast.

अर्थ:- पैर धोने के बाद बचा हुआ जल , पीने के बाद बचा हुआ जल और सन्ध्या करने के बाद बचा हुआ जल कुत्ते के मूत्र के समान होता है।भ्रमवश भी वह जल पी लें तो चान्द्रायण व्रत करना चाहिए।


दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन
स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन ।
मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन
ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मुण्डनेन ॥ १७-१२

dānena pāṇirna tu kaṅkaṇena
snānena śuddhirna tu candanena ।
mānena tṛptirna tu bhojanena
jñānena muktirna tu muṇḍanena ॥ 17-12

Meaning:-The hand is not so well adorned by ornaments as by charitable offerings; one does not become clean by smearing sandalwood paste upon the body as by taking a bath; one does not become so much satisfied by dinner as by having respect shown to him; and salvation is not attained by self-adornment as by cultivation of spiritual
knowledge.

अर्थ:- एक हाथ की शोभा गहनों से नहीं दान देने से है. चन्दन का लेप लगाने से नहीं जल से नहाने से निर्मलता आती है. एक व्यक्ति भोजन खिलाने से नहीं सम्मान देने से संतुष्ट होता है. मुक्ति खुद को सजाने से नहीं होती, अध्यात्मिक ज्ञान को जगाने से होती है.


नापितस्य गृहे क्षौरं पाषाणे गन्धलेपनम् ।
आत्मरूपं जले पश्यन् शक्रस्यापि श्रियं हरेत् ॥ १७-१३

nāpitasya gṛhe kṣauraṃ pāṣāṇe gandhalepanam ।
ātmarūpaṃ jale paśyan śakrasyāpi śriyaṃ haret ॥ 17-13

Meaning:- Acharya Chanakya says that the beauty of Indra is also destroyed by getting his hair cut and beard done in the barber's house, by applying sandalwood rubbed on the stone and seeing his face in the water.

अर्थ:- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि नाई के घर में केश कटवाने और दाढ़ी बनवाने से, पत्थर में घिसे चंदन आदि लगाने से तथा जल में अपना रूप देखने से इन्द्र की भी शोभा नष्ट हो जाती है।


सद्यः प्रज्ञाहरा तुण्डी सद्यः प्रज्ञाकरी वचा ।
सद्यः शक्तिहरा नारी सद्यः शक्तिकरं पयः ॥ १७-१४

sadyaḥ prajñāharā tuṇḍī sadyaḥ prajñākarī vacā ।
sadyaḥ śaktiharā nārī sadyaḥ śaktikaraṃ payaḥ ॥ 17-14

Meaning:- The eating of tundi fruit deprives a man of his sense, while the vacha root administered revives his reasoning immediately. A woman at once​
robs a man of his vigour while milk at once restores it.

अर्थ:- टुंडी फल खाने से आदमी की समझ खो जाती है. वच मूल खिलाने से लौट आती है. औरत के कारण आदमी की शक्ति खो जाती है, दूध से वापस आती है.


परोपकरणं येषां जागर्ति हृदये सताम् ।
नश्यन्ति विपदस्तेषां सम्पदः स्युः पदे पदे ॥ १७-१५

paropakaraṇaṃ yeṣāṃ jāgarti hṛdaye satām ।
naśyanti vipadasteṣāṃ sampadaḥ syuḥ pade pade ॥ 17-15

Meaning:- He who nurtures benevolence for all creatures within his heart overcomes all difficulties and will be the recipient of all types of riches at every step.

अर्थ:- जिसमे सभी जीवो के प्रति परोपकार की भावना है वह सभी संकटों पर मात करता है और उसे हर कदम पर सभी प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त होती है.


तृणं लघु तृणात्तूलं तूलादपि च याचकः ।
वायुना किं न नीतोऽसौ मामयं याचयिष्यति ॥ १६-१६

tṛṇaṃ laghu tṛṇāttūlaṃ tūlādapi ca yācakaḥ ।
vāyunā kiṃ na nīto'sau māmayaṃ yācayiṣyati ॥ 16-16

Meaning:- A blade of grass is light, cotton is lighter, the beggar is infinitely lighter still. Why then does not the wind carry him away? Because it fears that he may ask alms of him.

अर्थ:- घास का तिनका हल्का है. कपास उससे भी हल्का है. भिखारी तो अनंत गुना हल्का है. फिर हवा का झोका उसे उड़ाके क्यों नहीं ले जाता. क्योकि वह डरता है कही वह भीख न मांग ले.


यदि रामा यदि च रमा यदि तनयो विनयगुणोपेतः ।
तनये तनयोत्पत्तिः सुरवरनगरे किमाधिक्यम् ॥ १७-१६

yadi rāmā yadi ca ramā yadi tanayo vinayaguṇopetaḥ ।
tanaye tanayotpattiḥ suravaranagare kimādhikyam ॥ 17-16

Meaning:- What is there to be enjoyed in the world of Lord Indra for one whose wife is loving and virtuous, who possesses wealth, who has a well-behaved son endowed with good qualities, and who has a grandchildren born of his children?

अर्थ:- वह इंद्र के राज्य में जाकर क्या सुख भोगेगा…. जिसकी पत्नी प्रेमभाव रखने वाली और सदाचारी है. जिसके पास में संपत्ति है. जिसका पुत्र सदाचारी और अच्छे गुण वाला है. जिसको अपने पुत्र द्वारा पौत्र हुए है.


