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Bhagvad Gita on Depression

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।​​
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।

Meaning:- O Partha, yield not to unmanliness. This does not befit you. O scorcher of foes, arise, giving up the petty weakness of the heart.


अर्थ:- हे पृथानन्दन अर्जुन ! इस नपुंसकताको मत प्राप्त हो; क्योंकि तुम्हारेमें यह उचित नहीं है। हे परंतप ! हृदयकी इस तुच्छ दुर्बलताका त्याग करके युद्धके लिये खड़े हो जाओ।


Important word:- ‘unmanliness ’

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।​
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।2.14।।

Meaning:-The contacts of the senses with the objects, O son of Kunti, which cause heat and cold, pleasure and pain, have a beginning and an end; they are impermanent; endure them bravely, O Arjuna.


अर्थ:- हे कुन्तीपुत्र ! शीत और उष्ण और सुख दुख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग का प्रारम्भ और अन्त होता है; वे अनित्य हैं, इसलिए, हे भारत ! उनको तुम सहन करो।। br>

Important word:- ‘senses’

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।

Meaning:- From anger follows delusion; from delusion, failure of memory; from failure of memory, the loss of understanding; from the loss of understanding, he perishes.


अर्थ:- क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।।


Important word:- ‘perish’

कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।

स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते।।5.21।।

Meaning:- With his heart unattached to external objects, he gets the bliss that is in the Self. With his heart absorbed in meditation on Brahman, he acires undecaying Bliss.


अर्थ:- बाह्यस्पर्शमें आसक्तिरहित अन्तःकरणवाला साधक आत्मामें जो सुख है, उसको प्राप्त होता है। फिर वह ब्रह्ममें अभिन्नभावसे स्थित मनुष्य अक्षय सुखका अनुभव करता है।


Important word:- ‘external objects, Self, Bliss ’