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Bhagvad Gita on Temptation

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः।​​
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः।।2.60।।

Meaning:- For, O son of Kunti, the turbulent organs violently snatch away the mind of an intelligent person, even while he is striving diligently.


अर्थ:- हे कौन्तेय (संयम का) प्रयत्न करते हुए बुद्धिमान (विपश्चित) पुरुष के भी मन को ये इन्द्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं।।


Important word:- ‘intelligent person ’

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः।​​
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.61।।

Meaning:-Controlling all of them, one should remain concentrated on Me as the supreme. For, the wisdom of one whose organs are under control becomes steadfast.


अर्थ:- उन सब इन्द्रियों को संयमित कर युक्त और मत्पर होवे। जिस पुरुष की इन्द्रियां वश में होती हैं? उसकी प्रज्ञा प्रतिष्ठित होती है।।


Important word:- ‘supreme, wisdom ’

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं​ समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।​​
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे​ स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।2.70।।

Meaning:- That man attains peace into whom all desires enter in the same way as the waters flow into a sea that remains unchanged (even) when being filled up from all sides. Not so one who is desirous of objects.


अर्थ:- जैसे सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में (अनेक नदियों के) जल (उसे विचलित किये बिना) समा जाते हैं? वैसे ही जिस पुरुष के प्रति कामनाओं के विषय उसमें (विकार उत्पन्न किये बिना) समा जाते हैं? वह पुरुष शान्ति प्राप्त करता है? न कि भोगों की कामना करने वाला पुरुष।।


Important word:- ‘Peace’

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।​​
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।7.14।।

Meaning:- Since this divine Maya of Mine which is constituted by the gunas is difficult to cross over, (therefore) those who take refuge in Me alone cross over this Maya.


अर्थ:- यह दैवी त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है। परन्तु जो मेरी शरण में आते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं।।


Important word:- ‘Maya’

May Lord Krishna be your inspiring guide!