आहारनिद्राभयमैथुनानि
समानि चैतानि नृणां पशूनाम् ।
ज्ञानं नराणामधिको विशेषो
ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः ॥ १७-१७

āhāranidrābhayamaithunāni
samāni caitāni nṛṇāṃ paśūnām ।
jñānaṃ narāṇāmadhiko viśeṣo
jñānena hīnāḥ paśubhiḥ samānāḥ ॥ 17-17

Meaning:- Men have eating, sleeping, fearing and mating in common with the lower animals. That in which men excel the beasts is discretionary knowledge; hence, indiscreet men who are without knowledge should be regarded as beasts.

अर्थ:- मनुष्यों में और निम्न स्तर के प्राणियों में खाना, सोना, घबराना और गमन करना समान है. मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है तो विवेक ज्ञान की बदौलत. इसलिए जिन मनुष्यों में ज्ञान नहीं है वे पशु है.


दानार्थिनो मधुकरा यदि कर्णतालैर्दूरीकृताः
दूरीकृताः करिवरेण मदान्धबुद्ध्या ।
तस्यैव गण्डयुग्ममण्डनहानिरेषा
भृंगाः पुनर्विकचपद्मवने वसन्ति ॥ १७-१८

dānārthino madhukarā yadi karṇatālairdūrīkṛtāḥ
dūrīkṛtāḥ karivareṇa madāndhabuddhyā ।
tasyaiva gaṇḍayugmamaṇḍanahānireṣā
bhṛṃgāḥ punarvikacapadmavane vasanti ॥ 17-18

Meaning:- If the bees which seek the liquid oozing from the head of a lustintoxicated elephant are driven away by the flapping of his ears, then the elephant has lost only the ornament of his head. The bees are quite happy in the lotus filled lake.

अर्थ:- यदि मद मस्त हाथी अपने माथे से टपकने वाले रस को पीने वाले भौरों को कान हिलाकर उड़ा देता है, तो भौरों का कुछ नहीं जाता, वे कमल से भरे हुए तालाब की ओर ख़ुशी से चले जाते है. हाथी के माथे का शृंगार कम हो जाता है.


राजा वेश्या यमश्चाग्निस्तस्करो बालयाचकौ ।
परदुःखं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकण्टकः ॥ १७-१९

rājā veśyā yamaścāgnistaskaro bālayācakau ।
paraduḥkhaṃ na jānanti aṣṭamo grāmakaṇṭakaḥ ॥ 17-19

Meaning:- A king, a prostitute, Lord Yamaraja, fire, a thief, a young boy, and a beggar cannot understand the suffering of others. The eighth of this category is the tax collector.

अर्थ:- ये आठो कभी दुसरो का दुःख नहीं समझ सकते … १. राजा २. वेश्या ३. यमराज ४. अग्नि ५. चोर ६. छोटा बच्चा ७. भिखारी और ८. कर वसूल करने वाला.


पश्यसि किं बाले पतितं तव किं भुवि ।
रे रे मूर्ख न जानासि गतं तारुण्यमौक्तिकम् ॥ १७-२०

adhaḥ paśyasi kiṃ bāle patitaṃ tava kiṃ bhuvi ।
re re mūrkha na jānāsi gataṃ tāruṇyamauktikam ॥ 17-20

Meaning:- O lady, why are you gazing downward? Has something of yours fallen on the ground? (She replies) O fool, can you not understand the pearl of my youth has slipped away?

अर्थ:- हे महिला, तुम निचे झुककर क्या देख रही हो? क्या तुम्हारा कुछ जमीन पर गिर गया है? हे मुर्ख, मेरे तारुण्य का मोती न जाने कहा फिसल गया .


व्यालाश्रयापि विकलापि सकण्टकापि
वक्रापि पङ्किलभवापि दुरासदापि ।
गन्धेन बन्धुरसि केतकि सर्वजन्ता
रेको गुणः खलु निहन्ति समस्तदोषान् ॥ १७-२१

vyālāśrayāpi vikalāpi sakaṇṭakāpi
vakrāpi paṅkilabhavāpi durāsadāpi ।
gandhena bandhurasi ketaki sarvajantā
reko guṇaḥ khalu nihanti samastadoṣān ॥ 17-21

Meaning:- O Ketki flower! Serpents live in your midst, you bear no edible fruits, your leaves are covered with thorns, you are crooked in growth, you thrive in mud, and you are not easily accessible. Still for your exceptional fragrance you are as dear as a kinsmen to others. Hence, a single excellence overcomes a multitude of blemishes.

अर्थ:- हे केतकी पुष्प! तुममे तो कीड़े रहते है. तुमसे ऐसा कोई फल भी नहीं बनता जो खाया जाय. तुम्हारे पत्ते काटो से ढके है. तुम टेढ़े होकर बढ़ते हो. कीचड़ में खिलते हो. कोई तुम्हे आसानी से पा नहीं सकता. लेकिन तुम्हारी अतुलनीय खुशबु के कारण दुसरे पुष्पों की तरह सभी को प्रिय हो. इसीलिए एक ही अच्छाई अनेक बुराइयों पर भारी पड़ती है.